चीन के प्रिय नागरिको!
ॐ नमः
शिवाय !
पूर्व
की महान सांस्कृतिक, अध्यात्मिक और उत्कृष्ट कलाओं की विरासतों वाले दो विशाल देशों की सेनायें
पिछले कई महीनों से सीमा पर आमने-सामने हैं, युद्ध की सी
स्थितियाँ हैं और मैं उस चीन को खोज रहा हूँ जिसे पूरी दुनिया अभी तक “Country of Hundred Schools of Thoughts”
के रूप में जानती रही है ।
प्रकृति
और पुरुष, द्वैत और अद्वैत एवं Yin and Yang जैसे महान अध्यात्मिक
एवं तात्विक विचारों का विकास पूर्व के जिन दो देशों में हुआ है वे देश आज युद्ध
के लिए क्यों तैयार हो रहे हैं ? आज यह प्रश्न हम सबके लिए
विचारणीय है ।
चीन को Confucianism, Taoism एवं Legalism के अतिवाद को छोड़कर एक सर्वहितकारी एवं
समन्वयात्मक विचारधारा विकसित करनी होगी । इसी तरह भारत को भी अपने अतीत की
सर्वकल्याणकारी दार्शनिक विचारधाराओं के व्यावहारिक पक्ष पर पुनर्विचार करना होगा
। हमें महासंहारक युद्ध से दूर रहने के लिए एक-दूसरे की अध्यात्मिक विचारधाराओं,
कलाओं और सामाजिक परम्पराओं का सम्मान करते हुये एवं अपने-अपने
प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुये अपने-अपने देश के सर्वांग़ीण विकास की योजनाओं
में अपना ध्यान केंद्रित करना होगा । आख़िर हम कोई युद्ध किसके लिए करेंगे ?
शक्ति के संतुलन के लिए क्या हमें लाओ-त्सू के चिंतन “Harmony
with the univers rather than fighting” पर गम्भीरतापूर्वक विचार
नहीं करना चाहिए !
हम
मानते हैं कि Confucianism और Legalism किसी देश की आंतरिक व्यवस्था के लिए तो कुछ
सीमा तक व्यावहारिक हो सकते है किंतु अंतर-राष्ट्रीय सम्बंधों में इनका प्रयोग
किया जाना संघर्षों को ही जन्म दे सकता है । हम सबको External motivation की अपेक्षा Internal motivation पर ध्यान देना होगा
।
भारतवर्ष
के हजारों वर्षों के इतिहास में कट्टरता और विस्तारवाद को कभी सम्मान नहीं दिया
गया । राम ने रावण को पराजित किया और श्रीलंका की सत्ता उसके छोटे भाई को सौंप दी, 1971 में
भारत ने मुक्तिवाहिनी को सहयोग किया किंतु विजय के बाद भी भारत और बांग्लादेश के
बीच की सीमाओं को समाप्त नहीं किया । हमने अपनी अंतर-राष्ट्रीय सीमाओं का हमेशा
आदर किया है ।
अंततः, किसी
भी युद्ध का अंत वार्ताओं और समझौतों से ही होता है । युद्ध के बाद भी हमें
एक-दूसरे से वार्ता ही करनी होगी और समझौतों का सम्मान करना होगा किंतु इस बीच जो
हम खो देंगे वह होगा हमारे सैनिकों का अमूल्य जीवन और देश का विकास । सभ्यता के
शीर्ष पर पहुँच कर हमें सहिष्णु, उदार और एक-दूसरे के प्रति
स्वीकार्य होना ही होगा । हम आशा करते हैं कि चीन के नेता और वहाँ के निवासी “No
war but peace and development” पर गम्भीरतापूर्वक विचार करेंगे ।
हम दोनों देशों की शांति और समृद्धि के लिए ईश्वर से कामना करते हैं ।
ॐ शांतिः ! शांतिः !! शांतिः !!!
Dear
citizens of China!
Om
Namah Shivaya!
For the
past several months, armies of two great countries endowed with the heritage of
the great cultural, spiritual and exquisite arts of the east have been face to
face on the Himalayan borders. Now the great Himalaya is not cool, conditions
becoming worst day by day …are prone to brutal war and I am looking for the
China which has been known to the whole world as a "Country of Hundred
Schools of Thoughts".
