शनिवार, 12 सितंबर 2020

एक और रावण

बैठकर हिंदुत्व के सिंहासन पर

खूब रगड़ा उसने

राष्ट्रप्रेम को

भरा सत्ता की चिलम में

फिर पी गया ।

चढ़ते ही नशा

भरी हुंकार शिवाजी की

और ढहा दिया घर

एक नारी का

सबने देखा

घूल उड़ी

मुम्बई में

धुआँ उड़ा

पूरे देश में ।

 

संत के चोले में

आया था रावण

हर ले गया सीता को, 

हिंदुत्व के चोले में

आया है तू

करता है वार

छल से

अनुपस्थित नारी की सम्पत्ति पर  

करता है चीर हरण

नारी के सम्मान का

लेता है बदला

सच बोलने का ।


एक दिन जल गई लंका

एक दिन जलेगा

तेरा भी अहंकार ।    


1 टिप्पणी:

  1. अहंकार का सर नीचा हो ही जाता है एक दिन | शिवसेना ने छद्म रूप में एक नारी की वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दिया सच बोलने की सजा जो देनी थी | सार्थक समसामयिक रचना हार्दिक शुभकामनाएं कौशलेंद्र्म जी |

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.