तालिबान
मेरी माँ को उठा ले गये और अब उनके साथ बुरा-बुरा काम भी करते हैं
अस्लहा थामे हाथ तर्क नहीं सुन सकते, न्याय नहीं देख सकते, उन्हें संवेदना और करुणा जैसे साहित्यिक शब्दों की अनुभूति नहीं होती,
वे सिर्फ़ गोलियाँ चला सकते हैं जिनसे चीखें निकलती हैं और ख़ून बहता
है ।
बुद्धिमान
व्यक्ति तर्क करते हैं, आगे-पीछे की स्थितियों पर मंथन करते हैं और एक दिन उन लोगों द्वारा अचानक
गोलियों से भून दिये जाते हैं जिन्हें लोग बुद्धिमान नहीं मानते । धरती के एक
भूखण्ड पर राज करने के लिये बचते हैं केवल कुछ अराजक तत्व । कलियुग की दुनिया इसी तरह
चल रही है ।
समाज
कभी पूरी तरह सभ्य नहीं होता, उसका एक हिस्सा हमेशा असभ्य बना
रहता है, ठीक वैसे ही जैसे कोई सभ्य व्यक्ति भी अंदर से थोड़ा
सा असभ्य बना रहता है । असंतुलन की स्थिति में सभ्यता ही असभ्यता को प्रश्रय देने लगती
है । सभ्य और असभ्य दोनों ही लोग दुनिया की आँखों में धूल झोंकते हुये लुका-छिपी खेलते
रहते हैं । फिर एक दिन सब नंगे होकर मार-काट मचा देते हैं । मैं इसे युद्ध नहीं,
मृगया (शिकार) कहूँगा । इसमें पुरुष हारते नहीं, मारे जाते हैं, हारती है तो केवल आधी दुनिया और उनके
मासूम बच्चे ।
हमने
बर्बर युग के उस कालखण्ड को भी भोगा है जब शक्ति के स्वच्छंद प्रयोग और रक्तपात को
ही तत्कालीन समाज के लिये बाध्यकारी न्याय माना जाने लगा था । सत्य और न्याय की
सार्वभौमिक और सार्वकालिक परिभाषाओं, मान्यताओं और मूल्यों को नकार
दिया गया था । युद्ध के स्थापित नियमों को उखाड़ फेका गया था और कुछ घुड़सवार लुटेरे
कहीं भी मारकाट और लूटमार करते हुये किसी भी भूखण्ड के अधिपति बन जाया करते थे ।
सभ्य समाज में इस तरह की आसुरी प्रवृत्ति को कभी स्वीकारा नहीं गया किंतु सारी
निंदाओं को नकारते हुये समय-समय पर समय अपने आप को दोहराता रहा है । आज हम एक बार
फिर इतिहास को साक्षात होता हुआ देख रहे हैं ।
हमारे देखते-देखते
सीरिया आदि के बाद अब अफ़गानिस्तान में भी युद्ध हो रहा है । स्वेच्छाचारी मानव
समूहों के निरंकुश आचरण के आतंक से भयभीत लगभग एक लाख अफ़गानी अपनी मातृभूमि से
पलायन करने के प्रयास में हैं । वहाँ की सांसद अनारकली कौर ने रोते हुये
विश्वसमुदाय से विनती की है – “अफ़गानियों को इस तरह मरने के लिये मत छोड़ दीजिये” ।
अधेड़ और बूढ़े तालिबान द्वारा यौनशोषण के लिये उठा लिये जाने के भय से रोती हुयी अफ़गानी
बच्चियाँ पूरी दुनिया से दया की भीख माँग रही हैं – “हमें बचा लो”।
भारत और
पाकिस्तान के बहुत से लोग उन्हीं तालिबान को आज के सर्वाधिक सभ्य मनुष्य मानते
हुये उनका स्वागत कर रहे हैं । ये लोग भारत और पाकिस्तान में तालिबान के
निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा क़ायम किए जाने की प्रतीक्षा में उत्साहित हैं । सभ्य कभी पूरी तरह
सभ्य नहीं हो पाता, विशेषकर तब जब कि उनके पास एक अद्भुत किताब का हवाला भी हो ।
अमेरिका, रूस,
चीन और टर्की जैसे देशों को अफ़गानिस्तान की निर्बल जनता की अथाह
पीड़ा से कोई सरोकार नहीं । यह गृद्धों का झुण्ड है जो अवसर की तलाश में है,
अवसर मिलते ही यह झुण्ड अर्धजीवित मनुष्यों के समूह पर टूट पड़ने के
लिये तैयार है ।
अफ़गानिस्तान
और पाकिस्तान में भी कुछ इंसान रहते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह भारत में भी कुछ शैतान
रहते हैं । मेरी चिंता इंसानों के लिए है, दुनिया भर के इंसानों के लिए ।
मेरी परिभाषा के इंसानों का कोई पारम्परिक धर्म नहीं होता किंतु वे सच्चे धार्मिक हुआ
करते हैं ।
भारत और
पाकिस्तान के कुछ लोग ऐसी तस्वीरों के सत्य को स्वीकार करने से मना कर देते हैं
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