शनिवार, 19 सितंबर 2020

लुगदी साहित्य से एक गीत

 धम धमक धूम, धम धमक धूम

गाँजे का शौक़ पड़ा महँगा

दशकों से जो छिपे रहे, अब राज हो रहे ज़ूम-ज़ूम ।

 

चिखला-चिखला हर ओर हुआ

फिर चरस आज बदनाम हुआ

चोरी है सीना जोरी है, नेता अभिनेता बूम-बूम ।

 

अब तक क्यों चुपचाप रहे

क्यों पकड़ा-धकड़ी का है मंचन

था जाल बुना सबने मिलकर, फिर पाला-पोसा चूम-चूम ।

 

है जाल बहुत लम्बा-चौड़ा

हाथों में सबके एक छोर

किसको पकड़ूँ किसको छोड़ूँ, हर हाथ उठेगा घूम-घूम ।

 

देता है कौन किसे अपनी

चाँदी की थाली बता मुझे

तेरी थाली तेरा गाँजा, कोकीन चरस की धूम-धूम ।   

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.