बिलखते हुये लोग विवश होकर अपनी आँखों के सामने अपने परिवार के सदस्यों को मरते हुये देख रहे हैं । गाँठ में पैसे हैं जो अब किसी काम के नहीं हैं । ऑक्सीजन और वेंटीलेटर्स की कमी का हंगामा हो रहा है । सरकार कहती है कि सब कुछ पर्याप्त है, डॉक्टर्स कहते हैं कि कुछ भी उपलब्ध नहीं है । हाईकोर्ट को कलम तोड़ धमकी देनी पड़ती है कि ऑक्सीजन की उपलब्धता में जो भी बाधा उत्पन्न करेगा उसे फाँसी दे दी जायेगी । क्या यह मोदी सरकार का अंतिम कार्यकाल होने वाला है?
रोगियों के लिये ऑक्सीजन नहीं है, वायुमण्डल प्रदूषित है, बड़े-बड़े ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं और एक-एक परिवार में चार-चार
डीज़ल या पेट्रोल वाहन रखना आम बात है, न सरकार ने कभी कोई कोटा निर्धारण किया न हमने कभी सोचा
। पैसे के अहंकार में हम प्रकृति को हमेशा अपमानित करते रहे हैं । तमाम प्रदूषणों के
बीच वैचारिक प्रदूषण ने एक बार फिर बाजी मार ली है किंतु हमने इस सबसे बड़ी समस्या को
कभी समस्या माना ही नहीं ।
कोरोना की दूसरी लहर का आतंक जारी है । भारत से भी
अधिक बुरी स्थिति ईराक की हो रही है जहाँ पहले से ही बहुत कुछ ध्वस्त है । उच्च
सुविधासम्पन्न देवता (माननीय जी) भी संक्रमित हो रहे हैं, सुपर स्पेशल सुविधायें बौनी साबित हो रही
हैं, कुछ देवताओं की मृत्यु भी हो चुकी है । हम साधारण मानुष
हैं, हमें अपने लिये देवताओं वाली सुविधाओं की अपेक्षा नहीं
करनी चाहिये । हमें अपने लिये कुछ और सोचना होगा, बिल्कुल
साधारण ।
कुछ चिकित्सक मानते हैं कि भाप लेने से कोरोना मर जाता
है इसलिये भाप लेना लाभदायक है, कुछ
मानते हैं कि भाप लेने से फेफड़ों और नाक को क्षति हो सकती है इसलिये भाप लेना
हाँइकारक है । वैज्ञानिकों के भी परस्पर विरोधी वक्तव्य सामने आ रहे हैं । आम जनता
भ्रमित है ...और सच तो यह है कि चिकित्सकों का भी एक बहुत बड़ा वर्ग भ्रमित है । हम
इस विषय पर भी बात करेंगे किन्तु अभी नहीं । अभी तो हमें अँधेरे में अपने लिये एक
सुरक्षित रास्ता तलाशना है । कोरोना ने हमारी सारी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ को ठेंगा
दिखा दिया है । जिनके पास पैसा है वे तमाम चिकित्सा के बाद भी जान गँवा रहे हैं और
जो निर्धन हैं वे चिकित्सा के अभाव में जान गँवा रहे हैं । पैसा किसी काम का नहीं
रहा । यह बात उन राष्ट्राध्यक्षों को भी समझनी चाहिये जो संसाधनों को हथियाने और
बाजार को अपनी मुट्ठी में करने के लिये विश्वयुद्ध की तरफ़ निरंतर आगे बढ़ते जा रहे
हैं ।
कोरोनाकाल में ही चीन की अर्थ व्यवस्था ने गति पकड़ ली
है । इस मामले में फ़िलहाल अमेरिका अपने प्रतिद्वंदी चीन से पराजित हो चुका है । हम
दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक हैं, फिर भी हमें बाहर से वैक्सीन आयात करनी पड़ रही है । हम
रेम्डेसिविर का भी पर्याप्त उत्पादन कर सकते थे किंतु साल भर से निर्माताओं का पता
नहीं क्यों मूड ही नहीं बन सका ।
युवाओं को अपने सपनों के लिये प्रतीक्षा करनी होगी । यह
आपकी ही नहीं पूरी दुनिया के युवाओं की समस्या है और किसी भी स्थिति में ड्रग्स
आपकी समस्या का समाधान नहीं है । कोरोना का प्रोजेक्ट 2025 तक चलने की ख़बर है । इस
बीच हमें कोरोना वायरस के साथ ही रहना होगा... पूरी सूझ-बूझ के साथ । फ़िलहाल आम
जनता का रुझान आयुर्वेदिक औषधियों की ओर होता जा रहा है । इम्यूनिटी बढ़ाने वाली
आयुर्वेदिक औषधियों से बाजार भरे पड़े हैं, फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा के लिये भी आयुर्वेद में ढेरों
दवाइयाँ हैं वह भी विदाउट साइड-इफ़ेक्ट्स । रौद्र ताण्डव के बाद लास्य नृत्य होता है
जो सृजन का नृत्य है... जीवन का नृत्य है । इसलिये युवा अपने कैरियर को लेकर निराश
न हों । दूसरों पर आरोप लगाने की भी आवश्यकता नहीं, अभी तो मृत्यु के खेला से स्वयं को बचाने की आवश्यकता है
। दवाइयों, वैक्सीन्स, ऑक्सीजन और वेंटीलेटर्स को रौंदता हुआ कोरोना आगे बढ़ता जा रहा
है लेकिन रास्ते और भी हैं... हमें आगे बढ़ना होगा ।
रेम्डेसिविर की कालाबाजारी हो रही है किंतु गिलोय, कालीमिर्च, लौंग,
हल्दी, सोंठ और नीबू आपकी पहुँच के भीतर है ।
जो मधुमेह के रोगी हैं और BGR 34 नहीं ख़रीद सकते उन्हें
केवकाँदा और भुइनिम्ब का सेवन करना चाहिये । प्रकृति ने आपको वह सब कुछ दिया है
जिसकी आपको आवश्यकता है । इस सबके बाद भी प्रकृति को आपसे जिस जीवनशैली की अपेक्षा
है उसका पालन तो आपको करना ही होगा ...यहाँ कोई समझौता प्रकृति को स्वीकार नहीं है
। आधुनिक देवताओं ने प्रकृति को अपने नियंत्रण में करना चाहा और प्राकृतिक
शक्तियों से रार कर ली । रावण ने भी काल को अपने नियंत्रण में करना चाहा और काल से
रार कर ली । जीवित रहने के लिये हमें प्रकृति की ही उपासना करनी होगी । आइये,
जिसे हम छोड़ चुके हैं उसे फिर से अपना लें अन्यथा प्रकति अपना
संतुलन स्थापित करने के लिये खण्ड प्रलय से कम में संटुष्ट नहीं होगी ।
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