बुधवार, 18 सितंबर 2024

प्रजनन, त्रिगुणात्मक प्रकृति और काल (चतुर्युग)

            जीवों में होने वाला प्रजनन प्रकृति की अनिवार्य प्रक्रिया है जो वैकारिक और मानवकृत कारणों से प्रभावित होती है, इसीलिए मनुष्य में लैंगिक असंतुलन ही नहीं, नृवंशीय (Ethnographic) और जातीय (Racial) असंतुलन भी देखने को मिलते हैं ।

जीवनयापन के सीमित संसाधनों के कारण जनसंख्या वृद्धि को और नारी सुरक्षा पर छाये रहने वाले पुरुषकृत संकटों के कारण लैंगिक असंतुलन को आधुनिक सभ्यता का अभिषाप माना जा सकता है । कुछ लोग जनसंख्यावृद्धि को अभिषाप माने जाने से सहमत नहीं हैं, वे जनसंख्या वृद्धि को ईश्वरीय उपहार मानते हैं । हमने अपने बड़े-बूढों के मुँह से दूधों नहाओ, पूतों फलोका आशीर्वाद देते हुये सुना है । यह जानने की उत्सुकता हो सकती है कि क्या अन्य युगों में भी मानव प्रजनन से सम्बंधित समस्यायें हुआ करती थीं ? हमने त्रेतायुग में राजा दिलीप, राजा दशरथ और द्वापर में राजा पांडु के इस समस्या से ग्रस्त होने की कहानियाँ पढ़ी हैं । अर्थात प्रजननिकी हर युग में एक समस्या रही है, इसलिए इस समस्या को उत्पन्न और प्रभावित करने वाले कारणों पर भी चिंतन-मनन और शोध कार्य किये जाते रहे हैं ।

प्रजनन को प्रभावित करने वाले शरीर-रचनात्मक और शरीर-क्रियात्मक कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य भी महत्वपूर्ण घटक हैं जिन पर आधुनिक शोधार्थियों का ध्यान गया है, इनमें जीवनशैली एक प्रमुख घटक है ।

डॉक्टर श्रीमती के.पी. सिंह ने जनसांख्यिकी और मानव प्रजनन पर केद्रित एक अध्ययन में जाति, सम्प्रदाय, आर्थिक, शैक्षणिक, पारम्परिक और आधुनिक जीवन मूल्यों ...आदि घटकों को भी कार्यकारी पाया । उनके अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि निर्धन, श्रमिक वर्ग, अल्पशिक्षित, अशिक्षित, सवर्णेतरहिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों में प्रजननिकी का स्तर बहुत अच्छा है जबकि आर्थिकरूप से सम्पन्न, उच्चशिक्षित और सवर्णहिन्दुओं में प्रजननिकी का स्तर अपेक्षाकृत न्यून है ।

तथाकथित सेक्युलर एवं वामपंथियों को अपने वक्तव्यों पर एक बार पुनः विचार करने की आवश्यकता है जो धर्म, सम्प्रदाय, जाति और वर्ण पर आधारित किसी भी वर्गीकरण को आधारहीन, अवैज्ञानिक और समाज को बाँटने वाला मानते हैं । मोतीहारी वाले मिसिर जी मानते हैं कि – “कुछ भी अवैज्ञानिक नहीं होता, अवैज्ञानिकता भी वैज्ञानिकता का ही एक दूसरा पक्ष है । यदि कोई सकारात्मक पक्ष वैज्ञानिक है तो कोई नकारात्मक पक्ष अवैज्ञानिक कैसे हो सकता है! सकारात्मकता और नकारात्मकता के बारे में हम सबके भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं । किसी पक्ष की स्वीकार्यता और अस्वीकार्यता भिन्न-भिन्न हो सकती है, किंतु इस आधार पर किसी पक्ष को अवैज्ञानिक नहीं माना जा सकता । क्या झूठ, अंधकार, हत्या, अपराध, रुग्णता... आदि नकारात्मक घटनायें अवैज्ञानिक हैं ? क्या कार्य और कारण का सम्बंध अवैज्ञानिक है ? वास्तव में वैज्ञानिकता और अवैज्ञानिकता का बोध मनुष्य की भौतिक सीमाओं का परिणमित बोध है”।

डॉक्टर श्रीमती के.पी. सिंह के शोध-अध्ययन के बाद मनुष्य की त्रिगुणात्मक प्रकृति (सत, रज एवं तम), चतुर्युग, शासनप्रणाली (चीन और जापान के संदर्भ में) और संख्या आधारित निर्वाचन प्रणाली जैसे घटकों के “प्रजननिकी पर प्रभाव” पर भी शोध किये जाने की आवश्यकता है ।

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