“आराधना के लिए उलेमा की अनुमति”
एक उलेमा
की आज्ञप्ति है कि गणेश पंडाल लगाने वाले लोगों को पहले उलेमाओं से अनुमति लेनी
चाहिए। बिना उलेमा की अनुमति के गणेश पंडाल नहीं लगाया जा सकता । हिन्दुओं की
पूजा-पाठ को भारत में सेक्युलर बनाने का यह प्रयास प्रशंसनीय है । जवाहरलाल की
आत्मा को सुख-शांति और संतोष प्रदान करने के लिए उलेमा साहब को धन्यवाद !
मोहनदास के सपनों के देश में हिन्दुओं को पल-पल यह अनुभूति होती रहनी चाहिए कि वे नराधम हैं और उन्हें स्वाभिमानपूर्वक जीने का कोई अधिकार नहीं है । धर्मनिरपेक्ष देश में हिन्दुओं को हर काम के लिए मुस्लिम नेताओं/उलेमाओं और इस्लामिक स्कॉलर्स से अनुमति प्राप्त करने का अधिकार दिया जा रहा है यही क्या कम है ! “फ़ादर ऑफ़ द नेशन” मोहनदास की यही व्यवस्था है जो अब अपने पूरे स्वरूप में प्रकट हो चुकी है
*प्रसादम् में सुअर की चर्बी*
तिरूपति
बालाजी मंदिर में भोग और प्रसादम् के लिए बनाये जाने वाले लड्डू के लिए प्रयुक्त
घी में वानस्पतिक तेलों की मिलावट के साथ ही टैलो (पशुओं की चर्बी), मछली का फैट और लार्ड (सुअर की चर्बी) की पुष्टि लैबोरेटरी की
जाँच में हुयी है जिससे यह प्रमाणित हो चुका है कि भगवान को लगाये जाने वाले भोग
और भक्तों को प्राप्त होने वाले प्रसादम् को अब पूरी तरह सेक्युलर बना दिया गया है
। अब सभी सेक्युलर लोग बिना किसी झिझक के इस प्रसादम् का सेवन कर सकते हैं ।
*वामपंथियों
को बधाई! यही है असली सार्वभौमिक सेक्युलरिज़्म, सेक्युलर अनुष्ठानम्, सेक्युलर भोगम् और सेक्युलर प्रसादम् । पशुओं के फैट्स के नाम
पर वर्गीकरण करके उनके साथ नस्लीय भेदभाव करना पशुओं के साथ क्रूरता करना है, जो नहीं होना चाहिए ।*
खाद्यपदार्थों में भी शाकाहार और मांसाहार जैसा भेदभाव लोकतांत्रिक सिद्धांतों, भाईचारे और संविधान के विरुद्ध है । सेक्युलर सरकारों के निर्देशन में मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा यह भेदभाव समाप्त कर दिया गया है । यही व्यवस्था बिहार, बंगाल, दिल्ली आदि अ-भाजपाई राज्यों में भी होनी ही चाहिए ।
दक्षिण
भारतीय मंदिरों का नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है और मंदिर प्रशासन समिति में अन्य
मतावलम्बी सेक्युलर्स को भी रखा गया है, यही कारण है कि मंदिरों को धर्मनिरपेक्ष बनाने में सफलता
प्राप्त हो सकी है जिसके लिए सभी सनातन विरोधी सेक्युलर्स बधाई के पात्र हैं । बस, एक ही अनुरोध है *कि मंदिरों की तरह मस्जिदों, चर्चों और सिनेगॉग आदि को भी सरकार अपने नियंत्रण में लेकर उनकी
प्रशासन/प्रबंधन समिति में सनातनियों की नियुक्ति करे जिससे सभी पूजा-आराधना स्थलों
में एकरूपता लायी जा सके और उन्हें भी सेक्युलर स्वरूप प्रदान कर दिया जाय ।*
साथ ही यह
भी विनम्र निवेदन है कि भगवान भी सेक्युलर होने चाहिए, कुछ बहुत भले चित्रकार देवी-देवताओं के नग्न और विकृत चित्र
बनाकर उनमें देवत्व के दर्शन कर लिया करते थे उस विधा को व्यापक किया जाना चाहिए
साथ ही उस विधा में अन्य मतों के भी आराध्यों के नग्न और विकृत चित्र सम्मिलित
किये जाने चाहिए जिससे भगवान लोग भी पूरी तरह सेक्युलर हो जाएँ । सामाजिक न्याय, विविधता, भाईचारे और संविधान की रक्षा
के लिए यह सब आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य भी है ।
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