“युवक
के लिए शरीयत, युवती के लिए संविधान” – पीली टोपी वाले मौलाना क़ादरी, दिनांक 03.09.2020
कानपुर
में हिंदू लड़की के धर्मांतरण पर मौलाना क़ादरी ने फ़रमाया कि इस्लाम किसी मुसलमान को
अपना धर्म बदलने की इज़ाज़त नहीं देता लेकिन मामला यदि प्रेम विवाह का हो और लड़की
हिंदू हो तो हिंदू लड़की को भारत का संविधान अपना धर्म बदलने की इज़ाज़त देता है ।
अर्थात सब कुछ नियमानुसार ही हो रहा है इसलिए कानपुर वाले मामले में हिंदू समाजसेवियों
और राजनीतिज्ञों को ज़्यादा हाय तोबा करने की ज़रूरत नहीं है ।
क्या
इतना पर्याप्त नहीं है कि “लव ज़िहाद” और धर्मांतरण की इस घटना को केवल समाचार तक
ही सीमित रखा जाता ? टीवी डिबेट्स में इस तरह के प्रकरणों पर निहायत कुतर्कपूर्ण और उकसाने
वाली विचारधारा वाले लोगों को बारम्बार पेश करने का क्या औचित्य? मुझे लगता है कि इससे माहौल और भी ख़राब हो रहा है । ऐसी बहसों को सुनकर
दर्शकों का एक वर्ग सीना फुलाता है तो दूसरा वर्ग अपने अंदर हीनभावना महसूस करता
है । इस सबका परिणाम क्या होगा, यह सोचने की फ़ुरसत किसी को
नहीं है ।
बेशक!
यदि कोई मुस्लिम युवक तिलक लगाकर और हाथ में कलावा बाँधकर हिंदू होने का भ्रम
प्रकट करते हुए मुम्बई में आतंकी हमला करता है और कानपुर में कोई मुस्लिम युवक
अपना नाम हिंदुओं जैसा रखकर किसी हिंदू लड़की को प्रेमजाल में फँसाकर भारत की
डेमोग्राफ़ी बदलने की सक्रिय मुहिम का एक हिस्सा बनता है तो इस पर गांधीवादी सरकारों
को विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है । यह गांधीपूजक सरकारों के लिए तो चिंता का
विषय है ही नहीं, बल्कि आम हिंदू की चिंता का विषय है जबकि ऐसे मामलों में दासता का अभ्यस्त
आम हिंदू कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता । हाँ! टीवी डिबेट्स में ज़रूर कुछ हिंदू
लोग आपस में बुरी तरह एक-दूसरे पर अप्रासंगिक आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुये देखे जा
सकते हैं । टीवी डिबेट्स में ऐसे दृश्य अब आत्मग्लानि का कारण बन गये हैं ।
उस देश
में जहाँ हिंदू ही हिंदुओं के सर्वनाश के लिए कसम खाये बैठे हों वहाँ किसी सोशल
रिफ़ॉर्मेशन की कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
वीरभोग्या
वसुंधरा कहने वाले हिंदुओं को याद रखना चाहिये कि अब वे वीर नहीं बल्कि भीरु हैं
और जो वीर हैं वे वसुंधरा के भोग के लिए एक दूरदर्शी एवं सुनियोजित रणनीति को अमली
जामा पहनाने में पूरी ईमानदारी और शिद्दत के साथ लगे हुये हैं ।
यदि
हिंदू लड़कियाँ अपनी परम्पराओं को नहीं मानना चाहतीं और किसी भी अनजान युवक से
प्रेम विवाह करने को ही आधुनिकता और बहादुरी समझती हैं तो इसके कारणों को खोजा
जाना चाहिए ...आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है ?
बात चली
है तो जानना चाहता हूँ कि हमारे देश में विद्वानों की कमी नहीं है किंतु उन्हें न
बुलाकर टीवी डिबेट्स में निहायत मूर्खों, असभ्यों, असामाजिक प्रकृतियुक्त और गुण्डत्वपूर्ण मानसिकता वाले लोगों को बारम्बार
परोसने की ऐसी क्या मज़बूरी है ?
सटीक
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