गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मारीज़ुआना – एक स्वीकार्य वर्जना ...

ध्यान से देखिये तो पता चलेगा कि थाली में तो छेद ही छेद हैं ।

एक कलाकार की अल्पायु मृत्यु, …मृत्यु के रहस्य को अनावृत करने की माँग, …माँग पर विवाद, …विवाद पर हंगामा, …हंगामे के बाद विवेचना, …विवेचना के मंथन से निकला हलाहल, …हलाहल में डूबे लोग, ... लोगों को बचाने के अभियान की चर्चा, …चर्चा पर थाली में छेद, … वाक्युद्ध अभी चालू है... ।

हलाहल मारीज़ुआना नहीं बल्कि वह निरंकुशता और स्वच्छंदता है जिसने मारीज़ुआना को एक वर्ज्य वस्तु बना दिया है । वातावरण गरम है, और ड्रग्स को लेकर छोटे परदे पर हंगामा है, किंतु मैं ...

...किंतु मैं पहले की तरह आज भी मारीज़ुआना को लीगलाइज़ किए जाने के पक्ष में हूँ । एक चमत्कारी औषधि के दुरुपयोग ने उसे वर्ज्य बना दिया है । पश्चिम के कई देशों में मेडिकल मारीज़ुआना के लिए डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर निर्धारित अवधि के लिए मारीज़ुआना सेवन की अनुमति प्रदान की जाती है । कैंसर के केसेज़ में कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट्स को कम करने और शीघ्र रिकवरी के लिए मेडिकल मारीज़ुआना के निर्धारित डोज़ से होने वाले चमत्कार की ख्याति पूरी दुनिया में है । केवल मजे के लिए और बिना पर्याप्त कारण के मारीज़ुआना का सेवन विषाक्त ही नहीं घातक भी है ।

कौन नहीं जानता कि भारत में मारीज़ुआना का बड़ी मात्रा में सेवन किया जाता है ...कैंसर रोगियों द्वारा नहीं बल्कि कुछ बाबाओं और नसेड़ी शौक़ीनों के द्वारा । इसके अंतर सम्बंधों को समझना होगा ।

दहशत और आतंक के लिए अत्याधुनिक हथियार चाहिये, हथियारों के लिए बेशुमार पैसे चाहिये, बेशुमार पैसे कमाने के लिए ड्रग्स का धंधा चाहिये, ड्रग्स को खपाने के लिए उपभोक्ता चाहिये, उपभोक्ता तैयार करने के लिए बेशुमार पैसे वाले लोग चाहिये, बेशुमार पैसा किसके पास है ?

...तो ड्रग्स का धंधा आतंक से जुड़ा हुआ है और आतंक हथियारों के धंधे से जुड़ा है । आतंक सत्ता को चुनौती देने वाली एक समानांतर व्यवस्था है जिसके मूल में हथियार और ड्र्ग्स का क्रूर खेल है । बड़े-बड़े प्रतिष्ठित देश हथियार बनाते हैं सेना के लिए भी और आतंकवादियों के लिए भी । यह एक बहुत बड़ा उद्योग है, इस उद्योग को समाप्त करने की इच्छाशक्ति फ़िलहाल कहीं दिखाई नहीं देती ।

 

गोराई टु कैप ऑफ़ गुड होप एण्ड मेरी थाली सिर्फ़ मेरी...

वे युवावस्था के दिन थे और वह मेरी पहली मुम्बई यात्रा थी । कई बार जाने के बाद भी दिलवाली दिल्ली तो मुझे कभी नहीं लुभा सकी लेकिन दादर स्टेशन उतरते ही मायानगरी मुम्बई मेरे दिल-ओ-दिमाग में जो बसी तो आज तक बसी हुयी है ।

एक दिन गोराई बीच पहुँच कर गाइड ने बताया था – “यहाँ से समंदर के रास्ते सीधे चले जाइए तो आप कैप ऑफ़ गुड होप पहुँच जायेंगे ...और समंदर का यह बीच ड्र्ग्स के धंधेवालों के लिए स्वर्ग है

मैंने पूछा था – “जब आपको यह सब पता है तो पुलिस तक यह बात क्यों नहीं पहुँची?”

गाइड ने मेरी ओर देखा फिर हँस दिया, गोया कह रहा हो कि बिहारी बहुत बुद्धिमान होते हैं, लेकिन तुम बुद्धू बिहारी हो ।

मुम्बई, अंडरवर्ल्ड और ड्रग्स के रिश्ते वर्षों पुराने हैं । यह बात मेरी जवानी के दिनों में मुम्बई के गाइड ने मुझे बतायी थी । अब आज इतने दिनों के बाद बकौल गाइड मैं वही बात सायकिल सवार साम्राज्ञी को बताना चाहता हूँ ...इस क़ैफ़ियत के साथ कि मैंने कभी किसी की थाली में खाना नहीं खाया है ।    

2 टिप्‍पणियां:

  1. ये जानकारी मेरे लिए नई है कौशलेंद्रम जी
    आप चिकित्सीय सेवाओं से जुड़े हैं सो बेहतर जानते होंगे पर मैं युवा बच्चों की माँ हूँ कभी नहीं चाहूंगी मेरे बच्चे किसी भी तरह के ड्रग के आदी बन जाएँ | सच तो ये है कि प्रभावशाली लोगों की साधन सम्पन्नता ऐसी अय्याशियों का अड्डा बनते है जो आम भोलेभाले आदमी के लिए तबाही का कारण बनती है |

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    1. वही तो । ड्रग को ड्रग ही रहने दिया जाना चाहिये उसे नशा बनाया जायेगा तो उसके हाँइकारक परिणाम भुगतने होंगे । कॉर्टिकोस्टेरॉयड्स जीवनरक्षक ड्रग है लेकिन उसका चाय की तरह हर रोज स्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए । हम भोजन के अभ्यस्त होते हैं किंतु दवाइयों के नहीं । सम्पन्न लोगों ने भोजन को ड्रग्स बना लिया और ड्रग्स को भोजन । सारी गड़बड़ी यहीं पर है । विष मारक है किंतु इमर्जेंसी में वही विष अमृत की तरह जेवन की रक्षा भी करता है ...यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम किस उद्देश्य से और किस तरह से उसकी योजना बनाते हैं ।
      लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद !

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