*हमारे नहीं तो किसके बाप का है*
तृणमूल
कांग्रेस के विधायक हमायूँ कबीर ने हुंकार भरी – “हिन्दुओं को गंगा में बहा देंगे”।
आल इंडिया कुर-आन प्रतियोगिता में तीन जुलाई २०२४ को कैबिनेट मंत्री फ़िरहाद हकीम ने हिन्दुओं को धमकाया – “जो इस्लाम में पैदा नहीं वो बदकिस्मत । हिन्दू भी किस्मतवाला हो सकता है, मुसलमान होकर । हिन्दू धर्मपरिवर्तन करें, दावत-ए-इस्लाम में ईमान लाएँ । हिन्दू को जन्नत का रास्ता मुस्लिम बनकर ही मिलेगा । ग़ैर मुस्लिम बेचारे बदकिस्मत होते हैं ।
राम के होने
पर प्रश्न, कृष्ण के होने पर प्रश्न, बहुदेवों के होने पर प्रश्न, मन्दिरों के अस्तित्व पर प्रश्न ...और अब भारत पर अधिकार का प्रश्न
! हमारे घर में घुसकर हमसे ही इतने प्रश्न करने का अधिकार किसने दिया तुम्हें ?
हमने
तालियाँ बजायीं, जब तीन दशक पहले राहत इन्दौरी
ने कहा – “...किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है”।
तुम्हारे लोगों ने इस शेर को लपक लिया और नया नारा बना लिया जिसे नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में ख़ूब गाया गया – “हिन्दुस्तान किसी के बाप का नहीं”।
भारत में
वे कहते हैं – “यह देश किसी के बाप का नहीं है” (कोई देश लावारिस कैसे हो सकता है?)।
ब्रिटेन
में वे कहते हैं – “यह देश किसी के बाप का नहीं है”।
बांग्लादेश
में वे कहते हैं – “यह देश तुम्हारे बाप का नहीं है”।
लंदन में कहते
हैं – “यह देश इस्लामिक कानून से चलेगा”।
नीदरलैण्ड में
कहते हैं – “इस्लामिक कानून हमारा हक है” (तुम्हारे हक हर कहीं हैं, औरों के हक कहीं भी क्यों नहीं हैं?)
एक जिहादी ने
हुँकार भरी – “हिन्दुस्तान छोड़ दो, यह तेरा नहीं है, मेरे ख़्वाज़ा रहमत-ए-उल्ला मोइनुद्दीन चिश्ती का है”।
तुम कव्वालियों
में गाते हो – “हिन्दुस्तान मेरे ख़्वाजा का है”।
...और अब
असम में लोकगीत बिहू की धुन में गाने लगे हो – “असम तोमार बापोर नेकी, खाली मियाँ खेदिबो खुजा” – अल्ताफ़ हुसैन
तुमने कहा –
हिन्दुस्तान किसी के बाप का नहीं है । सच है, हिन्दुस्तान तुम्हारे बाप का तो
नहीं ही है पर हमारे होते हुए यह लावारिस भी
नहीं है । हिन्दुस्तान हमारे बाप के पूर्वजों
के पूर्वजों के... पूर्वजों का था, इसलिए हमारा ही है, किसी और का कैसे हो सकता है!
वर्तमान से
विद्रोह आवश्यक नहीं किंतु आवश्यक हो तो अवश्य होना चाहिये, होता भी रहा है, भारत में ही नहीं दुनिया भर के देशों में भी ।
विद्रोह जब
विद्रोह के लिए नहीं किसी सभ्यता को मिटाने के लिए हो तो उसे कुचला भी जाना चाहिए ।
विद्रोह का असैद्धांतिक और असभ्य स्वरूप मर्यादा की सारी सीमाएँ तोड़ देता है । तुम्हारे विद्रोह में परिमार्जन नहीं, अहंकार है, असहिष्णुता है, समावेशिता का अभाव है और किसी भी देश की सांस्कृतिक धरोहर पर आक्रमण
है ।
अब तनिक ध्यान
से पढ़िये राहत इन्दौरी की ये दो नज़्में –
१.
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
(यही बात जिहादी भी सोचता है और अ-मुसलमानों को शक्तिहीन मानता है)
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त
है (अहंकार की पराकाष्ठा)
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान
थोड़ी है (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर स्वेच्छाचारिता)
जो आज साहिब-इ-मसनद हैं कल नहीं
होंगे (सत्ता को ललकार)
किरायेदार हैं जाती मकान थोड़ी है
(पैतृक सम्पत्ति को चुनौती)
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी
में (शामिल होता तो मिट्टी से बगावत नहीं करता, और मिट्टी को वंदे मातरम् कहता)
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी
है (क्या यह गजवा-ए-हिन्द की खुली घोषणा नहीं?)।
२.
आँख में पानी रखो होठों पे चिंगारी
रखो (पाखंड करने और कटुभाषी होने का संदेश)
ज़िंदा रहना है तो तरक़ीबें बहुत
सारी रखो (वर्चस्व के लिए हर तरह की रणनीति अपनाने का आह्वान)।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने
पर (दरिया एक परम्परा है, सनातन प्रवाह है जिसे ललकारा जा
रहा है)
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ
उड़ जाएँ (धमकी)
तूफ़ानों से आँख मिलाओ सैलाबों पर
वार करो (हिंसा का संदेश)
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो (परम्परा से हटकर केवल अपनी शक्ति पर भरोसा)।
किसी के द्वारा
भिन्न-भिन्न रंगों में भिन्न-भिन्न मंचों से परोसे जाने वाले झूठ को झूठ क्यों नहीं
कहा जाना चाहिए ?
