मंगलवार, 9 मार्च 2021

एक देश, दो धारायें...

 

जब कोई विदेशी कहता है – “ इण्डिया इज़ अ कंट्री ऑफ़ कंट्रोवर्सीज़ एण्ड पैराडॉक्सेज़” तो मुझे बुरा लगता है । मैं अक्सर सोचता हूँ कि हमारे घर में कई आँगन, कई आकाश और कई परस्पर विरोधी हवायें क्यों हैं ? निरंतर बढ़ते आंतरिक विरोध की बेचैनी जैसी होनी चाहिये वह हमारे आसपास कहीं दिखायी नहीं देती । क्या हम इन घातक आंतरिक विरोधों से कभी मुक्त नहीं हो सकेंगे ?

यह पैराडॉक्स ऑफ़ द कण्ट्रोवर्सी है कि भारत को लूटने वाले हत्यारों तिमूर लंग और ज़िंगेज ख़ान को भारत के बहुत से लोग अब अपना राष्ट्रीय नायक मानने लगे हैं । ऐसा मानने वालों में उनके वर्णसंकर वंशज भी हैं और कुछ प्रगतिशील हिंदू भी ।

तिमूर लंग और ज़िंगेज ख़ान के मिश्रित जीन्स भारत में आज भी क्रूरता के नये पृष्ठ लिखते जा रहे हैं । वे अपने पूरे अस्तित्व के साथ हमारे बीच में हैं और हम अपने अस्तित्व की रक्षा कर पाने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं ।

वे आक्रामक, लुटेरे, यौनहिंसक और हत्यारे थे । यौनहिंसा से जन्म लेने वाले लोग भी उन यौनहिंसकों को अपना आदर्श मानने लगे हैं । यौनहिंसा पीड़ितों के वंशजों ने हमारे घर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया और अब उन्होंने हमारे आदर्शों को भी छिन्न-भिन्न करना शुरू कर दिया है । मोहम्मद बिन क़ासिम से लेकर आज तक लूटमार, हत्या और यौनहिंसा की घटनाओं को भारत की कोई भी शक्ति रोक नहीं पा रही है । कदाचित भारत का यह सबसे बड़ा दुर्दैव है ।

बलात थोपी गयी महानता...

जो जितना अधिक क्रूर वह उतना ही महान शासक, यह कैसा मूल्यांकन? यह कैसा इतिहास? किताबों में जो लिखा है कि अलेक्ज़ेण्डर, मोहम्मद बिन क़ासिम, ज़िंगेज ख़ान, तिमूर लंग, बाबर और अकबर आदि सब महान शासकों के रूप में भारत पधारे थे, सच नहीं है । वह कौन धूर्त है जिसने इन आततायियों पर महानता का तमगा लगा दिया है?   

राम की विरासत पर चीते का कब्ज़ा...

उज़्बेकिस्तान की फ़रग़ना घाटी के अमीर उमर शेख़ मिर्ज़ा के शाही हरम में  14 फ़रवरी 1483 को जिस बच्चे ने जन्म लिया था उसके शाही ख़ून में पिता की ओर से तिमूर लंग और माँ की ओर से ज़िंगेज ख़ान का ख़ून मिला हुआ था । भारत की धरती पर तिमूर लंग और ज़िंगेज ख़ान की क्रूरताओं ने जो सफ़े लिखे हैं वे भारत के इतिहास को बड़े ख़ौफ़नाक रूप में पेश करते हैं । यही कारण है कि दो ख़ानदानों के क्रूर जेनेटिक मैटेरियल्स ने उमर शेख़ मिर्ज़ा के बेटे ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर (फ़ारसी में चीता) को एक दुस्साहसी लड़ाका बना दिया था ।

