सोमवार, 14 सितंबर 2020

पी.ओ.के. आ मुम्बई के मुक्ति ज़रूरी बा...

बकौल मोतीहारी वाले मिसिर जी – “कॉन्गना के बक्तब्य मँऽ अऽइसन कवन बात बा के ऑतना हंगामा हो रऽहल बा । पीओके आ मुम्बई दूनों हमार हॉ । ई बतिया अ‍ॅकदम सत्य बा के कोई-कोई लोग पीओके आ मुम्बई के बंधक बना के अ‍ॅपना पाकेट में रख लेले बाड़न सऽ । हम तऽ जे.एन.यू. के भी बंधक अस्थिती मँ देखले बानी । घबरइहा झन बेटी ! कुल भारत तोहरए साथ बा । पीओके मुक्त कराये के बा ...मुम्बइयो मुक्त कराये के बा”।

सही बात है, मुम्बई की तुलना पीओके से करने में गद्दारी जैसी कौन सी बात है ? यह हवा में गाँठें लगाना है । क्या आप पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानते? (और क्या यह भी सच नहीं है कि भारत के भीतर बहुत से पाकिस्तान जब-तब भारत को तबाह करते रहते हैं ?)  

भारत के लोग स्पष्ट अनुभव कर रहे हैं कि महाराष्ट्र की शिवसेना में लोकतंत्रात्मक सत्ता की गरिमा का पूर्ण अभाव है । कंगना के प्रकरण में शिवसेना के नेताओं ने सामान्य मर्यादाओं को तार-तार कर दिया है । इससे पहले सुशांत सिंह राजपूत मामले में भी निर्लज्ज होकर पक्षपात करने का खेल खेला जाता रहा । किंतु...   

...जनता की आँखें बहुत तेज हैं और वह समय आने पर अपने अधिकारों का प्रयोग करना सीख गयी है । 

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.