शनिवार, 12 सितंबर 2020

कोरोना – इनके दावे, उनके वादे...

आज कोरोना के सीरो सर्वे की चौंकाने वाली रिपोर्ट आ गयी है जिसमें बताया गया है कि मई 2020 तक लगभग चौंसठ लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके थे । यह एक रेण्डम सर्वे था किंतु रिपोर्ट में चौंकाने वाली दो बातें ऐसी हैं जिन्होंने कोरोना से सम्बंधित वैज्ञानिकों के अभी तक के दावों को राजनेताओं के वादों की श्रेणी में लाकर पटक दिया है ।

पहली यह है कि कोरोना ने साठ से अधिक उम्र के लोगों की अपेक्षा युवाओं को कहीं अधिक अपना शिकार बनाया जिससे युवाओं में रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक पायी जाने वाली थ्योरी ध्वस्त हो गयी । दूसरी बात यह कि कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं अधिक पायी गयी जिससे ट्रैवेल हिस्ट्री, शहरी प्रदूषण, गाँवों की शुद्ध आब -ओ-हवा आदि की अन्य थ्योरीज़ भी ध्वस्त हो गयीं । यह सब कुछ उतना ही आश्चर्यजनक और अप्रत्याशित है जितना कि कंगना का आशियाना ध्वस्त किया जाना ।

विचारणीय बात यह भी है कि कोरोना संक्रमितों की संख्या शहरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक होने के बाद भी मृत्यु दर शहरों में ही अधिक रही जबकि गाँवों में मृत्यु का इतना शोर-शराबा सुना भी नहीं गया ।

अब तो कुछ भी भरोसे लायक नहीं रहा । सारी गाइड लाइंस, सारे मेडिकल टोटके, लॉक डाउन, मज़दूरों की घर वापसी, भीड़, फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग आदि की कवायदें धरी की धरी रह गयीं और कोरोना मज़े से गाँवों में घूमता रहा और शिकार शहरों में करता रहा ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के लाख हटकने के बाद भी इटली के स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना संक्रमित मृतकों की ऑटोप्सी के बाद अप्रैल 2020 में जो नई गाइड लाइन ज़ारी की है उसने तो कोरोना वायरस के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया है (इस पर भी हम शीघ्र ही एक लेख प्रस्तुत करने वाले हैं) । फ़िलहाल एक बात तो तय है कि अभी तक के सारे वैज्ञानिक दावे धूल में लट्ठ ही मारते रहे हैं । हाँ डॉक्टर्स के लिए इस सदी का सबसे कमाऊ अवसर इससे पहले कभी नहीं आया था ।

एस्प्रिन, क्लोरोक्वीन फ़ॉस्फ़ेट, Remdesivir, गरम पानी से गरारा, संतरे का रस और जैसी तैसी तीमारदारी के बदले में एक लाख रुपये प्रतिदिन की कमायी कम नहीं होती । इन सभी में मूल्यवान दवा Remdesivir की एक वायल की कीमत है चार हज़ार रुपये । एक मरीज़ दस दिन भी रह गया तो केजरीवाल दर से न्यूनतम दस लाख रुपये सीधे हो गये । मैं इसे कमाई का गोल्डेन या डायमण्ड टाइम न कहकर प्लेटिनम टाइम कहना चाहूँगा ।

कल अगरतला की सुमिता ने फ़ोन करके बताया था कि उनकी सहेली के कोरोना संक्रमित पति का गुड़गाँव के एक अस्पताल में पिछले अठारह दिनों से इलाज़ चल रहा है । डॉक्टर साहब का बिल हो गया अठारह लाख रुपये । प्रोफ़ेसर साहब कंगाल हो गये और डॉक्टर साहब मालामाल । जमा पूँजी न्योछावर करने के बाद भी डॉक्टर साहब अभी तक यह नहीं बता रहे हैं कि रोगी की प्रॉग्नोसिस क्या है । बहरहाल सब कुछ लुटाने के बाद मरीज को बिना स्वास्थ्य लाभ के ही वापस घर लाने की तैयारी हो रही है ।


3 टिप्‍पणियां:

  1. चिकित्सक को दूसरा भगवान् कहा गया है पर संकटकाल में भी इन कथित भगवानों का ये आचरण इन सेवाओं का वीभत्स रूप है| ये सच्चाईयां डराती हैं |

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.