गुरुवार, 16 सितंबर 2021

“बिना खड्ग बिना ढाल”

 ...अर्थात भारत का वह इतिहास जिसकी चर्चा नहीं होती

सन् उन्नीस सौ सैंतालीस के बाद जन्म लेने वाली पीढ़ी को यही पढ़ाया और सुनाया जाता रहा कि भारत के लिये जो किया केवल नेहरू और गाँधी ने किया । गाँधी ने खेत जोता और नेहरू ने फसल बोयी जिसके परिणामस्वरूप उनकी प्रजा को एक आधुनिक और औद्योगिक भारत की फसल काटने का सुअवसर प्राप्त हुआ ।

हर साल पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को हमें बताया जाता रहा कि नेहरू का अर्थ है “कुर्बानियों वाला ख़ानदान”। इंदिरा जी ने देश के लिये अपने प्राणों की कुर्बानी दी, उनके दोनों बेटों ने भी देश के लिये प्राणों की कुर्बानी दे दी, फिर इंदिरा जी की बड़ी बहू सोनिया मायनो ने भी प्रधानमंत्री पद की कुर्बानी दे दी ।

उन्नीस सौ सैंतालीस में नेहरू के सामने कुर्बानी न देने की विवशता थी । कहा जाता है कि देश पहली बार स्वतंत्र हुआ था, नेहरू ने किसी तरह सुभाष बाबू को हटाकर और वल्लभ भाई पटेल को किनारे लगाकर प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ किया था, वे अपनी कुर्बानी दे देते तो अंग्रेज़ों के 17 प्रोविंसेज़ और भारतीय राजाओं के 565 प्रिन्सली स्टेट्स का एकछत्र बादशाह कौन बनता!   

जन्म लेने के बाद से भारतीय इतिहास की एकमात्र गाथा हम सब सुनते रहे हैं कि गाँधी ने हमें “बिना खड्ग बिना ढाल” ब्रिटिश पराधीनता से मुक्त कराया और स्वतंत्रता दिला दी । हम बड़े हुये तो एक विदेशी ने बताया कि चौदह अगस्त की आधी रात को ब्रिटिशर्स ने भारत में अपनी हुकूमत वाले सत्रह राज्यों (प्रोविंसेज़) की सत्ता भारत की अंतरिम सरकार के रसूख़दार जवाहरलाल नेहरू को हस्तांतरित कर दी थी, जिसे सुबह होते ही “स्वतंत्रता” कहकर प्रचारित कर दिया गया था । जिन सत्रह राज्यों पर कभी भारतीय राजवंशों का राज्य हुआ करता था, उन्हें छल-बल से ब्रिटिशर्स ने हथियाया और फिर जब भारतीय क्रांतिकारियों ने उनकी नाक में दम कर दिया और ब्रिटेन की अपनी हालत भी कई कारणों से ख़राब होने लगी जिसके कारण वे भारत में और अधिक झेल सकने की स्थिति में नहीं रहे तब उन्होंने उन सत्रह राज्यों की कमान पूर्व राजवंशों को न सौंपकर नेहरू को सौंप दी । इस तरह भारत के सत्रह राज्यों की एकमुश्त बादशाहत नेहरू को मिल गयी, यानी नेहरू पूरे भारत के बादशाह बनने के स्थान पर मात्र सत्रह राज्यों के ही मालिक बन सके । लेकिन नेहरू के सपनों में भारत के वे 565 राज्य और भी थे जिन पर ब्रिटिश सत्ता की हुकूमत नहीं थी बल्कि वे स्वतंत्र राज्य थे और जिनके अपने-अपने राजा, महाराजा, सुल्तान या नवाब थे ।

चौदह अगस्त सन् उन्नीस सौ सैंतालीस की आधीरात को एकमुश्त सत्रह राज्यों की बादशाहत पाकर नेहरू रात भर में ही एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री बन चुके थे । उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा छोड़े गये हथियारों के भारी ज़ख़ीरों के साथ एक सुसज्जित सेना भी विरासत में प्राप्त हुयी थी । नेहरू के सामने चीन और रूस के उदाहरण थे जहाँ कम्युनिज़्म के नाम पर छोटे-छोटे राजाओं से उनके राज्यों को छीनकर दो बड़े राष्ट्र बनाये जा चुके थे ।  

नेहरू को सत्रह नहीं बल्कि भारत के 565 स्वतंत्र राज्यों की भी बादशाहत चाहिये थी । इस काम के लिये उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी पटेल की सेवायें लीं । शरीर से अस्वस्थ पटेल ने अपने राजनीतिक कौशल से 565 राज्यों की बादशाहत सचमुच में “बिना खड्ग बिना ढाल” लाकर नेहरू की झोली में डाल दी । नेहरू अब भारत के सभी 582 राज्यों के मालिक बन चुके थे । यानी ब्रिटिश राज्य ने अपने अधीन रहे भारत के मात्र सत्रह राज्यों को ही हस्तांतरित किया था शेष 565 राज्य नेहरू की किस्मत और पटेल के कौशल से नेहरू को प्राप्त हुये थे ।

ब्रिटिश हुकूमत वाले सत्रह राज्यों से मुक्त होने के लिये तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, सुभाषचंद्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल, सरदार भगतसिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे न जाने कितने क्रांतिकारियों के अतिरिक्त बेशुमार गुमनाम क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों की नाक में दम कर दिया था । तमाम संसाधनों के बाद भी ब्रिटिश अधिकारी भारतीय क्रांतिकारियों के गुरिल्ला युद्ध से ख़ौफ़ खाने लगे थे । ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीयों पर किये जाने वाले नृशंस अत्याचारों के किस्सों से पूरी दुनिया में ब्रिटेन की बदनामी हो चुकी थी । फिर एक समय आया जब योरोप को महामारी और भुखमरी का ही सामना नहीं करना पड़ा बल्कि विश्वयुद्ध का भी सामना करना पड़ा । स्थितियाँ ब्रिटिशर्स के हाथ से खिसकती जा रही थीं । वे एक साथ सभी मोर्चों पर लड़ सकने की स्थिति में नहीं थे अंत में उन्होंने भारत से भाग जाने में ही अपना कल्याण समझा किंतु विघ्नसंतोषी ब्रिटिशर्स ने भागने से पहले भारत में बबूल और नागफनी की भरपूर फसल ऐसी बोयी कि जिसे आज तक हम भारतीय काटने के लिये विवश हैं । अंग्रेज़ों ने भारत के टुकड़े किये और ऐसे लोगों को सत्ता का हस्तांतरण किया जो तन से भारतीय किंतु मन और चिंतन से ब्रिटिशर्स थे ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक आंकलन ।

    ऐसा मन मस्तिष्क बना दिया गया है जो भी नेहरू , गांधी के विरुद्ध बोले वो देशद्रोही ।

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    1. वो क्रिटिक और आज़ादी के नाम पर मनुस्मृति और वेदों का अपमान कर सकते हैं और हम सच को सच भी नहीं कह सकते । किंतु अब यह तस्वीर बदलनी होगी ।

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