रविवार, 12 सितंबर 2021

आख़िरी सबाया The last girl

         उसने सबीया की यातनाओं को देखा ही नहीं भो भी था । पत्थर हो जाने के बाद भी उसके अंदर बची-खुची चेतना ने करवट ली और वह ज्वालामुखी बन गयी । उसने प्रतिज्ञा की कि वह अंतिम सबाया होगी और अब दुनिया की किसी दूसरी लड़की को सबाया नहीं बनने देगी (The last Girl – By Nadia Murad Basee Taha)

त्रेतायुग में अहिल्या चुप रही थी किंतु नादिया चुप नहीं रही, उसने आवाज़ उठायी । साल 2018 में नादिया को शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया किंतु...

क्रूरता की उसी स्क्रिप्ट को तालिबान ने उठा लिया और अफ़गानिस्तान में एक नयी फ़िल्म शूट करने लगा ।

अफगानिस्तान में उठायी गयी लड़कियों को सबीया बनाया जा रहा है, वही दुर्दांत स्क्रिप्ट साल 2021 में फिर से फ़िल्मायी जाने लगी है

नादिया मुराद बसी ताहा ने अभी-अभी अपनी किशोरावस्था की दहलीज़ को पार किया ही था कि अचानक पंद्रह अगस्त 2014 को इस्लामिक स्टेट के कुछ पुरुषों ने उसे स्त्री होने के अपराध में श्राप दे दिया और वह शिला हो गयी । वह लगातार तीन महीनों तक हर पल पर्त दर पर्त शिला होती रही । कई युगों से बड़े इन तीन महीनों के भीतर ही उसने अपनी उम्र की सारी दहलीजों को पार करते हुये अधेड़ उम्र में प्रवेश कर लिया । इस तरह की हजारों लड़कियाँ शिला बनती रही हैं, आज भी बन रही हैं और संयुक्त राष्ट्र संघ निर्बल होकर सब कुछ देख रहा है क्योंकि ...हर युग में मर्यादापुरुषोत्तम राम नहीं होते ।

एक किसान परिवार में जन्मी कुर्दिश यज़ीदी लड़की की उम्र तब मात्र उन्नीस साल थी जब उसके गाँव पर आइसिस के गुरिल्लों ने अल्लाहू-अकबर बोलते हुये हमला कर दिया था । स्कूली छात्रा नादिया के छह भाइयों को छह सौ अन्य ग्रामीण पुरुषों और वृद्ध स्त्रियों के साथ क़त्ल कर दिया गया । युवा स्त्रियों और लड़कियों को इस्लाम के लिये उठा लिया गया । नादिया उनमें से एक थी जिन्हें मोसुल के एक घर में कुछ और युवा लड़कियों के साथ क़ैद करके रखा गया था । यह तब की बात है जब पश्चिमी सीरिया से लेकर पूर्वी ईराक तक के अठासी हजार वर्गकिलोमीटर भूभाग पर रहने वाले आठ मिलियन वाशिदों पर पच्चीस मिलियन डॉलर के इनामी स्वयम्भू ख़लीफ़ा अबू-बकर-अल-बगदादी का इस्लामी निजाम क़ायम हो चुका था ।

पुरानी स्क्रिप्ट की नयी शूटिंग के लिये अफ़गानिस्तान में भी तालिबान गुरिल्लाओं ने यौनदासी बनाने के लिये बारह से लेकर चालीस साल तक की आयु वाली स्त्रियों को बलात उठाना शुरू कर दिया है । यहाँ भी निजाम-ए-मुस्तफ़ा कायम किये जाने की कवायद चालू है । आतंक और क्रूरता को ख़ुदा की इबादत मानने वाले ख़ुदा के बंदे एक नयी तरह की ख़ुदाई दुनिया बनाने जा रहे हैं ।  

यातना भोगती लड़कियों की दर्दनाक चीखों से चरमानंद की अनुभूति करने वाले आइसिस और तालिबान गुरिल्लाओं की बात करने से पहले इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये कि इस लेख के लिखे जाते समय हिंदुत्व उच्छेदन के लिये दुनिया भर के विद्वान त्रिदिवसीय मंथन करने में लगे हुये हैं । मैं “Dismantling Hindutva” को लक्ष्य कर किये जाने वाले वर्चुअल सेमिनार की बात कर रहा हूँ । भारत विरोधी नेता और धार्मिक विद्वान हिंदू आतंकवाद (?) को एक वैश्विक समस्या मानते हैं । ये लोग ईराक, सीरिया, अफगानिस्तान और कश्मीर घाटी में हो रहे जातीय और धार्मिक नरसंहार की घटनाओं को इस्लामिक धर्मयुद्ध का एक हिस्सा मानते हैं और इसीलिये वे यज़ीदी कुर्दों, शबाकों , शियाओं, हज़ारा अफ़गानियों, ताज़िकों, कश्मीरी पंडितों, और सिखों के ज़ेनोसाइड और यौनशोषण के उत्पीड़न की घटनाओं पर मौन रहना चाहते हैं । मानवता और धर्मनिरपेक्षता का झण्डा उठाये फिरने वाले अतिबुद्धिजीवी वर्ग के विद्वानों को हिंदुत्व से बड़ा ख़तरा और किसी से नहीं लगता, उस हिंदुत्व से जिसकी आइडियोलॉज़ी में हिंसा और शोषण का कोई स्थान नहीं होता, उस हिंदुत्व से जिसने न तो धर्मांतरण के लिए कभी कोई मिशन चलाया और न स्त्रियों को नारकीय यातनायें देने के कभी नये-नये शिखर स्थापित करने में विश्वास किया ।  

