आइसिस की पोस्टर गर्ल्स सम्रा और सबीना
ऑस्ट्रिया
के वियेना में रहने वाली दो किशोर लड़कियों - Samra Kesinovic आयु 16 वर्ष,
और Sabina Selimovic- आयु 15 वर्ष ने सन् 2014
में दुनिया भर में तहलका मचा दिया था । यह इतना डरावना और मन-मस्तिष्क को झकझोर देने
वाला तहलका था कि दुनिया भर के चिंतकों को इसे विश्व के लिये एक बहुत बड़ी चेतावनी मानने
के लिये बाध्य होना पड़ा । चेतावनी की गम्भीरता का प्रमुख कारण यह है कि ऑस्ट्रिया
की सम्रा और सबीना के अतिरिक्त, फ़्रांस, ब्रिटेन, ज़र्मनी, आस्ट्रेलिया,
उत्तरी अमेरिका, भारत और बांग्लादेश आदि की
हजारों लड़कियों के वैचारिक ताने-बाने ने आज की मानवीय सभ्यता को कटघरे में खड़ा कर
दिया है ।
पिछले
लगभग डेढ़ दशक से पश्चिमी देशों की हजारों लड़कियाँ स्वेच्छा से आइसिस में अपनी
सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये अपने घर-परिवार और देश को छोड़कर सीरिया और ईराक
जाती रही हैं । आइसिस के सोशल मीडिया के माध्यम से आकर्षित होकर इस्लाम के लिये
समर्पित होने वाली इन लड़कियों की आयु प्रायः 20 से 25 वर्ष तक होती है किंतु 13-15
वर्ष की आयु वाली किशोरियों की संख्या भी कुछ कम नहीं होती । आइसिस में शामिल होने
वाली लड़कियों में 10 प्रतिशत योरोप, उत्तरी अमेरिका और
आस्ट्रेलिया से हैं । योरोप से आने वाली लड़कियों की संख्या में फ़्रांस सबसे आगे है
।
इस्लामिक
चिंतन के विस्तारवादी पक्ष से प्रभावित इन देशों की लड़कियाँ विभिन्न कारणों से आइसिस
में दाख़िल होने का निर्णय लेती हैं । युवा लड़कियों में से जहाँ अधिकांश दुनिया भर
में इस्लाम के विस्तार के लिये धार्मिक योद्धा बनने का ख़्वाब देखती हैं वहीं तेरह
से सत्रह साल की ऐसी किशोरियाँ भी हैं जिनमें से कुछ तो आइसिस के लड़ाकों से निकाह
करके ऐसे बच्चे पैदा करना चाहती हैं जो आगे चलकर आइसिस की परम्परा को आगे भी बनाये
रख सकें जबकि कुछ किशोरियाँ आइसिस के लड़ाकों की स्वेच्छा से यौनदासी बनने का ख़्वाब
देखती हैं । फ़्रेंच सिक्योरिटी एजेंसी के पूर्व प्रमुख Louis Caprioli बताते हैं – “In most cases, women and girls appear to have left
home to marry jihadis, drawn to the idea of supporting their brother fighters
and having jihadist children to continue the spread of Islam. If their husband
dies, they will be given adulation as the wife of martyr”.
गम्भीर
बात यह है कि फ़्रेंच इन्स्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल एण्ड स्ट्रेटेज़िक रिलेशंस के Karim Pakzad के अनुसार इनमें से कई किशोरियाँ के
मन में अपनी आँखों के सामने आइसिस के लड़ाकों द्वारा काफ़िरों का सर काटते हुये
देखने की बड़ी ललक थी । इसका अर्थ यह हुआ कि स्वच्छंद यौनाचार और हिंसा के प्रति
अदम्य लालसा ने इन किशोरियों को आइसिस में दाख़िल होने के लिये प्रेरित किया था ।
यह एक विचित्र स्थिति थी जिसने हमारे सामाजिक और पारिवारिक ताने-बाने का विश्लेषण करने
की आवश्यकता के लिये चिंतकों को बाध्य किया । सिंजर से बलात उठा कर रक्का और मोसुल
लायी गयी लड़कियों की त्रासदीपूर्ण शुरुआत की अपेक्षा यह ठीक विपरीत स्थिति थी
जिसमें ऑस्ट्रिया की किशोरियों ने ख़ुद ही ख़ूँख़्वार शेरों के पिंजड़ों में जाने का
निर्णय किया था । इस्लामिक स्टेट ऑफ़ ईराक एण्ड सीरिया की पोस्टर गर्ल्स के नाम से
चर्चित हुयी ये दोनों किशोरियाँ अब जीवित नहीं हैं । सम्रा केसिनोविच की आइसिस के
लड़ाकों द्वारा अक्टूबर 2014 में हथौड़े से पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी जबकि सबीना
सेलिमोविच की मृत्यु कैसे हुयी इस बारे में केवल अनुमान ही लगाये जा रहे हैं ।
सम्रा
और सबीना जैसी किशोरियों के आइसिस के प्रति दुर्दांत आकर्षण के पाशविक कारणों ने
सभी को हैरान कर दिया है । उन किशोरियों ने जिस विकृत चरमानंद की कल्पना की थी वह
शीघ्र ही एक ऐसी त्रासदी में बदल गया जिसकी उन्होंने कभी कल्पना ही नहीं की थी । वियेना
से भागकर सीरिया के आइसिस केंद्र पहुँची उन दोनों किशोरियों को आइसिस के फ़ाइटर्स ने
उनकी सामूहिक यौनदासी बनने के लिये विवश किया । सम्रा ने स्वेच्छा से आइसिस की जिस
दुनिया में जाने का निर्णय किया था उसी से भागने की कोशिश की और पकड़ी गयी । भागने के
दण्डस्वरूप उसकी निर्मम हत्या कर दी गयी । सबीना सेलिमोविच ने आइसिस विचारधारा के
विस्तार के लिये दो बच्चे पैदा किये जो वास्तव में यौनदुराचार के परिणामस्वरूप
पैदा हुये थे । सबीना भी अधिक दिन तक जीवित नहीं रही, उसकी
मृत्यु हो गयी । सीरिया की डेमोक्रेटिक फ़ोर्स ने रिस्क्यू करके सबीना के बच्चों को
बरामद किया और फिर उन्हें उनके नाना-नानी के पास ऑस्ट्रिया भेज दिया । सम्रा और
सबीना की यह त्रासदी समुद्र में तैरते विशाल हिमखण्ड की चोटी का जरा सा हिस्सा भर
है । अभी तक आइसिस की माँद में पूरी दुनिया से कितनी लड़कियाँ समा चुकी हैं इसका
लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है । एक अनुमान के अनुसार यूएस बेस्ड सीरियन
डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ के द्वारा संचालित शरणार्थी कैम्प अल-हौल में आइसिस के
कैदख़ाने से भागी हुयी लड़कियों और आइसिस की बगावती विधवाओं को रखा गया है जिनकी कुल
संख्या लगभग साठ हजार है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.