आज मंथन गहन करने
फिर ये अवसर आ गया है ।
राष्ट्रहित में कठिन निर्णय
का ये अवसर आ गया है ॥
यह लोकसत्ता पंचवर्षी
हम किसे अर्पित करें ।
धर्म के औचित्य पर अब
हम पुनः निर्णय करें॥
विवश होकर देश में ही
क्यों देश शरणागत हुआ ।
कोई कैसे राष्ट्रद्रोही
राष्ट्र में निर्भय हुआ ॥
आग है हर ओर धधकी
दम धुयें से घुट रहा ।
रोटियाँ सिकती हैं उनकी
देश पूरा लुट रहा ॥
सारथी का स्वाँग रच
हैं राजमद वो सब पिये ।
क्या वो जानें हम गरल के
कुंड पीकर भी जिये ॥
नेतृत्व जयचंदों ने छीना
स्वप्न सब धूमिल हुये ।
देश की छल अस्मिता
जयचंद कब अपने हुए !!
आज निर्णय की घड़ी में
नेक निष्ठा ले के चलना ।
कंटकों की और सुमनों
की तनिक पहचान करना ॥
देश किसके हाथ में
है सौंपना, पहचान कर ले ।
हो न जाये चूक फिर से
हो सजग मतदान कर ले ॥
लोकसत्ता पंचवर्षी
हम जिसे अर्पित करें ।
ले चले जो रथ सुपथ पर
सारथी ऐसा चुनें ॥
भाग्य के हम ही विधाता
हैं आज पल भर के लिये ।
फिर न कहना, फिर छलेगा
पाँच वर्षों के लिये ॥
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