गुरुवार, 17 सितंबर 2020

ड्रग वहाँ भी है ड्रग यहाँ भी है...

ऑनर बना रहे इसलिए पाप को घर में ही दफ़न कर दो । यह आत्मघाती सोच है जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता । रविकिशन ने इण्डस्ट्री में सफाई की बात की है इससे इण्डस्ट्री बदनाम कैसे हो गयी?

ड्रग ही नहीं ज़िंदा ग़ोश्त का शौक भी है हमारे शहर की नयी पीढ़ी को ...

तीन साल पहले यानी 2016 में हमारे छोटे से शहर के एक अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में मुझे हेल्थ अवेयरनेस का कार्यक्रम करना था । कार्यक्रम के बाद स्कूल के शिक्षक ने अगले कार्यक्रम के लिए जो विषय दिया वह स्कूली छात्रों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति के सम्बंध में था । तभी एक शिक्षिका ने कहा –“केवल नशा ही नहीं, सेक्सुअल बिहैवियर तो और भी अधिक चिंता का विषय है, उस पर भी एक कार्यक्रम होना चाहिये”।

मैं अवाक था जब मुझे बताया गया कि हायर सेकेण्ड्री स्तर के उस विद्यालय के छात्र-छात्रायें पढ़ने-लिखने के स्थान पर नशे और सेक्स की दुनिया में डूबते जा रहे हैं । लड़कियों की इसमें बराबर की सहभागिता है और उनमें नार्योचित शील-संकोच का अभाव भविष्य के एक ऐसे समाज का एक चित्र प्रस्तुत करता है जो बहुत भयावह है ।

पिछले साल यानी 2019 में जिस अस्पताल में मेरा स्थानांतरण हुआ उसके पास कई और सरकारी कार्यालय हैं और मिडिल स्तर के तीन विद्यालय भी । एक दिन ओपीडी में मुझे कुछ अज़ीब सी अप्रिय गंध महसूस हुई तो कर्मचारियों से कहीं कुछ जलने के बारे में पूछताछ करने पर मुझे बताया गया कि ओपीडी की खिड़की जहाँ बाहर की ओर खुलती है वहाँ किशोर लड़के आकर गाँजा पिया करते हैं । गाँजे की गंध से पहली बार परिचित हुआ । बात खुली तो पता चला कि किशोरवय लड़के-लड़कियाँ शराब, गाँजा और सेक्स के लिए अस्पताल बंद होने के बाद उस परिसर का खुलकर स्तेमाल करते हैं और यह सब वहाँ वर्षों से होता आ रहा है ।

इसके बाद मैंने कई बार ओपीडी से निकलकर गँजेड़ी लड़कों को समझाने की कोशिश की, हावभाव से वे लड़के बहुत ग़ुस्ताख़ और असामाजिक लग रहे थे । फिर दो बार मैंने पुलिस को फोन करके बुलाया, पुलिस वालों ने भी गँजेड़ी किशोरों को समझाया और कार्यवाही करने की चेतावनी दी ।

हमार आसपास आज भी सब कुछ यथावत चल रहा है और अब मैंने किसी से कुछ भी कहना बंद कर दिया है ।

माननीया सांसद जया बच्चन के वक्तव्य के बाद तो अब मुझे और भी चुप रहना चाहिये वरना कोई माननीय आरोप लगा सकता है कि मैं उनके शहर को बदनाम कर रहा हूँ और उनकी थाली में छेद कर रहा हूँ । 


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही दहलाने वाली जानकारियां है docter कौशलेंद्र्म जी | नशा कैसा भी हो सही नहीं होता शायद पर यदि एक सीमा में इसका सेवन किया तो ये दवा होता है जानकार लोग इस तरह बताते हैं | दुख कि बात है कि सामाजिक विसंगतियों से लड़कर जीतने वाले नायक सिर्फ हिंदी फिल्मों में रह गये हैं | लडकों का नाम बदनाम है पर आजकल लड़कियां भी स्वछंदता के भंवर में डूबती जा रही हैं और सभी वर्जनाओं को तोड़ना चाहती हैं || इस तरह की बातें मैंने अपन शहर में भी सुनी हैं पर बच्चों की मासूमियत देखतेहुए मैंने कभी ऐसी बातों पर यकीं नहीं किया |

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  2. मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ इसलिए यक़ीन करना पड़ रहा है । मैंने इंजीनितरिंग के एक बहुत अच्छे छात्र को बरबाद होते हुये देखा है । सच बताऊँ तो अब मैं इन स्थितियों से डरने लगा हूँ । कुछ लड़कियाँ सिगरेट और शराब से परहेज़ नहीं करतीं और न छिपकर पीती हैं ...उन्हें यह सब कुछ करने में ही स्वतंत्रता और नारी शक्ति की अनुभूति हो पाती है ।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.