ज़हीर-उद-दीन बाबर को फ़रग़ना का उत्तराधिकार मात्र ग्यारह साल की उम्र में ही मिल गया था । उसने अपनी आँखों को खुला और कानों को बंद रख़कर हुक़ूमत शुरू की । कच्ची उम्र में ही बाबर ने फ़रग़ना को समरकंद तक विस्तृत करने का महत्वाकांक्षी सपना देखा और 1497 में उसे पूरा भी किया पर वह वहाँ लम्बे समय तक शासन नहीं कर सका । समरकंद पर शासन करने का बाबर का सपना बारम्बार टूटता रहा जिसके कारण उसे अंततः भारत की ओर देखना पड़ा ।

ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर ने आर्यावर्त के एक राज्य कंधार (काबुल) पर आक्रमण किया और 1504 में उस पर अधिकार कर लिया । बर्बर बाबर ने सन् 1530 तक काबुल पर शासन किया । उसकी क्रूर विजय यात्रा आगे बढ़ती रही, सन् 1504 से लेकर 1526 के बीच उसने भारत के कई राज्यों पर कई विध्वंसक आक्रमण किये । सन् 1519 में पञ्जाब के भीरा और इसके बाद ख़ुशाब को छीनते हुये पेशावर तक अपने राज्य का विस्तार किया । इस घटना से लगभग एक सौ साल पहले बाबर के परनाना तिमूर लंग ने भी भीरा को लूट कर कहर बरपाया था ।

उज़्बेक चीते ने अगले ही वर्ष सन् 1520 में बिजौर और स्यालकोट को भी छीन लिया । उस समय सईदपुर में रहने वाले गुरु नानक देव जी को बाबर की नृशंसता और क्रूरता को गहरे दुःख के साथ देखना पड़ा था ।

बाबर ने अपने अहंकार और लूटकर्म का अगला विस्तार 1524 में किया । उस समय तक बाबर ने गद्दारों की बदौलत लाहौर, जालंधर और दीपालपुर को बिना किसी अधिक प्रतिरोध के छीन कर पञ्जाब में अपने पैर जमा लिये थे । लोदी वंश के गद्दार दौलत ख़ान लोदी ने सन् 1524 में बाबर को दिल्ली की सल्तनत छीन लेने के लिये आमंत्रित किया । 21 अप्रैल 1526 को पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी की हत्या करके बाबर ने दिल्ली भी छीन ली । दिल्ली छीनने के बाद बाबर ने मार्च 1527 में राणा सांगा को भी खानवा के रण में शिकस्त दी । अगले वर्ष 1528 में 45 वर्ष की आयु में राणा सांगा को भारत के गद्दारों ने ज़हर दे दिया । इस तरह भारत में भारतीयों ने मुगल साम्राज्य की स्थापना हो जाने दी । भारतीयों ने मुगल साम्राज्य को अगले तीन सौ साल से अधिक समय तक हिंदुओं पर अत्याचार करते रहने का अधिकार सौंप दिया । 

मात्र दो हजार घुड़सवारों के साथ 1519 में बजौर पर आक्रमण करने वाला बाबर 26 दिसम्बर 1530 को 48 साल की उम्र में मर गया । यह उसकी किस्मत है और भारत का दुर्भाग्य कि भारत के बहुत से लोग उस क्रूर शासक को अपना राष्ट्रीय नायक मानते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह उज़बेकिस्तान और किर्गिज़्स्तान के लोग मानते हैं ।

कोई शासक जब किसी राज्य पर आक्रमण करता है तो उसका उद्देश्य उस राज्य के लोगों को सुख और शांति देना नहीं बल्कि अपने अहंकार का विस्तार करना होता है । कोई भी आक्रमणकारी सुख और शांति का संदेश लेकर नहीं आता, फिर भी हमने क्रूर आक्रमणकारियों, यौनहिंसकों, लुटेरों और हत्यारों को “महान शासक” स्वीकार कर लिया है । पता नहीं. यह हमारी महानता है या भीरुता या फिर दुष्टता! 

2 टिप्‍पणियां:

  1. कहते हैं इतिहास से सीख मिलती है लेकिन जब इतिहास ही गलत पढ़ाया जाय तो क्या हो ।
    बहुत सार्थक लेख ।

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    1. हमें सही इतिहास लेखन और कूटरचित इतिहास के खण्डन के लिये अभियान छेड़ना होगा ।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.