शनिवार, 14 सितंबर 2024

ढीठ ममता की हेकड़ी और वक्फ़ बोर्ड पर हिन्दूप्रतिक्रिया

           उसका आचरण और विचार माओ-जे-दांग की स्मृतियों को ताजा करता है । वह तानाशाह है, और हिंसा एवं क्रूरता में विश्वास रखती है । स्त्री होकर भी वह स्त्रियों के प्रति होने वाली क्रूरता में सहयोगी की भूमिका में पायी जाती रही है । वह अतिमहत्वाकांक्षी है और क्रूरता एवं छल से पूरे भारत की अधिनायक बनना चाहती है । कम से कम ममता के अभी तक के आचरण से यही निष्कर्ष निकलता है ।

ममता अपनी शर्तों पर डॉक्टर्स से बात करना चाहती है जिसका बंगाल के डॉक्टर्स ने बहिष्कार करके बहुत अच्छा उत्तर दिया है । ममता के निरंकुश अहंकार पर यह बहुत बड़ी चोट है, अब वह कुछ भी कर सकती है जबकि मोदी सरकार बंगाल में केवल तमाशा देखने में लगी हुयी है ।

बंगाल ही नहीं पूरे देश में अपराधियों और सत्ता के गठबंधन ने न्याय और व्यवस्था को चुनौती दे रखी है । आम आदमी पार्टी के नेता जेल से बाहर आते ही जनता के बीच जाकर न्यायालय के निर्णय की भ्रामक और कई बार पूरी तरह मिथ्या व्याख्या करते हैं, इस तरह की व्याख्याओं से न्यायालयों को अपने निर्णयों की अवमानना का अनुभव क्यों नहीं होता, क्या यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता ? यदि यह अपराध नहीं है तो यह न्यायालयीन प्रक्रियाओं के साथ बहुत बड़ा परिहास है ।   

भारत में किसी को कानून का भय नहीं है, किसी को अपराध और क्रूरता करने से रोक पाने या दण्डित कर पाने में सारी व्यवस्थायें निष्फल हैं । पाकिस्तान से संचालित ट्रेन जिहाद भारत में प्रारम्भ हो चुका है, अलगाववादी कट्टरपंथियों को जेल में डालने से सरकारें घबराती हैं और आम आदमी का शांतिपूर्वक जीना दूभर हो गया है ।

सोमवार को बारावफ़ात है और सुरक्षा की व्यवस्थायें की जा रही हैं, किंतु जो होना तय है उसे रोक पाना किसी के वश में नहीं है, ऐसा क्यों है ? हिन्दू अपने पूर्वजों के लाखों वर्ष पुराने देश में सुरक्षित क्यों नहीं है ? इसका उत्तर कौन देगा ? क्या कोई हमें सत्ता के औचित्य को समझायेगा!

हिन्दूहितों की बलि चढ़ाने के लिए वक्फ़ बोर्ड को कांग्रेस सरकार द्वारा प्रदत्त असीमित और अन्यायपूर्ण अधिकारों को यथावत् बनाये रखने के लिए मुसलमान पूरी तरह सक्रिय हैं, वहीं हिन्दू समाज, जो कि पीड़ित पक्ष है, अपेक्षाकृत निष्क्रिय और दूरदृष्टिविहीन है । कम से कम संशोधन बिल के समर्थन और विरोध करने वालों की संख्या के अनुपात से तो यही प्रमाणित हो रहा है । यह बहुत ही निराशाजनक स्थिति है, ऐसे स्वाभिमानशून्य समाज की रक्षा तो ईश्वर भी नहीं करना चाहेगा ।

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