हिमांचल
प्रदेश और उत्तराखण्ड के बाद अब अरुणांचल प्रदेश में भी चीनी बसाहट का दूरदर्शी अभियान
प्रारम्भ हो चुका है जिसका प्रतिकार करने के लिये भारत को कोई ठोस कदम उठाना होगा ।
छीन-झपट
और गुण्डई में विश्वास रखने वाले चीन का सामाजिक और राजनीतिक इतिहास उथल-पुथल से
भरा रहा है । चीन में प्रचलित कन्फ़्यूसियनिज़्म, लीगलिज़्म और ताओइज़्म जैसे
चीनी दर्शनों का उदय भी तब हुआ जब चीन में राजनीतिक अस्थिरता और युद्धों से जनजीवन
प्रभावित हो रहा था । इसीलिये चीन में Spring and Autumn period एवं Warring States period को “संकट में दार्शनिक
चिंतन का काल” मानना उचित होगा । चीन के चरित्र को देखकर लगता है कि चीनी दर्शनों का
युग समाप्त हो गया है और वहाँ के राजनीतिज्ञों ने छीन-झपट, गुण्डई
और हिंसा को ही चीन का आधुनिक दर्शन स्वीकार कर लिया है ।
पिछले साल
गलवान घाटी में हुयी गुण्डागर्दी के पहले से ही चीनी छीन-झपट होती रही है । हाल ही
के पाँच-छह वर्षों में चीन ने भारत-भूटान और तिब्बत की सीमाओं के पास आधुनिक सुविधा
सम्पन्न लगभग छह सौ से भी अधिक नये गाँव बसा लिये हैं । चीन इस तरह की गतिविधियाँ हिमांचल
प्रदेश और उत्तराखण्ड में भी करता रहा है । कृपया यह वृत्तचित्र देखें –
भारत और
भूटान इसे ववादास्पद क्षेत्र मानते हैं जबकि चीन इसे अपना क्षेत्र मानता रहा है ।
ब्रिटिशर्स ने 1947 में भारत की सत्ता हस्तांतरण के समय भारत की उत्तरी सीमा के बहुत
से क्षेत्रों को विवादास्पद बना रहने दिया । चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया और
भारत की बहुत सी भूमि छीन ली । ब्रिटिश काल में भी भारतीय जवान इस क्षेत्र की पेट्रोलिंग
करते रहे हैं किंतु 1962 का युद्ध हारने के बाद से ही भारतीय सेना ने इस क्षेत्र की
पेट्रोलिंग बंद कर दी । भारत सरकार का यह निर्णय चीन के लिये एक अच्छा अवसर सिद्ध हुआ
। उसने भारतीय सीमा के समीप सामरिक महत्व के कई निर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिये और
अपनी स्थिति और भी सुदृढ़ कर ली जिसके कारण भारत के सामने सदा ही कुछ न कुछ खोते रहने की स्थिति निर्मित हो गयी ।
भारत-भूटान
और चीन अधिकृत तिब्बत की सीमाओं के पास के क्षेत्र सर्वाधिक विवादास्पद माने जाते हैं
। अरुणांचल के अपर-सुबनसिरी जिले में त्सारी-चू नदी के किनारे के इस क्षेत्र के कई
गाँवों के स्थानीय निवासी स्वयं को सदियों से भारतीय मानते रहे हैं, वहाँ भारतीय
मुद्रा चलती है और बच्चे भारतीय विद्यालयों में पढ़ायी करते हैं । जबकि चीनी प्रवक्ता
इसे अरुणांचल के “अपर-सुबनसिरी” जिले का हिस्सा न मानकर चीन के “जन्गनान” जिले का हिस्सा
मानने का दावा करते हैं । चीनी प्रवक्ता के अनुसार 2015 में तिब्बत इकॉनॉमिक वर्क
कॉन्फ़्रेंस में तिब्बत के पिछड़े क्षेत्रों को आर्थिक गतिविधियों की दृष्टि से विकसित
करने के लिये “पॉवर्टी एलीविएशन प्रोग्राम” की योजना बनायी गयी थी । भारत-तिब्बत सीमा
पर 2015 के बाद से ही “ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम” के अंतर्गत चीनी सरकार द्वारा प्रथम
चरण में छह-सौ ऐसे गाँवों का निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया था जहाँ तथाकथितरूप से आर्थिक
गतिविधियाँ की जानी थीं । सन् 2020 तक चीनी बसाहट के आधुनिक गाँवों की संख्या छह सौ
से भी अधिक हो चुकी है । इनमें से अधिकांश गाँव भारतीय सीमा के बिल्कुल समीप हैं ।
हाल ही में चीनियों ने भारत-चीन की वास्तविक नियंत्रण सीमा रेखा (एल.ए.सी.) के चार
किलोमीटर अंदर घुसकर एक नया गाँव बसा लिया है जिसमें अब तक एक सौ एक घरों का निर्माण
किया जा चुका है । भारत का यह वही क्षेत्र है जहाँ 1962 में भारतीय सेना को पेट्रोलिंग
बंद कर देने का आदेश दिया गया था इसी कारण झपटमार चीन इस क्षेत्र को उलझाये रखकर विवादास्पद
बनाये रखना चाहता है । भारत सरकार द्वारा बारम्बार माँगे जाने पर भी चीन अपने इस क्षेत्र
के नक्शे को कभी साझा नहीं करता जिससे कि स्पष्ट हो सके कि आख़िर वह अरुणांचल के कितने
हिस्से पर चीनी क्षेत्र होने का दावा करता है ।
चीन के अनुसार अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास चीन की बसाहट उस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है और यह चीन का अधिकार भी है । पता चला है कि भौगोलिक स्थिति के कारण उस क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ शून्य हैं या फिर नाममात्र की हैं जबकि सामरिक दृष्टि से चीनी बसाहट का उद्देश्य दूरदर्शी है । फ़िलहाल इन गाँवों में चीनी अधिकारियों, कर्मचारियों और अन्य वालण्टियर्स को बसाया गया है जिन्हें भारत और भूटान के समीपवर्ती गाँवों के लोगों को हर तरह से लुभाने और जासूसी करने का काम दिया गया है जिससे कि वे ग्रामीण आने वाले समय में अपने-अपने क्षेत्रों को चीन में सम्मिलित किये जाने के आंदोलन के लिये तैयार हो सकें । चीन ने अपनी ओर से एक बहुत बड़ी चाल चल दी है । अब भारत को भी अपनी सुरक्षा के लिये कोई बहुत बड़ा और दूरदर्शी कदम उठाना ही होगा ।
भारतीय क्षेत्र में स्थानीय नागरिकों द्वारा चीनी बसाहट का विरोध-प्रदर्शन
उत्तराखण्ड में भारतीय पलायन चीन को वरदान और भारतीयों के लिए उत्तराखण्डियों के लिए?
जवाब देंहटाएंश्राप
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
आभार !
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