इंदौर में २७ अप्रैल को हैदर शेख ने सपरिवार सनातन विचारधारा को स्वीकार कर लिया। हैदर शेख से हरि नारायण बनना पड़ोसी पुसलमानों को स्वीकार नहीं है, उन्होंने पहले तो हत्या कर देने की धमकियाँ दीं फिर हरिनारायण के घर पर पथराव कर दिया। हरिनारायण ने धमकी की सूचना पुलिस को दी थी पर पुलिस और सेना पर पथराव करने वाले निडर हुआ करते हैं। मुस्लमीन के नेता असदुद्दीन इस्लाम की घटती साख से चिंतित हैं। विश्वहिन्दू परिषद इसे धर्मांतरण नहीं बल्कि घर वापसी मानता है। विधिक दृष्टि से भारत में धर्मांतरण पर प्रतिबंध नहीं है, प्रतिवर्ष न जाने कितने गैरमुसमान लोग मुसलमान बन जाते हैं, जिसे इस्लामिक नेता शुभ अवसर मानते हैं। यह सर्वविदित है कि गैरमुसलमानों को मुसलमान बनाने के कई अभियान दुनिया भर में चलाये जा रहे हैं जिसे वे इस्लामिक आदेश मानते हैं और इसके लिए मानवता की किसी भी सीमा को तोड़ने के लिए सदैव तैयार रहते हैं। ब्रिटेन और फ़्रांस जैसे देश इस बात को लेकर चिंतित होते रहे हैं।
हैदर शेख ने
अपने पूर्वजों के धार्मिक विचारों, आदर्शों और समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपनी सनातन प्रतिबद्धताओं
में स्वेच्छा से विश्वास व्यक्त किया और घर वापसी की जिसे धर्मांतरण
नहीं माना जा सकता। वास्तव में धर्मांतरण जैसा कुछ होता ही नहीं है, हम या तो धार्मिक
होते हैं या फिरअधार्मिक।
सैद्धांतिक
रूप से भी धर्मांतरण एक रूढ़ शब्द है जिसका कोई तात्विक अर्थ न होकर वाचिक अर्थ भर है, और यह है एक
सम्प्रदाय से दूसरे सम्प्रदाय में विचारांतरण, जैसा कि राखी सावंत करती रही हैं। उन्होंने हिन्दूआदर्शों एवं सिद्धांतों
का परित्याग कर पहले ईसाई आदर्शों एवं सिद्धांतों को और फिर उनका भी त्याग करके इस्लामिक
आदर्शों एवं सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
राजनेता और
मीडिया जिसे “धर्मांतरण” कहते हैं और विश्वहिन्दू परिषद के लोग “घर वापसी” कहते हैं, वास्तव में
वह मानवता, जीवनशैली, समाज और राष्ट्र
के प्रति विचारांतरण है। दुनिया भर में, विशेषकर भारत में नयी पीढ़ी के कुछ मुसलमानों ने “पूर्व मुसलमान”
के रूप में अपनी पहचान बना ली है। ऐसे लोग स्कैंडिनेवियंस की तरह किसी साम्प्रदायिक
प्रतिबद्धता से बँधने की अपेक्षा मानवतामुखी विचारों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध
होने का प्रयास करते हैं। वे लोग भले ही इसे “नो रिलीजन” कहते हों पर वास्तव में यही
तो वह सार्वकालिक धर्म है जो सनातन है। इसके अतिरिक्त तस्लीमा नसरीन और नाजिया इलाही
जैसे भी न जाने कितने मुसलमान हैं जिनकी प्रतिबद्धतायें मुस्लिम प्रतिबद्धताओं से अलग
हैं। साम्प्रदायिक प्रतिबद्धताओं को लेकर भारतीय पारसियों ने बड़े ही अनुकरणीय उदाहरण
प्रस्तुत किये हैं, उनकी जीवनशैली भले ही पारसी हो पर भारत के प्रति उनकी रचनात्मक प्रतिबद्धताओं
ने उन्हें सम्मान के शीर्ष स्थान पर पहुँचा दिया है।
तथाकथित
धर्मांतरणों को लेकर भारत में साम्प्रदायिक क्रूरहिंसा होती रही है इसलिये नेताओं और
मीडिया को धर्मांतरण जैसे अतात्विक और संवेदनशील शब्दों को गढ़ने एवं प्रचारित करने
से पहले इनके दूरगामी और नकारात्मक परिणामों पर गम्भीरता से चिंतन करना चाहिये। भारत
विभाजन के समय हुयी साम्प्रदायिक हिंसा के व्रण अश्वत्थामा के माथे के व्रण की तरह
मानवता के व्रण बन चुके हैं। स्वतंत्र भारत में जब-जब साम्प्रदायिक घटनायें होंगी तब-तब
हमें हठी मोहनदास के यूटोपियन थॉट्स व्यथित करते रहेंगे।
जियो और जीने दो |
जवाब देंहटाएंपर यही तो नहीं चाहते कुछ लोग।
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