कश्मीर के
पंपोर, त्राल, पुलवामा, राजपोरा, जैनापोरा, शोपियाँ, कुलगाम, अनंतनाग, पहलगाम, किश्तवाड़, भद्रवाह, डोडा आदि विधानसभा क्षेत्रों में प्रथम चरण का मतदान सम्पन्न हो
गया । दृश्य-श्रव्य संचार माध्यम के लोगों ने स्थान-स्थान पर मतदाताओं से जो चर्चा
की वह हतप्रभ कर देने वाली है । इस आधार पर कश्मीर के मतदाताओं को दो वर्गों में
देखा जा सकता है – एक वर्ग में श्रमिक, प्रौढ़, राजनीतिक दलों से जुड़े और
भारतविरोधी लोग सम्मिलित हैं जबकि दूसरे वर्ग में शिक्षित, युवा और विवेकशील लोग सम्मिलित हैं । प्रथम वर्ग के वक्तव्य
विचित्र, विरोधाभासी और पूर्वाग्रही हैं
–
“....धारा
तीन सौ सत्तर ही तो हमारी पहचान है, उसे ही समाप्त कर दिया तो अब बचा ही क्या! जब धारा ३७० थी तब सब अमन चैन था, पर हालात बहुत ख़राब थे, मिलिटेंसी थी, लोग घर से बाहर नहीं निकलते थे, बच्चे स्कूल नहीं जाते थे । मोदी के आने से नौकरी समाप्त हो गयी, किसी को भी पकड़ कर मार दिया जाता है ।“
“हमें ३७०
वापस चाहिए, उससे नौकरी मिलेगी और अमन चैन
वापस आयेगा । पहले पत्थरबाजी होती थी, अभी नहीं होती, पर इसमें अच्छा क्या हुआ! सब
कुछ तो वैसा ही है । हमें पहले जैसा ही चाहिए, अभी जैसा नहीं चाहिए । मोदी ने महँगाई कर दी, पहले अब्दुल्ला के समय महँगाई ज्यादा थी, अभी कम है पर हमें पहले जैसा ही चाहिए, मोदी नहीं चाहिए, स्टेटहुड चाहिए और अब्दुल्ला चाहिए । अब्दुल्ला हमारा है, मोदी तो इंडिया का है.. बाहरी है, वो नहीं चाहिये ।“
“अभी बच्चे
स्कूल जाते हैं, पहले नहीं जाते थे, पर इससे क्या होता है! हमें पहले जैसा ही चाहिए । जब अब्दुल्ला
था तब शांति नहीं थी, अभी शांति है, हमें और शांति चाहिये इसलिए अब्दुल्ला की सरकार को ही लायेंगे, मोदी को हटाना है ।“
इससे भी अद्भुत
यह है कि कश्मीर के कुछ हिंदू भी अब्दुल्ला, महबूबा और धारा ३७० ही चाहते हैं, कोई और नहीं । इस तरह के लोग और उनके वक्तव्य बहुत कुछ सोचने को
विवश कर देते हैं। यह हमने कैसा भारत बनाया है! जिस कश्मीरियत की बात की जाती है
वह इन लोगों के वक्तव्यों में कहाँ है ? फ़ारुख़, उमर अब्दुल्ला, महबूबा और बुरहान वानी में केंद्रित आम आदमी की सोच को
कश्मीरियत कैसे मान लिया जाय!
अब तो पूरे
भारत के सामने यह स्पष्ट हो चुका है कि कश्मीर में इतने वर्षों से आतंकवाद क्यों
फलता-फूलता रहा है । कौन हैं वे लोग जो पाकिस्तानी आतंकियों को छिपने के लिए स्थान
और खाने के लिए भोजन देते रहे हैं ! कौन हैं वे लोग जो सेना पर पथराव करते रहे हैं
!
*कश्मीरियों
का यह वंचित वर्ग ब्रेनवाश्ड है या कन्फ़्यूज़्ड है या भले-बुरे में अंतर कर पाने
में असमर्थ है, या पाकिस्तान का हथियार है
या.... जो भी हो इतना तो अब स्पष्ट है कि कश्मीर के नर्क के लिए केवल और केवल ऐसे कश्मीरी
ही उत्तरदायी है।* जहाँ के लोगों का बौद्धिक स्तर ऐसा हो वहाँ पर्यटन के लिए कौन
जाना चाहेगा?
कश्मीरियों
का दूसरा वर्ग शिक्षित, युवा और प्रगतिवादी है । वह विकास और शांति के लिए धारा ३७० की नहीं, नये कश्मीर की माँग करता है, मोदी के शासन पर भरोसा करता है ...पर ऐसे लोगों की संख्या है ही
कितनी?