मैं संतुष्ट हूँ कि कुछ भारतीय निर्माताओं के मसालों पर विदेशों में प्रतिबंध लगा दिया गया है । सम्भव है कि अब भारत में भी प्रतिबंध के कारणों को लेकर चर्चा प्रारम्भ हो और लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों ।
अरब, मिस्र और योरोप के व्यापारियों की पहली पसंद रहे भारतीय मसाले, जिनके कारण भारत दीर्घकाल तक विदेशी दासता में बँधा रहा, अब अपयश के कारण बनने लगे हैं । पहले सिंगापुर एवं हांगकांग और
फिर मालदीव ने भी एवरेस्ट और एम.डी.एच. के चार मसाला मिश्रणों को प्रतिबंधित कर दिया
है । इन देशों की सरकारों के अनुसार चार प्रकार के इन मसाला मिश्रणों में कैंसर उत्पादक
कीटनाशक एथिलीन ऑक्साइड की उच्च मात्रा पायी गयी है ।
भारत में एवरेस्ट
और एम.डी.एच. (महाशियाँ दी हट्टी) के मसाला उत्पाद बहुत लोकप्रिय माने जाते हैं । भारत
में स्थानीय स्तर पर मिलने वाले मसाला उत्पादों में आर्सेनिक की मात्रा पाये जाने के
समाचारों से हम सब समय-समय पर अवगत होते रहते हैं किंतु उपभोक्ताओं में जिस प्रकार
की जागरूकता होनी चाहिये उसका सर्वथा अभाव ही प्रायः देखने को मिलता रहा है ।
घातक कीटनाशक
मसालों और अनाजों में ही नहीं अच्छी कम्पनीज़ के मधु में भी पाये जाते रहे हैं । जागरूक
उपभोक्ताओं को भारत में कैंसर, मधुमेह और यकृत के रोगियों की बढ़ती
संख्या के कारणों पर भी चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है । रासायनिक खादों और कीटनाशकों
के अंधाधुंध व्यवहार ने वैज्ञानिकों को चिंतित किया है। आम आदमी को इस सबसे कोई लेना
देना नहीं होता चाहे वह कृषक हो या उपभोक्ता पर यह तो सरकार का भी दायित्व है कि कृषि
में व्यवहृत होने वाले इन घातक रसायनों को प्रतिबंधित करने के लिये कठोर कदम उठाये
। जनता की सेवा करके अपार सम्पत्ति के मालिक बन गये मंत्रीगण और रिश्वतखोर अधिकारी
तो ऑर्गेनिक मसाले और अनाज का उपयोग कर सकते हैं पर आम ऊपभोक्ता के पास बाजार पर निर्भर
रहने के अतिरिक्त और कोई उपाय है भी तो नहीं; इसीलिये मसालों को हम घर पर ही तैयार करने के पक्ष में परामर्श देते
रहे हैं, जिसका महिलाओं ने कभी समर्थन नहीं
किया । किंतु यह दायित्व महिलाओं का ही नहीं, पुरुषों का भी है । तात्कालिक रूप से इसके अतिरिक्त हमारे पास और
कोई विकल्प नहीं है । कम से कम हम प्रोसेस्ड मसालों में मिलाये जाने वाले हानिकारक
प्रिज़र्वेटिव्स से तो स्वयं को सुरक्षित रख ही सकते हैं ।
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