नादिया की ही तरह अठारह साल की यज़ीदी लड़की जीनान को भी आइसिस की सामूहिक यौनहिंसा का बारम्बार शिकार होना पड़ा । नादिया और ज़ीनान वे यज़ीदी लड़कियाँ हैं जो आइसिस की जेल से भाग सकने में सफल हुयीं और जिन्होंने पत्थर बन जाने के बाद भी ज़हन्नुम के विरुद्ध अपनी आवाज़ को दुनिया के सामने बुलंद किया । हाँ, पत्थर! ईराक और सीरिया की हजारों अन्य लड़कियों की तरह ज़ीनान और नादिया भी पत्थर हो गयी हैं, हँसी उनके चेहरों से सदा के लिये विलुप्त हो चुकी है और भोगे हुये अथाह दर्द पर्त-दर-पर्त पत्थर की तरह स्थायी भाव ग्रहण कर चुके हैं ।

सोलह दिसम्बर 2016 को नादिया ने संयुक्त राष्ट्र में यज़ीदी लड़कियों की नारकीय पीड़ा को व्यक्त करते हुये दुनिया भर से प्रार्थना की कि “बगदादी ख़लीफ़ा नहीं वहशी है, ख़ुदा के लिये उसे और आइसिस को हमेशा के लिये समाप्त कर दिया जाय”।

बगदादी ने निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा क़ायम करने के लिये ख़ूँखार युवाओं के अलावा पंद्रह से पच्चीस साल की आयु वाली लड़कियों को भी अपने दल में शामिल करने के लिये दुनिया भर में अभियान चला रखे थे । इस्लामिक स्टेट के लड़ाके उठायी हुयी ग़ैर इस्लामिक लड़कियों को मोसुल और रक्का की बाजार में बेचते भी थे और एक-दूसरे को तोहफ़े में भी दिया करते थे । इन लड़कियों को यौनदासी बनाने के लिये बारम्बार बेचा जाता था । ध्यान रहे, हम सभ्यता के शीर्ष युग में जीने का दम भरने वाले लोग हैं । कमाल की बात यह है कि लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें पर्दे में रहने के लिये बाध्य करने वाले लोगों को उन्हीं लड़कियों को अपने क़ैदखाने में रहते वक़्त झीने पारदर्शी कपड़े पहनने के लिये बाध्य किया जाता रहा । “बात नहीं मानने” वाली लड़कियों को बुरी तरह पीटा जाता, उन्हें सिगरेट से जलाया जाता और फिर उनके साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म किया जाता । ध्यान रहे, यह सब निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा की आइडियोलॉज़ी के अनुसार किया जा रहा है । यदि आप इस आइडियोलॉज़ी से सहमत नहीं हैं तो फिर आप काफ़िर हैं और आपको जीने का कोई अधिकार नहीं है । हिरण्यकश्यप, कंस और रावण की आइडियोलॉज़ी समय के साथ निरंतर क्रूर होती जाती है, कभी समाप्त नहीं होती ।

ईराक़ी संसद की यज़ीदी सदस्य वियान दाख़िल ने भी पाँच अगस्त 2014 को संसद में रो-रो कर बताया कि यज़ीदी बहुल सिंजर में ईराकी सरकार “कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी” के माध्यम से ज़ुल्म-ओ-सितम ढा रही है, पाँच सौ से अधिक यज़ीदियों की हत्या कर दी गयी है, कई लड़कियों को बाजार में बेचने के लिये उठा लिया गया है और सैकड़ों लोग भूखे-प्यासे घर छोड़कर भागने को मज़बूर हुये हैं ।

ऋषि के श्राप से अहिल्या शिला हो गयी थी । मर्यादापुरुषोत्तम राम ने भावशून्य अहिल्या का उद्धार किया तब कहीं वह श्राप से मुक्त हो सकी । ईराक और सीरिया में भी हजारों स्त्रियाँ शिला बन गयीं हैं, अब वही सिलसिला अफगानिस्तान में भी शुरू कर दिया गया है । स्त्रियों के शिला बनने का यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा?

*सबाया (यौन दासी), सबीया (यौन दासियाँ)

1 टिप्पणी:

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