उसने हिंदुत्व
के सिंहासन पर बैठकर राष्ट्रप्रेम को रगड़ा, सत्ता की चिलम में भरा,
फिर पी गया । नशा चढ़ा तो जय शिवाजी की हुंकार भरकर कंगना का घर ढहा दिया
।
शिवसेना
के फासीवादी चरित्र को बड़ी हैरानी से देख रहा है भारत ।
बढ़ सकती
हैं कंगना की मुश्किलें और हो सकता है उन पर गुरिल्ला आघात ।
Kanganaa’s
problems are proportional to Shivasena’s fascism.
अनैतिक और
राजनीतिक छिछोरेपन का निकृष्टतम उदाहरण...
सत्ता
के लोभ का आकर्षण हो तो चरित्र, सिद्धांत और नैतिक मूल्यों को
किस तरह हलाल कर दिया जाता है इसका उदाहरण है उद्धव ठाकरे की शिवसेना । सत्ता के
लिए गठबंधन तोड़ने वाली शिवसेना सरकार के गृहमंत्री ने कंगना रानावत के प्रकरण में
निर्लज्जता और सरकारी गुण्डेपन की सारी सीमायें तोड़ दी हैं । शिवसेना ने भारतीय राजनीति
को और भी अधिक कलंकित कर दिया है ।
मोतीहारी
वाले मिसिर जी से रहा नहीं गया, आज उन्होंने शिवसेना को श्राप
दे दिया है ।
कंगना
रानावत के शौर्य पर हर भारतवासी को गर्व है ।
कंगना
के घर में बी.एम.सी. की तोड़फोड़ सरकारी गुण्डागर्दी की वह आख़िरी कील है जो अंततः
शिवसेना के ताबूत में ठोंकी जाने वाली है ।
राजनीतिज्ञ
की मौत...
राजनीतिज्ञ
बड़ा अद्भुत प्राणी होता है । वह अपनी ही बिरादरी के किसी अन्य प्राणी को धरती का
सबसे दुष्ट और निकृष्ट प्राणी मानता है ...किंतु केवल तभी तक जब तक वह जीवित रहता
है । बिरादर के मरते ही वही राजनीतिज्ञ प्राणी दुःख के महासागर में डूब जाता है और
कल तक जिसे महापापी सिद्ध किया करता था उसे महापुण्यात्मा सिद्ध करने में लग जाता
है । मीडिया हर वक़्त हर हाथ के साथ रहती है, मण्डन में भी और खण्डन में भी
। मीडिया के लोग भारी गले से शोक प्रकट करते हैं – “...फलाने जी के चले जाने से
देश की अपूरणीय क्षति हुयी है, पूरे देश में शोक की लहर है,
…राजनीति का एक युग समाप्त हो गया” ।
मोतीहारी
वाले मिसिर जी हर बार कसमसा कर रह जाते हैं । वे हिरण्यकश्यप की मौत को एक पर्व की
तरह मनाना चाहते हैं । वे कहना चाहते हैं –
“...चलो अच्छा हुआ, धरती का बोझ कुछ कम हुआ, प्रजा सुखी हुयी, अँधकार छट गया, सुबह होने को है” ।
शायद आज
के लोकतंत्र की अपेक्षा कल का राजतंत्र कहीं अधिक सच्चा था ।
सटीक
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