बुधवार, 14 अप्रैल 2021

महल में अब कभी नहीं आयेंगे मँझले युवराज...

दूसरी शताब्दी में सातवाहन राजवंश के राजा सातकर्णी द्वारा स्थापित कांकेर राज्य को भारत की आज़ादी के साथ ही पंद्रह अगस्त 1947 को भारत गणराज्य के एक हिस्से के रूप में सौंप दिया गया था । लगभग दो साल पहले ही कांकेर पैलेस को उसका वारिस मिला था, पूरे महल में ख़ुशियों की बहार आ गयी थी और जॉली बाबा के चेहरे पर आत्मतुष्टि मिश्रित प्रसन्नता की रौनक थी । जॉली बाबा, यानी कांकेर राजपरिवार के मँझले युवराज, यानी महाराज कुमार सूर्य प्रताप देव जी, यानी राजसी गरिमा के साथ सादगी और मिलनसारिता से भरपूर एक व्यक्तित्व । महल के सेवकों के साथ उनका व्यवहार दोस्ताना हुआ करता, इतना दोस्ताना कि महल की पुष्पवाटिका हो या फ़ॉर्म-हाउस उन्हें कर्मचारियों के साथ कुछ न कुछ करते हुये देखा जा सकता था ।

वे बहुत कम बोलते और प्रायः पूर्ण मनोयोग से मेरी बातें सुनते रहते । परिचितों के साथ महफ़िल सजाने, लिखने-पढ़ने और अपनी प्राचीन परम्पराओं को सहेजने के शौकीन जॉली बाबा को खाने-पीने का भी शौक हुआ करता । रसोयी में कोई न कोई प्रयोग करते रहना उनका प्रिय खेल हुआ करता । एक दिन उन्होंने सेवक को इशारा करके रसोयी से मेरे लिये गुलगुले मँगवाये । मेरे एक गुलगुला खाते ही उन्होंने मुस्कराते हुये पूछा – “आप इसकी रेसिपी का कुछ अनुमान लगायेंगे”? मैंने ऐसा स्वादिष्ट और फ़्लेवर्ड गुलगुला पहले कभी नहीं खाया था, मैंने मुस्कराते हुये सिर हिलाया – “यह तो आपको ही बताना होगा”। ....और फिर उन्होंने जो कुछ बताया वह मेरे लिये अकल्पनीय था । ऐसे अद्भुत प्रयोग जॉली बाबा ही कर सकते हैं । उन्हें पता था कि मुझे दूध पीना पसंद है, एक रात महल के लॉन में महफ़िल जमी तो मेरे लिये हलके हरे रंग का दूध मँगवाया गया । हल्के फ़्लेवर के साथ स्मूदी जैसा गाढ़ा और स्वादिष्ट दूध, मैंने पूछा – “एक और प्रयोगक्या है इसमें?” जॉली बाबा ने मुस्कराते हुये बताया – “कीवी का पल्प और कुछ और चीजें”। जिन दिनों एपिक चैनल वाले डॉक्टर गौरव मल्होत्रा ने “राजा-रसोयी और अन्य कहानियाँ” के एक एपीसोड में बम्बू चिकेन के बारे में जॉली बाबा पर एक दृश्य फ़िल्माया था उस समय वे “ट्रेडीशनल क्यूजिंस ऑफ़ छत्तीसगढ़” पर एक किताब लिख रहे थे ।

एक दिन सुबह-सुबह पैलेस की दीवाल के पास पके पीले फलों से लदे दो-तीन बड़े वृक्ष दिखायी दिये । पास जाकर देखा, अरे यह तो खिरनी है । मैंने जॉली बाबा को उलाहना दिया – “आपने कभी बताया नहीं खिरनी के बारे में”? मासूम सा उत्तर मिला – “मुझे इसके उपयोग के बारे में कुछ नहीं मालुम इसलिये नहीं बताया”। मैंने कहा – “माइमोसॉप्स हेक्ज़ेण्ड्रा, इसके फल मीठे और पौष्टिक होते हैं, दरगाह पर चढ़ाते हैं लोग । बचपन में उदेतापुर के पास एक खिरनी वाला बाग हुआ करता था, हम बच्चे लोग खिरनी के लिये धमाचौकड़ी मचाया करते थे । बाद में कई साल बाद गाँव गया तो पता चला कि खिरनी वाले बाग का तो अब कहीं नाम-ओ-निशां भी नहीं रहा । इसके बाद मुम्बई में एक बार गोराई बीच पर खिरनी बिकते हुये देखी थी ...और आज एक मुद्दत के बाद यहाँ देख रहा हूँ”।

फ़ॉर्म हाउस पर ट्यूब वेल के हौज़ में ग़र्मियों की एक शाम स्नान की मस्ती, महल की बघवा खोली के गाइड बने जॉली बाबा, राजमहल की एण्टिक्स के बारे में विस्तार से बताते हुये जॉली बाबा, राजमहल के एक हिस्से में अपने विदेशी अतिथियों के लिये पंचकर्म थेरेपी केंद्र खोलने के बारे में विचारविमर्श करते हुये जॉली बाबा, महल के पीछे के खेतों और जंगली पेड़ों पर बैठी चिड़ियों का दूर से उनकी बोली सुनकर ही परिचय कराते जॉली बाबा, महल के दशहरा उत्सव में एक सामान्य नागरिक की तरह भीड़ में खड़े जॉली बाबा ढेरों दृश्य हैं जो आज मेरी आँखों के सामने एक-एक कर आते जा रहे हैं ।

कुछ महीने पहले जॉली बाबा से फ़ोन पर बात हुयी थी, वे मिलना चाहते थे किंतु कोरोना संक्रमण के कारण मेरा पैलेस जाना सम्भव नहीं हो सका । उन्होंने मेरे साथ मिलकर बहुत कुछ करने के लिये कुछ सपने देखे थे, मैं ही समय नहीं निकाल सका । अब वह समय कभी नहीं आयेगा । घूमक्कड़ी के शौकीन जॉली बाबा मात्र पैंतालीस की उम्र में आज सुबह बिना कुछ बताये एक अनंत यात्रा पर निकल पड़े । मैं हतप्रभ हूँ, जॉली बाबा अब नहीं हैं ।

महाराज कुमार सूर्य प्रताप देव 

रॉयल फ़ेमिली के कुछ ख़ुशनुमा पल जो अब स्तब्ध हो गये हैं   

सादगी से परिपूर्ण आम लोगों के साथ महाराज कुमार सूर्य प्रताप देव (सफेद पतलून और टी शर्ट में) 

अपने ही महल के परिसर में भीड़ का एक हिस्सा बने जॉली बाबा (भगवा कुर्ते में)

जॉली बाबा को अच्छा लगता है राजमहल के विभिन्न हिस्सों की साज-सज्जा में पुरानी चीजों का उपयोग 

महल का कोना-कोना आज उदास है ।

कांकेर पैलेस को लगता है जैसे जॉली बाबा यहीं कहीं हैं 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.