अपनी वृद्धावस्था
से जूझता यह वृक्ष ... कलारों वाले बाग का एकमात्र शेष सदस्य है जो साक्षी हुआ करता
था हर उस लूटमार का जो सूरज डूबते ही राहगीरों के साथ आये दिन हुआ करती थी । कानपुर
से बालामऊ जाने वाली पैसेंजर गाड़ी सूरज डूबने के बाद ही दो-तीन मिनट के लिये इस हाल्ट
पर आकर खड़ी हुआ करती थी । गाड़ी का समय आज भी वही है पर पहले की तरह राहजनी अब यहाँ
नहीं होती । राहजनी, सेंधमारी और डकैती जैसे अपराध आजकल
अब होते ही कहाँ हैं! आधुनिक तकनीक ने उन्हें बेदखल कर दिया है और उनका स्थान अब साइबर
क्राइम ने ले लिया है ।
मैं उस वृक्ष
की बात आपको बता रहा था जो न जाने कितने अपराधों का मौन साक्षी हुआ करता था । अब उसे किसी के आने की प्रतीक्षा नहीं होती, निश्चिंतता ने उसे संसार के प्रति उदासीन बना दिया है । आँधियों
ने उसकी शाखायें छीन लीं, उसका रूप-स्वरूप अब पहले जैसा नहीं
रहा । सूरज डूब चुका है और गाड़ी भी आने ही वाली है, मैं घूम-घूम कर उस वृक्ष को नीचे से ऊपर तक बार-बार देखता हूँ जिसके
पास अपराधों की न जाने कितनी साक्षियाँ हैं ...जिन्हें कोई न्यायालय आज तक देख नहीं
सका ।
यहीं कहीं ...या
यहाँ से कुछ आगे खिरनी का भी एक पेड़ हुआ करता था जो अब नहीं है । कई दशक बाद एक दिन
जॉली बाबा के राजमहल में खिरनी के कुछ वृक्ष देखे थे, पीली-पीली खिरनियों से लदे हुये, जिन्हें देखते ही उछल पड़ा था मैं । हमारे गाँव के बाहर भी खिरनी
वाला एक बाग हुआ करता था जो अब नहीं है । एक बार गोराई बीच पर खिरनी बिकते देखी तो
मैंने दद्दू से कहा था – “चलो आज खिरनी खाते हैं”। मुझे आश्चर्य हुआ, दद्दू को खिरनियों के बारे में पता ही नहीं था जबकि उनका घर बोरीवली
में गोराई समुद्र के पास ही है । जॉली बाबा को भी कहाँ पता था! मैंने एक खिरनी उठाकर
मुँह में डाली तो उन्होंने पूछा – “इज़ इट एडिबल?” मैंने कहा – “आप भी खाकर देखिये, आपके विदेशी अतिथियों को बहुत पसंद आयेगी”।
मैंने शिवस्वरूप से पूछा – “खिरनी
का पेड़ नहीं दिख रहा कहीं”। उत्तर मिला – “कलारों वाला बाग भी तो कहाँ रहा अब!”
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