ज्योतिषीय परम्पराओं में चार वर्ण हैं, तीन गण हैं, पाँच वश्य हैं और चौदह योनियाँ हैं, जबकि जातियाँ एक भी नहीं हैं । यह मनुष्य की प्रकृतिनिर्धारित संवैधानिक व्यवस्था (बायोलॉजिकल कांस्टीच्यूशन) है जिससे जातक जीवन भर अनुशासित और संचालित होता है ।
जातीय
विभाजन पूरी तरह से सत्ताधीशों के निजी हितों की पूर्ति के लिए किया जाता रहा है । विभाजित और दुर्बल समाज पर शासन करना सत्ताधीशों के लिए सरल
होता है ।
ज्योतिष परम्परा में मनुष्य (जातक) का वर्गीकरण उसकी सकारात्मक विशेषताओं को प्रोत्साहित करने और दुर्बलताओं को सुधारने के प्रयासों के लिए प्रशस्त माना जाता है । यह वर्गीकरण व्यक्ति को समाज से तोड़ता नहीं बल्कि युक्तियुक्त तरीके से जोड़ता है ।
सनातनी भारतीय व्यवस्था में
वर्गीकरण –
चार वर्ण –
ब्राह्मण-वर्ण – कर्क, वृश्चिक, तथा मीन राशि के जातक ।
क्षत्रिय-वर्ण – मेष, सिंह एवं धनु राशि के जातक ।
वैश्य-वर्ण – वृषभ, कन्या एवं मकर राशि के जातक ।
शूद्र-वर्ण – मिथुन, तुला एवं कुम्भ राशि के जातक ।
तीन गण –
देव-गण – सुंदरो दान शीलश्च
मतिमान सरलः सदा। अल्पभोगी महाप्राज्ञो तरो देवगणे भवेत् ॥
मनुष्य-गण – मानी धनी
विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धरः। गौरः पौरजन ग्राही जायते मानवे गणे ॥
राक्षस-गण – उन्मादी भीषणाकारः
सर्वदा कलहप्रियः। पुरुषो दुस्सहं बूते प्रमेही राक्षसे गणे ॥
पाँच वश्य –
चतुष्पाद – मेष एवं वृष राशि के
जातक ।
मानव – मिथुन, कन्या, तुला, धनु एवं कुम्भ राशि के जातक ।
जलचर – कर्क, मकर एवं मीन राशि के जातक ।
कीटक – वृश्चिक राशि के जातक ।
वनचर – सिंह राशि के जातक ।
चौदह योनियाँ –
अश्व-योनि – अश्विनी एवं
शतभिषा नक्षत्र के जातक ।
गज-योनि – भरणी एवं रेवती नक्षत्र
के जातक ।
मेष-योनि – कृतिका एवं पुष्य नक्षत्र
के जातक ।
सर्प-योनि – रोहिणी एवं
मृगशिरा नक्षत्र के जातक ।
श्वान-योनि – आर्द्रा एवं मूल नक्षत्र
के जातक ।
मार्जार-योनि – पुनर्वसु एवं
अश्लेषा नक्षत्र के जातक ।
मूषक-योनि – मघा एवं पूर्वा
फाल्गुणी नक्षत्र के जातक ।
गौ-योनि – उत्तरा फाल्गुणे एवं
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के जातक ।
महिष-योनि – हस्त एवं स्वाति नक्षत्र
के जातक ।
व्याघ्र-योनि – चित्रा एवं
विशाखा नक्षत्र के जातक ।
मृग-योनि – अनुराधा एवं
ज्येष्ठा नक्षत्र के जातक ।
वानर-योनि – पूर्वाषाढ़ा एवं श्रवण नक्षत्र के जातक ।
नकुल-योनि – उत्तराषाढ़ा नक्षत्र
के जातक ।
सिंह-योनि – धनिष्ठा एवं पूर्वाभाद्रपद
नक्षत्र के जातक ।
जातक की
प्रकृति, रुचि, प्रवृत्ति, क्षमता, उन्मुखता, आशंकाओं, सम्भावनाओं आदि के संकेत ज्योतिष के इस वर्गीकरण से प्राप्त
होते हैं । यह गणितीय और बायोलॉजिकल विश्लेषण है, जिसमें जाति का कहीं कोई प्रावधान नहीं है । आज जाति-जन-गणना को
लेकर चर्चाएँ हो रही हैं, उनके पक्ष-विपक्ष में
तर्क-कुतर्क दिए जा रहे हैं । जाति-व्यवस्था के लिए ब्राह्मणों, मनुस्मृति और वेदों को उत्तरदायी मानते हुये उन्हें गालियाँ दी
जा रही हैं जबकि जातियों को बनाये रखने के लिए ही नहीं बल्कि और भी नयी-नयी
जातियाँ उत्पन्न करने के लिए सभी राजनीतिक दल हर तरह की उठा-पटक करने के लिए तैयार
रहते हैं । क्या अब भी आप इस सामाजिक विभाजन के लिए उन्हें ही उत्तरदायी मानते
रहेंगे जिनका इसमें कभी कोई योगदान रहा ही नहीं ?
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