रविवार, 22 सितंबर 2024

एक वामपंथी की चिंतन यात्रा

            सुशांत सिन्हा ने अपने कल के पोडकास्ट में शेहला रशीद को राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत किया है । सुशांत का प्रयास उस सोच का परिणाम है जो भारतीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है । उनका प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है । आज मैं एक बार फिर शेहला की चिंतन यात्रा पर लिखने के लिए विवश हुआ हूँ । मैं अपनी पुस्तक “प्रतिध्वनि” में शेहला का उल्लेख कर चुका हूँ, वह नकारात्मक था, इसलिए अब यह मेरा लेखकीय और नैतिक दायित्व बनता है कि शेहला पर एक और लेख लिखा ही जाना चाहिये ।

कन्हैया और उमर ख़ालिद को बहुत पीछे छोड़ चुकी शेहला ने वामपंथ की संकुचित सीमाओं का अतिक्रमण कर चिंतन के जिस क्षेत्र में प्रवेश कर पाने में सफलता प्राप्त की है वह अद्भुत् और अनुकरणीय है । अब यह लड़की जे.एन.यू. की संकुचित सीमा से निकलकर पूरे भारत की बेटी बन चुकी है । यह सरल नहीं है, हर किसी के लिए सम्भव भी नहीं है । शेहला ने इस स्थिति तक पहुँचने के लिए जितना आत्मचिंतन, मंथन और द्वंद्वों का सामना किया है उस सबने भारत की चिंतन प्रक्रिया और उसके महत्व को और भी पुष्ट किया है । इस स्थिति को प्राप्त करना पुनर्जन्म की प्रक्रिया से लेश भी कम नहीं है ।

मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों को सुनना, समझना, विश्लेषण करना और उससे होकर जाना बुरा नहीं है । बुरा है उसकी व्यावहारिक और राजनीतिक प्रक्रिया से चिपक जाना । मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि सूचना संक्रांति के इस काल में हर युवक को एक बार तो वामपंथ के समीप आना ही चाहिये किंतु... इसके बाद वामपंथ से होते हुए आगे निकल जाना चाहिए । यह तब होगा जब हम मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों, मार्गों और व्यावहारिक पक्षों की निष्ठापूर्वक बायोप्सी कर सकेंगे । समुद्र मंथन की यह प्रक्रिया युवकों को लोककल्याणकारी सिद्धांतों और उनके उत्कृष्ट व्यावहारिक पक्षों के चयन का मार्ग प्रशस्त करती है । यह प्रक्रिया व्यक्ति को आलोचना से आत्ममंथन और आरोप से स्व-दायित्वों के बोध की ओर ले जाती है । राष्ट्रभक्त होने के लिए और क्या चाहिए!

यदि हम वामपंथ को अच्छी तरह समझ कर उसमें से होते हुये आगे बढ़ जाएँगे तो वामपंथ बहुत पीछे छूट जायेगा । इस बात को यूँ भी समझा जा सकता है कि जिसने वायरोलॉजी और इम्यूनोलॉजी को अच्छी तरह समझ लिया है वह वैक्सीनेशन के व्यावहारिक और अव्यावहारिक पक्षों को भी अच्छी तरह समझ लेगा, तब वह वैक्सीनेशन के पक्ष में नहीं, उसके विरोध में खड़ा मिलेगा । शर्त यही है कि वायरोलॉजी और इम्यूनोलॉजी को पृथक-पृथक समझने के स्थान पर एक-दूसरे के संदर्भ में समझा जाय । यही कारण है कि आज शेहला रशीद पूरे भारत की बेटी बन गयी है ।

विचार और आचरण व्यक्ति को लोकप्रिय या अलोकप्रिय बनाते हैं । कभी आपकी तरह मैं भी शेहला का मुखर विरोधी रहा हूँ, आज प्रशंसक हूँ । यह वैचारिक क्रांति विचारणीय है विशेषकर शेहला के पुराने साथियों के लिए । आज भी बहुत से लोग हैं जो शेहला के विरोधी और निंदक हैं किंतु जे.एन.यू. के दिनों से लेकर आज तक की उनकी विचारयात्रा उन्हें विशिष्ट बनाती है इसलिए हमें शेहला के लिए एक स्थान रखना ही होगा जो जे.एन.यू. की शेहला से पूरी तरह भिन्न है ।

वामपंथियों की चिंतन और संप्रेषण शैली युवकों को प्रभावित करती है । वह बात अलग है कि उसमें विशदता और व्यापकता का अभाव है । दक्षिणपंथियों की चिंतन और संप्रेषण शैली युवकों को पाखंडपूर्ण लगती है जबकि उसमें विशदता और व्यापकता का विहंगम आकाश होता है । कन्हैया और उमर ख़ालिद एक संकुचित विवर में बंदी हो कर रह गये हैं जबकि शेहला मुक्ताकाश की स्वतंत्र पंछी बन चुकी है । मैंने पहले जो लिखा वह उस समय का यथार्थ था. आज जो लिख रहा हूँ वह आज का यथार्थ है । 

वामपंथ से प्रभावित इस कश्मीरी लड़की की राजनीतिक यात्रा निर्भया कांड के विरोध प्रदर्शन से प्रारम्भ होती है जो धीरे-धीरे तत्कालीन सत्ता और व्यवस्था के विरोध की ओर बढ़ती रहती है । उस आयु में भ्रष्टाचार, असमानता, परम्परा और यथास्थिति आदि के प्रति विद्रोह और एक आदर्श व्यवस्था के लिए क्रांति का उत्साह होता है, होना भी चाहिये । मार्क्सवाद का यही पक्ष युवकों को आकर्षित करता है । वह बात अलग है कि कुछ दूर चलने के बाद इस आदर्श के पीछे का कुछ और ही सत्य सामने आता है । शेहला इसीलिए विशिष्ट है कि जो सत्य वह देख सकी उसे कन्हैया और उमर ख़ालिद नहीं देख सके । इसीलिए कश्मीर की एक विद्रोही लड़की ने मेरे जैसे अपने विरोधी को भी अपना समर्थक बना लिया है ।

मुझे इस लड़की में एक और विशेषता दिखायी देती है, वह यह कि शेहला स्वयं अपने प्रति भी विद्रोही हो सकने का पोटेंशियल रखती है । यदि यह लड़की कभी चुनाव में प्रत्याशी होती है और मुझे अवसर मिला तो मैं शेहला के समर्थन में चुनाव प्रचार करने का इच्छुक रहूँगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.