बैठकर हिंदुत्व
के सिंहासन पर
खूब रगड़ा
उसने
राष्ट्रप्रेम
को
भरा सत्ता
की चिलम में
फिर पी गया
।
चढ़ते ही
नशा
भरी हुंकार
शिवाजी की
और ढहा दिया
घर
एक नारी
का
सबने देखा
घूल उड़ी
मुम्बई में
धुआँ उड़ा
पूरे देश
में ।
संत के चोले
में
आया था रावण
हर ले गया
सीता को,
हिंदुत्व
के चोले में
आया है तू
करता है
वार
छल से
अनुपस्थित
नारी की सम्पत्ति पर
करता है
चीर हरण
नारी के
सम्मान का
लेता है
बदला
सच बोलने का ।
एक दिन जल
गई लंका
एक दिन जलेगा
तेरा भी
अहंकार ।
अहंकार का सर नीचा हो ही जाता है एक दिन | शिवसेना ने छद्म रूप में एक नारी की वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दिया सच बोलने की सजा जो देनी थी | सार्थक समसामयिक रचना हार्दिक शुभकामनाएं कौशलेंद्र्म जी |
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