दीप बुझे सब, घिर आये तम
तोड़ के सारे भ्रम के बंधन
तुम दीप जला देना
अब और नहीं सोना ॥
हठ झूठे संदेश भी झूठे
झूठे चरखे की झूठी धुन
अब और नहीं सुनना
अब और नहीं सोना ॥
जिसे अहिंसा कह भरमाया
निकली भीतर से वह हिंसा
तेरी झूठी बातों में अब, और नहीं पड़ना
अब और नहीं सोना ॥
जब रात घनेरी हो, पास कोई ना हो
बढ़ जायें असुरों के घेरे
आवाज हमें देना
अब
और न चुप रहना ॥
सनातन की धारा, है मिलकर बचाना
एक हैं हम ये, संकल्प लेना
अब दूर नहीं रहना
कभी दूर नहीं रहना ॥
सनातन हैं हम, सनातन रहेंगे
भगीरथ के वंशज, भगीरथ बनेंगे
यही सोच कर आज संकल्प लेना
अब और नहीं सोना ॥
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