मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

रेम्डेसिविर नहीं है रामबाण फिर भी जारी कालाबाजारी...

         रेम्डेसिविर की कालाबाजारी हो रही है, लोग चीख मार-मार कर रो रहे हैं, प्रशासन और सत्ता को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, राजनीतिक चिल्ल-पों के लिये एक और हथियार मिल गया है । इससे आम आदमी में एक संदेश प्रसारित हो गया कि रेम्डेसिविर कोरोना वायरस की रामबाण दवा है । कोरोना वायरस ने आम आदमी को मेडिकल साइंस के सत्य को जानने-समझने का अवसर दिया है । हम चाहते हैं कि आम आदमी उस सत्य को भी जाने, दुर्भाग्य से जिसका प्रचार नहीं हो पा रहा और जिसे बताने के लिये बेचैन साइंटिस्ट नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गये हैं । इस समय कोरोना वायरस के इलाज़ के लिये प्रचलित दवाइयों के बारे में साइंटिस्ट्स का क्या कहना है, जानिये आप भी –

“Remdesivir is a BSAA, Inhibits the replication of wide range of viruses by targeting viral proteins or host cell proteins used for the replication process. Remdesivir is ineffective after a patient is put on a ventilator, and is also ineffective for asymptomatic, mild, or moderate cases. It shortens progression of disease and hospital time. Not effective in lowering mortality or duration of mechanical ventilation.”

पिछले वर्ष 19 नवम्बर 2020 को Berkeley Lovelace Jr ने एक लेख लिखा था –“WHO tells doctors not to use Gilead’s Remdesivir as a corona virus treatment.” । इस लेख को cnbc.com पर देखा जा सकता है । दिनांक 24 अप्रैल 2021 को हिंदुस्तान टाइम्स के ई.पेपर संस्करण में पौलोमी घोष ने भी अपने लेख में मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज़ दिल्ली के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर नरेश गुप्त के हवाले से चेतावनी देते हुये लिखा है – “A Covid-19 patient may collapse after being administered with Remdesivir and hence it is only recommended to be used discriminately by a doctor in a hospital.”

हम मानते हैं कि रेम्डेसिविर की किस्मत बहुत अच्छी है जिसे शुरुआत में हिपेटाइटिस-सी के इलाज़ के लिये खोजा गया जहाँ यह सफल नहीं हो सका किंतु बाद में इस खोटे सिक्के को सार्स के इलाज़ में चलाने की कोशिश की गयी जहाँ यह एक बार फिर सफल नहीं हो सका, और अब इसे कोरोना वायरस के इलाज़ में आज़माया जा रहा है । अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इसके स्तेमाल से कोरोना वायरस के रिप्लीकेशन को रोकने में कितनी सफलता मिलती है । विशेषज्ञों और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा रेम्डेसिविर को कुछ ख़ास स्थितियों में इमर्ज़ेंसी के तौर पर और ट्रायल के लिये स्तेमाल किये जाने की सिफ़ारिश की गयी है । कमाल की बात यह है कि रेम्डेसिविर ने अपनी तमाम असफलताओं के बाद भी ब्रॉड स्पेक्ट्रम एण्टीवायरल एज़ेण्ट का सम्मानजनक दर्ज़ा हासिल करने में बाजी मार ली है । जो दवा अपने फ़ार्मेकोलॉज़िकल प्रभाव में इतनी अनिश्चित है उसके लिये भारत में हो रही मारामारी कितनी उचित है!

हमारे देश में हल्दी, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, स्टार एनिस, गिलोय, तुलसी और नीम जैसी अनुभूत औषधियों की भरमार है जिन्हें कोई पूछने वाला नहीं है । कोरोना के इलाज़ में एक और आमधारणा पनपने लगी है कि इसके इलाज़ में घर बिक जाता है और मरीज़ अस्पताल से निकलकर घर नहीं सीधे मरघट ही पहुँचता है । इस दहशत ने आम आदमी को आयुर्वेद की शरण में जाने को बाध्य कर दिया है । यदि स्थिति बहुत कॉम्प्लीकेटेड नहीं है तो श्वासकुठार रस, संशमनी वटी, त्रिभुवनकीर्ति रस, महासुदर्शन काढ़ा, यशद भस्म, श्रंग भस्म और गिलोय सत्व के अतिरिक्त यदि पहले से कोई व्याधि है तो उसके सिम्प्टोमैटिक ट्रीटमेंट से आशातीत सफलता मिल रही है और लोग स्वास्थ्य लाभ कर  रहे हैं । दुर्भाग्य से आयुर्वेद, वैदिक संस्कृति, और भारतीय विज्ञान के प्रशंसक लोग भी इन्हें अपने व्यावहारिक जीवन में अपनाने से कतराते हैं, शायद इसीलिये इसे अभी तक सच्चा राज्याश्रय नहीं प्राप्त हो सका है । जिन औषधियों के प्रभाव अनिश्चित हैं उनके लिये मारामारी हो रही है और जो कारगर हैं उनके लिये हुकुम नहीं है ।

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