कई दशक पहले अराजक राजनीतिज्ञों ने अपने विरोधियों और मतदाताओं को आँख दिखाने के लिये मसलपॉवर के प्रदर्शन की आवश्यकता का अनुभव किया जो हिंसक असुरतंत्र की परम्परा के अनुकरण की शुरुआत भर थी । शक्ति प्रदर्शन के लिये जब राजनीतिज्ञों ने अपराधियों को आमंत्रित किया तो इण्डिया भर के मोगेम्बो लोग ख़ुश हुये, और अब राजनीति में अपराधियों ने अपनी स्थिति इतनी सुदृढ़ कर ली है कि वे स्वयं राजनीतिज्ञ बन बैठे हैं और उन्हें पालने वाले कुटिल राजनीतिज्ञ उनसे भयभीत रहने लगे हैं । कई जगह सत्ता के सूत्र अपराधियों के पास हैं और वे भी प्रजा के माननीय बन गये हैं । भारत की प्रजा यह सारा तमाशा वर्षों से देखती आ रही है ।
लोकतांत्रिक
देश के चुनावों में अलोकतंत्र और हिंसा का प्रवेश वर्षों पहले ही हो चुका था । अब
चुनाव प्रचार के समय लोकहित और विकास योजनाओं की बातें नहीं की जातीं, परस्पर
आरोपों-प्रत्यारोपों की घटिया बौछारें की जाती हैं । चुनाव प्रचार का स्थान पूरी
तरह व्यक्तिगत दुष्प्रचार ने ले लिया है । एक समय मायावती को अपने ऊपर लगे
चारित्रिक आरोप पर अपने कौमार्यत्व परीक्षण की बात कहते-कहते रोना पड़ा, और तब लोकतंत्र की भीड़ का स्थान एक व्यक्ति ने ले लिया था । ममता बनर्जी
ने भी कभी मुसलमानों को दूध देने वाली गाय बताते हुये दुधारू गाय की लात स्वीकार
करने का वक्तव्य दिया था जिसे अब असदुद्दीन ओवैसी ने वर्तमान चुनाव में अपना
हथियार बना लिया । पश्चिम बंगाल में ही टी.एम.सी. के एक नेता शेख़ आलम ने तीस
प्रतिशत मुसलमानों की दम पर भारत में चार और नये पाकिस्तान बना देने का सेक्युलर
वक्तव्य सार्वजनिक मंच से दिया था और वामपंथियों को इस वक्तव्य में धर्मोन्माद का
लेश भी दिखायी नहीं दिया । इण्डियन राजनीति में ऐसी न जाने कितनी घटनायें होती
रहती हैं जिनसे इण्डिया का तो कुछ नहीं बिगड़ता किंतु विश्वपटल पर भारत की छवि
कलंकित होती रहती है ।
...तो
चार पाकिस्तान का किस्सा यूँ है कि पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव प्रचार
के दौरान अपराधी से पदोन्नत होकर नेता बने तृणमूल कांग्रेस के शेख़ आलम ने बीरभूमि
विधानसभा क्षेत्र के नानूर स्थित बासपारा में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुये कहा –“हम
अल्पसंख्यक तीस फ़ीसदी हैं बाकी सत्तर... वे सोचते हैं कि वे इन 70 फ़ीसदी के साथ
बंगाल में सत्ता में आयेंगे । उन्हें शर्म आनी चाहिये । अगर तीस फ़ीसदी अल्पसंख्यक
एक हो गये तो चार पाकिस्तान बन सकते हैं ...भारत के सत्तर फ़ीसदी कहाँ जायेंगे?”
शेख़ आलम
के उद्घोष से उपस्थित जनसमूह में हर्ष व्याप्त हो गया । लोगों ने करतल ध्वनि से
शेख़ आलम के उद्घोष का स्वागत किया । किसी ने इंशा अल्ला कहा, किसी
ने अल्लाह-हो-अकबर कहा । कुछ लोग सुखद सपनों में डूबने लगे । बाद में भाजपाइयों ने
हंगामा किया तो शेख़ आलम ने कह दिया – “अगर उनके बयान से किसी
की भावनायें आहत हुयी हैं तो वे माफ़ी माँगते हैं”। कमाल का
बयान है – चार पाकिस्तान बन सकते हैं । कमाल का लोकतांत्रिक
मूल्यांकन है –तीस फ़ीसदी वालों के रहते हुये भी सत्तर फ़ीसदी
वाले सत्ता में आना चाहते हैं तो उन्हें शर्म आनी चाहिये । कमाल की माफ़ी है –
अगर (...वरना नहीं) भावना आहत हुयी हो तो ...माफ़ कर दें ।
भागलपुर
वाली जेन्नी शबनम मानती हैं कि धर्म और सम्प्रदाय का स्तेमाल राजनीतिक हितों के
लिये किया जाना अनुचित है, वास्तव में दुनियाभर के मनुष्यों का एक ही धर्म होना चाहिये – मानवधर्म । वे यह भी स्वीकार करती हैं कि व्यापक और वास्तविक धरातल पर ऐसा
सम्भव नहीं है । जहाँ तक मेरा सवाल है, तो मैं धार्मिक आधार
पर समाज के विभाजन को रोकने के लिये “नो रिलीज़न” का पक्षधर रहा हूँ । मैं भी स्वीकार करता हूँ कि व्यापक और वास्तविक धरातल
पर ऐसा सम्भव नहीं है । ...तब सम्भव क्या है ? इस व्यापक और
ट्रिलियन डॉलर के सवाल पर फिर कभी चर्चा करूँगा । फ़िलहाल समाचार यह है कि पश्चिम
बंगाल के विधानसभा चुनाव में एक टी.एम.सी नेता को नकली चुनाव अधिकारी बनकर कार में
घूमते हुये पकड़ा गया जिसे पुलिस ने ग़िरफ़्तार कर लिया । ठीक इसी समय एक और समाचार
आया कि एक भाजपा नेता की गाड़ी में ईवीएम मशीन रखी हुयी पायी गयी । शिकायत होने पर
चुनाव आयोग ने मतदान कराने वाले चार अधिकारियों को निलम्बित कर दिया और उस बूथ पर
दोबारा चुनाव कराये जाने के आदेश दे दिये । सरसरी दृष्टि से सुनने पर यह ध्वनित
होता है कि भाजपा नेता ने ई.वी.एम. को बदलने या फिर उसमें कोई तकनीकी परिवर्तन
करने का प्रयास किया होगा जिससे कि चुनाव परिणामों को अपने पक्ष में मोड़ा जा सके ।
देश भर में इस घटना पर उबाल आया, छींका टूटा और विपक्षी दलों
को दुष्प्रचार का एक मुद्दा प्राप्त हुआ । शाम तक खुलासा हुआ कि एक बूथ पर मतदान
कराने के बाद लौट रही पोलिंग़ पार्टी की गाड़ी ख़राब हो गयी, उच्च
अधिकारियों को फ़ोन करके दूसरी गाड़ी भेजने का अनुरोध किया गया, थोड़ी देर बाद वहाँ एक वाहन आकर रुका जिसमें मतदान अधिकारी अपने सामान सहित
सवार हो गये । यह वाहन भाजपा नेता का था, जो नहीं होना
चाहिये था, मतदान दल को भी हड़बड़ी करने से पहले यह सुनिश्चित
कर लेना चाहिये था कि यह वाहन किसने भेजा है । बहरलाल ई.वी.एम. में कोई छेड़छाड़
नहीं होने का समाचार भी आया है किंतु मतदान दल की यह लापरवाही गम्भीर है ।
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