एल.ए. और फ़िलाडेल्फ़िया संयुक्त राज्य अमेरिका के विख्यात महानगर हैं जो अपनी कई विशेषताओं के बाद भी अमेरिका के नर्क को अपने भीतर समेटे हुये हैं। इस नर्क का नाम है “जॉम्बी ड्रग महामारी”। इस महामारी के उत्पन्न होने में जितना योगदान वैज्ञानिकों और उच्च-शिक्षितों का है उतना ही स्थानीय शासन-प्रशासन का भी रहा है।
कुछ दशक पहले परड्यू फ़ार्मेसी के मालिक रिचर्ड सैकलर ने
पीड़ा-निवारण के लिए सिंथेटिक ऑपियोइड से Oxicodone नामक एक औषधि बनायी जो बाद में OxyContin एवं Roxicodone
के ब्रांड नाम से बाजार में प्रस्तुत की गयी। रिसर्च ट्रायल में 82%
लोगों को इसके कई साइड-इफ़ेक्ट्स का सामना करना पड़ा जिसे फ़ार्मेसी के मालिकों और
वैज्ञानिकों द्वारा छिपाया ही नहीं गया बल्कि इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी की गयी। बाजार
में उतारने के लिए प्रारम्भ में 500 डॉक्टर्स के साथ फार्मेसी के लोगों द्वारा मीटिंग
की गयी जिसमें से केवल 380 डॉक्टर्स ही इसे प्रिस्क्राइब करने के लिए तैयार हुए,
पर शीघ्र ही इस औषधि ने बाजार में अपने पैर पसार लिए। यह बहुत ही
हानिकारक पीड़ाशामक सिद्ध हुयी क्योंकि इसके सेवन से लोग इसके अभ्यस्त होने लगे थे।
आगे चलकर जब इस औषधि पर प्रतिबंध लगाया गया तो इसके अभ्यस्त हो
चुके लोगों ने हेरोइन और मॉर्फ़ीन लेना प्रारम्भ कर दिया। फ़िर आयी ज़ाइलाज़िन जिसके
बाद तो लॉस-एंजेल्स और फ़िलाडेल्फ़िया के लोग झुके हुये स्टेच्यू होने लगे। जॉम्बी-ड्रग-महामारी
इसी ज़ाइलाज़िन का परिणाम है।
सिंथेटिक ओपियोइड बनाने में अग्रणी चीन ने चाइना गर्ल के नाम से
फ़ेंटानिल का उत्पादन किया जिसे अमेरिकी लोगों ने पसंद किया। ‘चाइना गर्ल’ इस ओपियोइड का
छद्म नाम है जो मॉर्फ़ीन से एक-सौ गुना और हेरोइन से पचास गुना अधिक मादक होता है। भारत
में भी युवाओं को नर्क में धकेलने के लिए मारीजुआना और कोकीन का प्रचलन रहा है। उड़ता
पञ्जाब अफीम और सुरा के लिये कुख्यात रहा है जबकि तेलंगाना में अल्प्राज़ोलम वहाँ के
युवाओं की पसंद मानी जाती है।
तुरंत प्रभाव के लिये जिस पीड़ाशामक औषधि की खोज की गयी उसने निर्माताओं
और डॉक्टर्स को मालामाल किया किंतु युवाओं को नर्क में धकेल दिया। अब तनिक बाबा रामदेव
प्रकरण में मीलॉर्ड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर भी विचार कर लिया जाय। मीलॉर्ड मानते
हैं कि कई रोगों का चिकित्सा जगत में कोई उपचार नहीं है जबकि बाबा उनके उपचार का आश्वासन
देते हैं, यह बाबा का भ्रामक प्रचार है जिसके लिये चार बार
क्षमायाचना करने पर भी मीलॉर्ड ने उन्हें क्षमा का पात्र नहीं माना। मीलॉर्ड जी! आप
तो एलोपैथी और आयुर्वेद के विद्वान हैं, पर आपने वही स्वीकार
किया जो एलोपैथी वालों ने आपको बताया है। एलोपैथी वालों ने अमेरिका को यह बता कर कि
ऑक्सीकोन्टिन बहुत अच्छी और प्रभावकारी पीड़ाशामक औषधि है, युवाओं
को जॉम्बी-ड्रग-महामारी में धकेल दिया। जबकि आयुर्वेद का तो सिद्धांत ही है “प्रयोगः
शमेद् व्याधिं योऽन्यमन्यमुदीर्येत्” अर्थात् वही चिकित्सा प्रशस्त है जो व्याधि का
तो शमन करे पर किसी अन्य व्याधि को उत्पन्न न करे।
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