…और हमें अपने चिर-सत्य की यशोगाथा
क्यों नहीं गानी चाहिए ?
सावधान! झूठ की श्रंखला इतनी बड़ी और पुरानी मत होने दो कि उनके हर झूठ दुनिया को सच लगने लगें ।
*हाँ! हिन्दुस्तान हमारा है*
स्पेनिश, जर्मन, पोर्टगीज़, फ़्रेंच, डच या ब्रिटिशर्स ने कभी भी पूरे भारत पर राज्य नहीं किया । स्वतंत्रता
के समय १९४७ में ब्रिटिश पराधीन भारत में कुछ राज्य ही सम्मिलित थे, शेष 565 राज्य देशी रजवाड़े या रियासतें थीं ।
ब्रिटिश
भारत की रेसीडेंसीज़ –
हैदराबाद
रेसीडेंसी (उस्मान अली ख़ान),
जम्मू और
कश्मीर रेसीडेंसी (महाराजा हरि सिंह),
मैसूर
रेसीडेंसी (जयचामराजेंद्र वाडियार),
सिक्किम
रेसीडेंसी (चोग्याल वांग्चुक नामग्याल),
त्रावणकोर रेसीडेंसी (महाराजा पद्मनाथ दास)
ब्रिटिश एजेंसी के रूप में –
1-
बलूचिस्तान एजेंसी, कुल चार रजवाड़े – कलात, खारान और लासबुला मकरान (सभी में मुस्लिम शासक)।
2-
काठियावाड़ एजेंसी, कुछ छह रजवाड़े – ध्रोल, नवानगर, राजकोट, गोंडल, मोरबी और मकाजी मेधपर (सभी में हिन्दू शासक)।
3-
दक्खन राज्य एजेंसी एवं कोल्हापुर रेसीडेंसी, कुल 14 रियासतें – अक्कालकोट, औंध, भोर, जमखंडी, जंजीरा, जथ, कोल्हापुर, कुरुंदवाद वरिष्ठ, कुरुंदवाद कनिष्ठ, मुधोल, फलटण, सांगली, सवानुर और सावंतवाड़ी, (जंजीरा एवं सवानुर में मुस्लिम
शासक, अन्य सभी में हिन्दू शासक) ।
4-
ग्वालियर रेसीडेंसी, कुल छह रियासतें – ग्वालियर, गढ़ा, खनियाधाना, रामगढ़ी, राजगढ़ और रामपुर (रामपुर में
मुस्लिम शासक, अन्य सभी में हिन्दू शासक)।
5-
मद्रास प्रेसीडेंसी, कुल चार रियासतें – बनगानपल्ली, कोच्चि, पुदुकोट्टई और संदूर, (बनगानपल्ली में मुस्लिम शासक, अन्य सभी में हिन्दू शासक)।
6-
उत्तर-पश्चिमी सीमांत राज्य एजेंसी, कुल पाँच रियासतें – अम्ब,चित्राल, दिर, फुलरा और स्वात (सभी में मुस्लिम
शासक )।
7- गिलगित एजेंसी, कुल दो रियासतें – हुंजा और नगर रियासत (दोनों में हिन्दू राजा के अधीन मुस्लिम शासक )।
8-
सिंध प्रांत, कुल एक रियासत – खैरपुर (मुस्लिम
शासक )।
9-
पंजाब एजेंसी, कुल 15 रियासतें – बहावलपुर, बिलासपुर, फ़रीदकोट, जिंद, कल्सिया, कांगड़ा, कपूरथला, लोहारू, मलेरकोटला, मण्डी, नाभा, पटियाला, सिर्मूर, सुकेत और टिहरी गढ़वाल (बहावलपुर, लोहारू, मलेरकोटला में मुस्लिम शासक
अन्य सभी में हिन्दू शासक)।
10-
राजपूताना एजेंसी, कुल 23 रियासतें – अलवर, अहीरवाल, भरतपुर, बीकानेर, बूंदी, धौलपुर, डूंगरपुर, जयपुर, जैसलमेर, झालावाड़, जोधपुर, करौली, किशनगढ़, कोटा, कुशलगढ़, लवा-सरदारगढ़, मेवाड़, तोरावटी, प्रतापगढ़, शाहपुरा, सिरोही, टोंक और अमरकोट (टोंक में मुस्लिम शासक, अन्य सभी में हिन्दू शासक ) ।
11- कुल 33 रजवाड़े ब्रिटिश कम्पनी में पूरी तरह विलित छोटे-बड़े राज्य – अनुगुल, कोडगू, सहारनपुर, कर्नाटक की नवाबत, कुलाब, संबलपुर, कोज्झीकोड, बांदा, सतारा, गुलेर, कोल्लू, जयंतिया, कर्नूल, सूरत, कुट्लेहार, जातिपुर, मकराई, जालौन, जसवान, नागपुर, झांसी, नारगुंड, सिब, तंगावुर, कछारी, अवध, तुलसीपुर, कांगड़ा, पंजाब, कन्नौर, रामगढ़, उदयपुर (छत्तीसग़ढ़) और कित्तूर ।
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के लिए गूगल से पूछ सकते हैं ।
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