बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुस्लिम समुदाय के लिए...

नफ़ीस हिंदुस्तानी में चबा-चबा कर बात कहते हुये अपनी बुद्धिमत्ता का बड़ी ख़ूबसूरती से इज़हार करने वाले स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव यदि उमर ख़ालिद की तारीफ़ में कसीदे पढ़ने लगें तो किसी को अचम्भित नहीं होना चाहिये । भारतीय संविधान नें उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है, अभिव्यक्ति उन विचारों की जो नकारात्मक भी हो सकते है और सकारात्मक भी । पिछले कुछ सालों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर जो हंगामे होते रहे हैं उनसे यह स्पष्ट हो गया है कि यह स्वतंत्रता हमें मनुष्य, दैत्य, देव, दानव या राक्षस बनने की स्वतंत्रता प्रदान करती है ।

दि प्रिंट में प्रकाशित उनके विचार के अनुसार “उमर ख़ालिद की ग़िरफ़्तारी से भारतीय मुसलमानों की युवा पीढ़ी के लिए गरिमामय और लोकतांत्रिक आवाज़ उठाने का दरवाज़ा बंद हो गया है”।

योगेंद्र यादव आगे लिखते हैं – “उमर ख़ालिद उन क्रांतिवीरों में नहीं हैं जो भारतीय राजसत्ता को हिंसा के सहारे पलट देने का दिवास्वप्न देखते हैं । वह लोकतांत्रिक राजनीति के आड़े-तिरछे रास्तों पर चलने की चाहत से भरा नौजवान है ।

...वह वंचना के शिकार अन्य समुदायों – दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं आदि की दयनीय दशा से मुस्लिम समुदाय की वंचना की स्थिति को जोड़कर देखता-समझता है । वो संविधान प्रदत्त अधिकारों के मुहावरे में बोलता है, ठीक वैसे ही जैसे कि किसी अन्य समुदाय का नेता बोलेगा । लेकिन वह ख़ास तौर से एक ऐसे भेदभाव के ख़िलाफ़ बोलता है जो मुसलमानों के साथ उनके मुस्लिम होने के कारण किया जा रहा है और जो अन्य वंचित समुदायों और गरीबों के साथ होने वले भेदभाव से अलहदा है । वह भेदभाव भरे नागरिकता क़ानून के अग्रणी मोर्चे पर रहा लेकिन इस आंदोलन में उसने मुस्लिम सांप्रदायिक संगठनों से दूरी बनाए रखी ।

अगर आप नौजवान हैं, क्रांतिकारी तेवर के हैं, मुसलमान हैं तो फिर उमर ख़ालिद की ग़िरफ़्तारी का आप क्या अर्थ निकालेंगे ? अब आप ये तो नहीं कर सकते कि ना कि नौजवान ही ना रहें । शायद आप युवा के स्वाभाविक बगावती मिजाज़ से भी समझौता नहीं कर सकते और आप ये तो निश्चित ही नहीं चाहेंगे कि अपनी मुस्लिम पहचान से मुँह मोड़ लें, वो भी डर के मारे. जो आप ये सब नहीं करते तो फिर आपके पास विकल्प ही क्या बचता है ?

हो सकता है, उमर ख़ालिद की ग़िरफ़्तारी उसके लिए व्यक्तिगत त्रासदी ना हो, जैसा कि लोकमान्य तिलक ने कहा था, शायद सच यही हो कि आज़ाद रहने के बजाय जेल की कोठरियों में बंद होने से उसकी आवाज़ ज़्यादा गूँजे । ऐसा हो सकता है कि वह इस क़ैद के चलते देश का नायक बनकर उभरे, जिसका वो हक़दार भी है । लेकिन त्रासदी यह है कि उमर ख़ालिद की ग़िरफ़्तारी से भारतीय मुसलमानों की एक पूरी युवा पीढ़ी के लिए गरिमामय और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज़ उठाने का दरवाज़ा मानो बंद हो गया है । दर असल यह त्रासदी उमर ख़ालिद के साथ नहीं, भारत के स्वधर्म के साथ घटित हुयी है” । -  दि प्रिंट, 17 सितम्बर 2020   

           योगेंद्र यादव का यह लेख ऐसे समय में आया है जब शाहीन बाग के बाद हुये दिल्ली दंगों के आरोप में उमर ख़ालिद को ग़िरफ़्तार किया गया है । यह आरोप सही भी हो सकता है और ग़लत भी । जेलयात्रा इन लोगों के लिए एक ऐसा मंच है जो उन्हें रातोरात सात समंदर पार तक चर्चित कर देता है और किसी राजनीतिक दल से टिकट पाने का सुपात्र भी बना देता है । ख़ैर, हम चाहते हैं कि उमर पर लगाये गये आरोप वास्तव में गलत हों और उसे शीघ्र ही जेल से मुक्ति मिल जाय ।    

