जिस देश में पशुपतिनाथ शिव के साथ नंदी को स्थान दिया गया हो और उनके बिना शिवालय अधूरे से लगते हों, जिस देश में गाय को माता की तरह पूजा जाता हो उसी देश में गोवंश की कारुणिक स्थिति मन और हृदय को विचलित करती है । एक समय था जब गोवंश के कारण ही भारत की कृषिपरम्परा समृद्ध हुयी और हम “शतं जीवेत्” एवं “दूधों नहाओ, पूतों फलो” जैसे आशीर्वाद के साथ श्रेष्ठसभ्यता के वाहक बने । आज हमने अपनी उसी समृद्ध विरासत की धज्जियाँ उड़ा दी हैं ।
हम दूध दुहने के बाद गायों को सड़क पर फेक दी गयीं
सड़ी हुयी सब्जियाँ और पॉलीथिन में लिपटी चीजें खाने के लिये छोड़ देते हैं, बैलों
को ट्रैक्टर्स ने अनुपयोगी प्राणी बना दिया है और साँड़ों को हमने अवांछनीय प्राणी मान
लिया है । गोवंश के प्रति हमारे आचरण से यह सब प्रतिदिन प्रमाणित हो रहा है । एक ओर
तो हम गोमांस को प्रतिबंधित करने की माँग करते हैं तो दूसरी ओर गायों और साँड़ों की
क्रूरता की सीमा तक उपेक्षा करते हैं । सड़क पर छोड़ दिये जाने वाले इस गोवंश में से
न जाने कितनी गायों और साँड़ों की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है । वे लावारिस
की तरह तड़प-तड़प कर सड़क पर पड़े-पड़े मर जाते हैं, आसपास से गुजरने
वाले सभ्य लोगों में से किसी को इतनी फुरसत नहीं होती कि वह इन घायल प्राणियों की आँखों
में भरी पीड़ा को देख भी सकें ।
नंदी की आँख में किसी नुकीली चीज से किये गये क्रूर प्रहार के बाद इलाहाबाद में सड़क पर लावारिस खड़े नंदी
गोवंश के प्रति सड़क दुर्घटना से भी अधिक क्रूरता उन लोगों द्वारा की जाती है जो इन प्राणियों पर घातक आक्रमण कर उन्हें घायल कर देते हैं । तब्बल, कुल्हाड़ी, भाला, छाते की नोक, उबलता पानी और एसिड जैसी चीजों से बड़ी क्रूरतापूर्वक इन प्राणियों को बुरी घायल कर देना आम बात हो गयी है । सभ्यता का दम भरने वाले मनुष्य के दिये घाव के कारण मूक पशु चल नहीं पाते, घाव में प्यूट्रीफ़ेक्शन हो जाता है और उसमें मैगेट्स पड़ जाते हैं । चलने-फिरने में असमर्थता के कारण उन्हें भूखे रहना पड़ता है । घाव से उठने वाली दुर्गंध के कारण कोई भी इन्हें अपने घर या दुकान के सामने खड़ा तक नहीं होने देता । इन घायल और मूक प्राणियों को एक कौर खाने की किसी चीज के लिये लोगों की भीख पर निर्भर होना पड़ता है । लाखों वर्षों से मनुष्य के लिये उपयोगी रहे इन प्राणियों को भीख माँगना नहीं आता और हम अपनी दुकान या घर के सामने इनके खड़े होने से ही क्रुद्ध हो जाते हैं
शरीर
में धँसी कुल्हाड़ी की पीड़ा लिए नंदी को देख जब काँप उठती है क्रूरता, अवाक
हो जाते हैं शब्द और शून्य हो जाती है अभिव्यक्ति तब उठ खड़े होते हैं अनंत प्रश्न
यह कैसी गोपूजा है, यह कैसी सभ्यता जो केवल गोवंश का दोहन करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है? सावधान! गाय की प्रशंसा में गीत गाने और मंदिर में जाकर नंदी की मूर्ति की पूजा अर्चना करने का पाखण्ड एक दिन हमारी हिंदू सभ्यता का काल बनेगा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.