Why
these two great Eastern Nations who have developed spiritual ideas like
Prakruti and Purusha, Dvaita and Advaita, and Yin and Yang now becoming ready
to war? This question is considerable for all of us.
China
will have to develop an all-inclusive and co-ordinative ideology excluding the
extremism of Confucianism, Taoism and Legalism. In the same way, India also has
to cogitate and revive the practical aspect of well-being philosophical ideologies
of its past. To be away from the catastrophic war, we have to focus on our
all-round development plans for the well being of our nations, respecting each
other's spiritual ideologies, arts and social traditions and using our natural
resources. After all, who shall we wage a war for? Should we not seriously
consider Lao-tsu's contemplation of "Harmony with the univers rather than
fighting" for the balance of power!
We
believe that Confucianism and Legalism may be practical to some extent for the
internal system of a country, but their use in international relations can only
lead to conflicts. We all need to focus on internal motivation rather than
external motivation.
The world
knows that India has never respected fundamentalism and expansionism in its
thousands of years of history. Rama defeated Ravana and handed over the power
of Sri Lanka to his younger brother, and also in 1971 India
supported Muktiwahini but did not abolishe the boundaries between India and
Bangladesh even after the victory. We have always respected the international
boundaries of our neighbours
Ultimately, any war ends with negotiations and agreements. Even after the war, we will have to negotiate with each other and honor the agreements, but in the meantime what we will lose is the invaluable life of our soldiers and the development of our nations. To reach the top of civilization, we have to be tolerant, generous and acceptable to each other. We hope that the leaders and the citizens of China will consider "No war but peace and development" seriously.
We Indians pray to God for the peace and prosperity of both the countries.
Sarve bhavntu sukhinah sarve santu niraamayaah. Om Shaantih! Shaantih!! Shaantih!!! (May all be happy and free from all types of pains. Om! peace! Peace!! Peace!!!)
ॐ शांतिः
! शांतिः !! शांतिः !!!
至 -
中華人民共和國人民
C / O
大使閣下 孫衛東先生
中華人民共和國大使館,新德里
給中國公民的公開信。
在過去的幾個月中,兩個擁有偉大東方文化,精神和精湛藝術遺產的偉大國家的軍隊在喜馬拉雅邊界上面對面。現在,偉大的喜馬拉雅山並不涼爽,情況日益惡化……容易發生殘酷的戰爭,我正在尋找被全世界稱為“一百個思想流派之國”的中國。
為什麼這兩個偉大的東方國家已經發展了精神思想,例如普拉克魯蒂和普魯沙,德瓦塔和阿德瓦塔,以及陰和陽就準備戰鬥了?這個問題對我們所有人都意義重大。
除了儒教,道教和法制極端主義之外,中國將必鬚髮展包容各方,協調一致的意識形態。同樣,印度還必須思考和振興其過去的幸福哲學思想的實際方面。為了擺脫災難性的戰爭,我們必須專注於我們的全面發展計劃,以維護我們國家的福祉,尊重彼此的精神意識形態,藝術和社會傳統,並利用我們的自然資源。畢竟,我們應該為誰發動戰爭?我們是否應該不認真考慮老子對“力量平衡”的沉思!
我們認為,儒家和法制對於一個國家的內部製度可能在某種程度上是可行的,但是它們在國際關係中的使用只會導致衝突。我們都需要關注內部動機,而不是外部動機。
世界都知道,印度在其數千年的歷史中從未尊重過原教旨主義和擴張主義。拉瑪(Rama)擊敗了拉瓦那(Ravana),並將斯里蘭卡的權力移交給了他的弟弟。1971年,印度也支持穆克蒂瓦希尼(Muktiwahini),但即使勝利,印度也沒有廢除印度和孟加拉國之間的邊界。我們一直尊重鄰居的國際邊界
最終,任何戰爭都以談判和協議結束。即使在戰爭之後,我們也必須彼此談判並遵守協議,但是與此同時,我們將失去的是我們寶貴的士兵生活和我們國家的發展。為了達到文明的最高境界,我們必須彼此寬容,慷慨和接受。我們希望中國領導人和公民認真考慮“沒有戰爭,只有和平與發展”。
我們印第安人為兩國的和平與繁榮向上帝祈禱。
Sarve bhavntu
sukhinah sarve santu niraamayaah。哦,Shaantih!香緹! Shaantih !!! (願所有人幸福並擺脫各種痛苦。哦!平安!平安!平安!!)
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