बकौल
मोतीहारी वाले मिसिर जी – “कॉन्गना के बक्तब्य मँऽ अऽइसन कवन बात बा के ऑतना
हंगामा हो रऽहल बा । पीओके आ मुम्बई दूनों हमार हॉ । ई बतिया अॅकदम सत्य बा के
कोई-कोई लोग पीओके आ मुम्बई के बंधक बना के अॅपना पाकेट में रख लेले बाड़न सऽ । हम
तऽ जे.एन.यू. के भी बंधक अस्थिती मँ देखले बानी । घबरइहा झन बेटी ! कुल भारत तोहरए
साथ बा । पीओके मुक्त कराये के बा ...मुम्बइयो मुक्त कराये के बा”।
सही बात
है, मुम्बई की तुलना पीओके से करने में गद्दारी जैसी कौन सी बात है ? यह हवा में गाँठें लगाना है । क्या आप पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानते?
(और क्या यह भी सच नहीं है कि भारत के भीतर बहुत से पाकिस्तान जब-तब
भारत को तबाह करते रहते हैं ?)
भारत के
लोग स्पष्ट अनुभव कर रहे हैं कि महाराष्ट्र की शिवसेना में लोकतंत्रात्मक सत्ता की
गरिमा का पूर्ण अभाव है । कंगना के प्रकरण में शिवसेना के नेताओं ने सामान्य मर्यादाओं
को तार-तार कर दिया है । इससे पहले सुशांत सिंह राजपूत मामले में भी निर्लज्ज होकर
पक्षपात करने का खेल खेला जाता रहा । किंतु...
...जनता की आँखें बहुत तेज हैं और वह समय आने पर अपने अधिकारों का प्रयोग करना सीख गयी है ।
सही बात
जवाब देंहटाएंमिस्र जी तो राजनीति के पी एच डी गये| उनके वक्तव्यों पर शोध की जरूरत है |
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