गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

गांधी जी की आत्मा के नाम एक खुला पत्र...

हे स्वर्गीय मोहनदास करमचंद गांधी जी !

खेद है कि मैं आपको नमस्ते या राम-राम नहीं लिख सकूँगा क्योंकि भारत में अभिवादन के ये शब्द भगवावाद और फासीवाद के प्रतीक हो गये हैं किंतु अस्सलाम वालेकुम या सलाम जैसे शब्द भी नहीं लिख सकूँगा क्योंकि हमारी भाषा में अभिवादन के भावसमृद्ध शब्दों का लेश भी अभाव नहीं है । अस्तु, मैं सीधे-सीधे अपनी बात लिख रहा हूँ, बुरा मत मानियेगा ।

यह सच है कि हमारी पीढ़ी ने उस समय तक जन्म न होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं दिया किंतु उस समय बोई गयी व्यवस्थायें पल्लवित-पुष्पित होकर आज हमें यह सोचने के लिए विवश करने लगी हैं कि किसी नागरिक के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में स्वतंत्रता का औचित्य क्या है ?

आपने अपने युग में हुये धार्मिक दंगों में नृशंस हिंसा का तांडव देखा है, हम अपने युग में होने वाले धार्मिक दंगों की हिंसा से उत्पीड़ित हो रहे हैं । यह एक सुस्थापित तथ्य है कि विदेशी आक्रमणकारी शासक बनकर भारत की सनातन संस्कृति को नष्ट करने के हर तरह के उपाय करते रहे हैं किंतु स्वतंत्रता के बाद भी इस प्रक्रिया पर विराम नहीं लग सका । उन्हीं विदेशी आक्रमणकारियों के वंशजों द्वारा भारत की सनातन संस्कृति को नष्ट करने और भारत की रही सही डेमोग्राफ़ी को पूरी तरह बदल देने के षड्यंत्र भारत में आज भी फलीभूत हो रहे हैं ।

हे गांधी जी की आत्मा जी ! हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि आज की पीढ़ी को विरासत में जो भारत मिला है वहाँ (असम में) सरकारी सहयोग से चलने वाले दीनी तालीम वाले मदरसों को सामान्य स्कूलों में रूपांतरित किए जाने, क़ाफ़िर की लड़की को प्रेमजाल में फाँसकर धर्मांतरण किये जाने की घटनाओं का विरोध किये जाने और मुस्लिम शासन में मंदिरों को ढहा कर उनके स्थान पर बनायी गयी मस्ज़िदों को पूर्ववत सनातनी आराधना स्थल बनाये जाने की माँग करने से भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सेक्युलरिज़्म के संकटग्रस्त हो जाने के हो-हल्ला से परेशान होकर मुझे प्रायः आपकी याद आती रहती है । भारत में इस्लामिक हुक़ूमत लाने, पूरे भारत को धर्मांतरित करने और क़ाफ़िरों को काटकर फेक देने जैसी भयभीत करने वाली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर खुलेआम मिलने वाली धमकियों ने हमारा जीना दुर्लभ कर दिया है ।

हे गांधी जी की आत्मा जी ! यशपाल की मानें तो साल 1947 में बँटवारे के समय लाहौर में सिखों की लड़कियों के साथ होने वाले दुष्कर्मों की घटनाओं पर दिल्ली में शरणार्थी शिविरों के सिख प्रतिनिधि मण्डल को दी गयी आपकी सलाह मुझे भयभीत करती है इसलिए हम आपसे यह नहीं पूछेंगे कि भारत के सनातनी लोगों को अपनी प्राणरक्षा और सम्मान को बचाने के लिए क्या करना होगा ।

सम्प्रति, हम सनातनी लोग इस्लामिक स्कॉलर्स, मौलवियों, इस्लामिक एक्टिविस्ट्स और भारत विरोधी राजनेताओं द्वारा अपने ऊपर थोपे गये जिन विचारों और व्यवस्थाओं को मानने और स्वीकार करने के लिए विवश किये जा रहे हैं उनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं – 

-      भारतीय मदरसों में दीनी तालीम दिया जाना सेक्युलरिज़्म है किंतु भारत में कुम्भ का आयोजन भगवावाद, संघवाद, फासीवाद और हिटलरशाही है ।

-      मुस्लिम युवक का किसी क़ाफ़िर को दुश्मन मानना किंतु उसकी लड़की से प्रेम करके उसका धर्मांतरण करना और उससे निक़ाह करना शरीयत के अनुसार ज़ायज़ है किंतु किसी हिंदू युवक का किसी मुसलमान की लड़के से प्रेम करना सेक्युलरिज़्म के ख़िलाफ़ है ।

-      भारत में हजारों मंदिरों को ध्वस्त कर उनके ऊपर मस्ज़िद का निर्माण ज़ायज़ है जबकि इस तरह की मस्ज़िदों को पूर्ववत् मंदिर में रूपांतरित करने की माँग़ करना सेक्युलरिज़्म के ख़िलाफ़ है ।

यदि सेक्युलरिज़्म और गंगा-जमुनी तहज़ीब का यही अर्थ और उद्देश्य है तो निस्संदेह भारत की संस्कृति और सभ्यता को बचाये रख पाना असम्भव है, और हम इस तरह की किसी व्यवस्था के विरुद्ध वैचारिक क्रांति करने के लिए बाध्य हैं ।

स्वाधीन भारत में संविधान और क़ानून की धज्जियाँ उड़ाते वक्तव्य...

इण्डिया में इण्डियन पीनल कोड की धारा 124-ए के विरुद्ध खुलेआम सार्वजनिक वक्तव्यों पर आमजनता, प्रबुद्धजनता, नेता, अभिनेता, साहित्यकार, अतिबुद्धिजीवियों और माननीय सुप्रीम कोर्ट की अद्भुत् ख़ामोशी मुझे हैरान नहीं, परेशान करती है । मुझे नहीं मालुम, इन वक्तव्यों पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी –

1-   “चीन के सहयोग से लद्दाख को भारत से खाली करवाया जाय”। – दिनांक 15.10.2020 को जी.न्यूज़ कार्यक्रम में पीडीपी के नेता मोहित भान का आह्वान ।

2-   “जम्मू-कश्मीर में धारा 370 फिर से बहाल करने के लिए चीन से सहयोग लेना चाहिये” । - दिनांक 12.10.2020 को जी.न्यूज़ के एक कार्यक्रम में डॉ. फ़ारुख़ अब्दुल्ला का वीडियो संदेश ।

 

-      हम हैं स्वतंत्र भारत के भयभीत सनातनी नागरिक       

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.