समाचार या चटखारे
घटना, दुर्घटना, युद्ध या कोई प्राकृतिक आपदा
कितनी भी क्रूर और हृदयविदारक क्यों न हो, दूरदर्शन को छोड़कर अन्य सभी दृश्य-संचार-माध्यमों पर उनके
समाचार जिस तरह सुनाये जाने की परम्परा बनती जा रही है, उससे कभी ऐसा नहीं लगता कि समाचार प्रस्तोता का हृदय घटना की
क्रूरता से लेश भी प्रभावित हुआ है । उनका सारा ध्यान समाचार को सनसनी बनाने में
लगा रहता है गोया किसी बच्चे को कोई कहानी सुनायी जा रही हो इसलिए उनके
प्रस्तुतीकरण में संवेदनशून्यता दिखायी देती है जो हमारी कुंद होती संवेदना और पतित
होते नैतिक मूल्यों का परिचायक है ।
ऐसे
प्रस्तुतीकरण को व्यावसायिक निर्दयता की संज्ञा दी जा सकती है । संवेदनशून्यता, निर्दयता और अवसरवादिता की रही-सही कमी राजनीतिक कबीलों के लोग
अपनी टिप्पणियों और आरोपों-प्रत्यारोपों से पूरी कर देते हैं । व्यावसायिकता की
ऐसी प्रवृत्ति चिंता का विषय है । हम संवेदनशून्यता के अभ्यस्त होते जा रहे हैं । इसकी
छाया समाज पर भी पड़ने लगी है । भीड़ सड़क के किनारे पड़ी हुई घायल और निर्वस्त्र लड़की
का वीडियो बनाती रहती है, कोई उसकी सहायता के लिए आगे नहीं
आता ।
युवा कामसमस्यायें
सहज संवेदनाओं
के प्रति कुंद पड़ते जा रहे मस्तिष्क का एक अन्य परिणाम मेडीसिन विभाग की ओ.पी.डी. में
भी दिखायी देने लगा है । दृश्य-संचार-माध्यमों के
धारावाहिकों और विज्ञापनों के कामुक दृश्यों एवं लड़के-लड़कियों के पारस्परिक व्यवहार
ने नयी पीढ़ी की प्राकृतिक काम संवेदना को भी कुंद बना दिया है । आप इसे असमय में मस्तिष्क
का सैचुरेशन कह सकते हैं । लॉस ऑफ़ लिबिडो और इरेक्टाइल डिसफ़ंक्शन आज के युवाओं की एवं
सेक्सुअल अरौसल डिसऑर्डर, ऑर्गैस्मिक डिसऑर्डर, अवर्ज़न टु सेक्स और डिसपरयूनिया लड़कियों की समस्यायें होती जा रही
हैं । अब अविवाहित युवकों को भी काउंसलिंग और अफ़्रोडिज़ियक्स की आवश्यकता होने लगी
है ।
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