शायद पिछले साल ही या उसके पहले ...उमर ख़ालिद की उपस्थिति बस्तर में भी देखी गयी थी । मुझे योगेंद्र यादव के इस क्रांतिवीर से मिलने की तनिक भी इच्छा नहीं हुयी थी । बस्तर जे.एन.यू. वालों के लिए एक तीर्थस्थल बन गया है जहाँ से वे अपने आंदोलनों के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं । उन्हें पालघर जैसी दुर्दांत घटनाएँ द्रवित नहीं करतीं और न उसमें उन्हें कोई अन्याय दिखायी देता है ।

          योगेंद्र यादव का क्रांतिवीर “दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं आदि की दयनीय दशा से” प्रेरित होकर  “मुस्लिम समुदाय की वंचना” के लिए “अपने समुदाय” की ओर से आवाज़ उठाने के कारण जेल में डाल दिया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप उसकी आवाज़ और भी बुलंदी से गूँजने की कल्पना के साथ योगेंद्र जी उसे भारत का एक भावी नायक प्लांट करते हैं । मोतीहारी वाले मिसिर जी को योगेंद्र यादव की बात में “दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं आदि” का उल्लेख एक अनावश्यक गोटा लगता है जिसका उद्देश्य केवल भोलेभाले आम नागरिकों को ठगने और भारतीय समाज को बाँटने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।

योगेंद्र यादव ने क़माल की बात की है ...उमर ख़ालिद प्रेरित तो होता है दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं आदि की दयनीय दशा सेकिंतु वह उनके लिए आवाज़ न उठाकर “अपने समुदाय” के लिए आवाज़ उठाता है । मिसिर जी पूछते हैं – “...तब “दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं आदि की दयनीय दशा” सुधारे खातिर आवाज़ के उठाई ? दूसर बात ई के दयनीय दशा बा दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं आदि की” लेकिन तोहार नायक आवाज़ उठावता आपन मुस्लिम समुदाय के ।...मने कैंसर के रोगी बा रमेसर दलित आ इलाज़ करबा नसीरुद्दीन के! गज़ब के किरांती बा तोहार ।

          योगेंद्र यादव जैसे लोग बातों में गोटा लगा कर उनकी प्रदर्शिनी लगाने में दक्ष होते हैं ...बाजार में माल बेचने के लिए उसका गोटेदार होना माक़ूल होता है । मुस्लिम समुदाय की आवाज़ का वज़न बढ़ाने के लिए उसमें दलित, आदिवासी, ओबीसी तथा महिलाओं” का गोटा लगाना आवश्यक है । 

           “अपने समुदाय” की वंचना और बेहतरी के लिए मोहम्मद अली ज़िन्ना ने भारत का बँटवारा करवा लिया । लालच और बढ़ा तो युद्ध करके कश्मीर और बलूचिस्तान भी छीन लिया । मोहम्मद अली ज़िन्ना “अपने समुदाय” के लोगों की बेहतरी के लिए एक अलग घर पाकर ख़ुश तो थे किंतु संतुष्ट नहीं । अब शेष बचे भारत में उमर ख़ालिद को “अपने समुदाय” के लोगों की बेहतरी के लिए क्रांतिवीर बनने की आवश्यकता आन पड़ी है । योगेंद्र यादव चिंतित हैं कि भारत के ऐसे उभरते नायक को जेल में क्यों डाल दिया गया है? योगेंद्र यादव इस बात से बिल्कुल भी चिंतित नहीं हैं कि पालघर में दो संतों और उनके वाहन चालक की पीट–पीट कर नृशंस हत्या क्यों कर दी गयी ? शायद इसलिए क्योंकि वे संत उमर ख़ालिद के “अपने समुदाय” से सम्बंधित नहीं थे ।

मोतीहारी वाले मिसिर जी इस बात से हैरान हैं कि बँटवारे के बाद भी मुस्लिम समुदाय के लिए चिंतित रहने वाले ग़ैरमुस्लिम लोग आख़िर अन्य समुदायों के लिए चिंतित क्यों नहीं होते ? उन्हें यह भी हैरानी होती है कि धर्मनिरपेक्ष देश के लोग समुदायों की बात छोड़कर भारतीय नागरिकों की बात करना आख़िर कब प्रारम्भ करेंगे ?

चलते-चलते

मूल्यांकन की एक बेहतरीन बानगी –

दुनिया के एक सौ प्रभावशाली लोगों में अपना नाम सम्मिलित करवाने के लिए आपको केवल इतना करना होगा

1-      भारत के संविधान का विरोध करें, कैमरा सामने हो तो संविधान की प्रति फाड़ कर उसमें आग लगा दें ।

2-      किसी महानगर के व्यस्त चौराहे को कई महीने के लिए जाम कर दें । 

1 टिप्पणी:

  1. काश मोतिहारी वाले मिसिर जी जितनी समझ यादव जी में भी होती | अल्पसंख्यक युवाओं को भड़काना और राजनीति को चमकाना यही तो हो रहा है राजनीती के नाम पर | सार्थक व्यंग लेख कौश्लेंद्रम जी | सादर

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.