शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

धर्म-युद्ध का तेरहवाँ दिन...

उठाकर अपना सिर

देखता है एक बच्चा

आसमान में उड़ते युद्धक विमान ।  

भर जाता है गर्व से

भूख से बिलबिलाता छोटा सा बच्चा

सोचता है  

कर ली है कितनी तरक्की

उसके मुल्क ने!

 

होते ही विमान के ओझल

वह फिर माँगने लगता है

भीख

फैलाकर अपने नन्हें हाथ

दे दाता के नाम तुझको अल्ला रक्खे...।

युद्ध

जिस दिन होगा

मर जायेगा यह बच्चा

उड़ जायेंगे हवा में

ज़िस्म के कतरे कतरे 

किसी क्लस्टर बम के गिरने से ।

मर जायेंगे

बहुत से सैनिक

बहुत से परिंदे,

रहेंगे जीवित 

केवल वे

जिन्होंने शुरू की थी जंग ।

बैठेंगे फिर

एक ही टेबल पर

करेंगे 

एक समझौता वार्ता  

और फिर करेंगे हुक़ूमत

अपनी-अपनी रियाया पर ।

2-

महासंहारक हथियारों के

इस ज़ख़ीरे पर

इतराते समय

कितने बेशर्म

और ग़ुस्ताख़ हो जाया करते हो तुम

धूर्त!  

मेरे ख़ून-पसीने की ताक़त को

कितनी चतुरायी से

छिपा लिया है तुमने

इस ज़ख़ीरे के भीतर । 


2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.