ऐसी न जाने
कितनी कुर्दिश यज़ीदी लड़कियों को बलात यौनदासी की अनंत यंत्रणा से गुजरना पड़ता है
सभ्य
दुनिया में क्या कोई धर्मशास्त्र ऐसा भी है जो लड़कियों के साथ यौनदासी की तरह
व्यवहार करने और उन्हें प्रताड़ित करने की अनुमति देता है? मुझे
नहीं मालूम कि वह कौन सा धर्मशास्त्र है किंतु आइसिस और तालिबान के लड़ाकों का कहना
है कि उनके पास ऐसा धर्मशास्त्र है जिसके निर्देश पर वे ऐसा कर रहे हैं ।
व्यवहार
में यह देखा जाता रहा है कि हर संगठन का अपना एक अलग कानून-कायदा हुआ करता है, फिर
चाहे वह संतों का हो या डाकुओं और क्रूर अपराधियों का या फिर वेश्याओं का ।
संविधान और धर्मशास्त्र भी जीवन और समाज से सम्बंधित कानून-कायदे की ही बात करते
हैं । हर संगठन के सदस्यों के लिये उनके कानून-कायदों का पालन अनिवार्य हुआ करता
है । किंतु इस तरह की बहुलता और भिन्नता कई प्रकार के टकरावों और विवादों का कारण बन
जाया करती है । यह धरती दैत्यों, दानवों, असुरों और राक्षसों आदि के द्वारा बनाये संविधानों से उत्पन्न त्रासदी को भोगते
हुये प्राणियों को देखती रही है । अब यह सभ्य दुनिया को विचार करना है कि क्या
मनुष्य समाज को किसी ऐसे भी संविधान, धर्मशास्त्र या आचरण
संहिता की आवश्यकता होनी चाहिये जो हर किसी के लिये स्वीकार्य और कल्याणकारी हो,
और यह भी कि क्या लुटेरों, नशेड़ियों या
वेश्याओं के अपने संविधानों की बाध्यता आम आदमी के लिये भी उतनी ही आवश्यक है जितनी
कि उनके लिये!
दुनिया
भर में ख़लीफ़ा की हुकूमत क़ायम करने के जिहाद पर निकले आइसिस के लड़ाकों ने सिंजर
जिले के एक गाँव से बारह साल की एक यज़ीदी कुर्दिश बच्ची को उठा लिया । लड़ाके बताते
हैं कि यज़ीदी होने के कारण वह काफ़िर है और जिहाद के दौरान उठायी जाने के कारण
कुरान शरीफ़ के अनुसार माल-ए-गनीमत है । माल-ए-गनीमत होने के कारण उसे अपनी यौनदासी
बनाना वाज़िब और सबब का काम है । जिहाद का महत्वपूर्ण अंग होने के कारण उसके
यौनशोषण को पाप के दायरे से बाहर रखा गया है । यह सब कुरान का निर्देश है ...यानी
एक ऐसी आसमानी किताब का जिसे धर्मशास्त्र का दर्ज़ा दिया गया है – “Sex slavery in
conquered regions of Iraq and Syria and uses the practice as a recruiting tool
is supported by Quran-e-pak.”
लेकिन...
कुरान शरीफ़ के इस निर्देश के पालन की हड़बड़ाहट ने आइसिस के लड़ाकों को निरंकुश कर
दिया जिसके कारण उनमें आपस में ही संघर्ष होने लगे । मज़बूरन आइसिस को एक फतवा जारी
कर विस्तार से यह बताना पड़ा कि जिहादी होने के नाते उन्हें “कैसे
और कब” किसी “काफ़िर लड़की” से यौनसम्बंध बनाने चाहिये जिससे कि उनमें आपसी संघर्ष न हो और जिहादी
लड़ाई भी जारी बनी रहे । यानी क्रूरतापूर्ण व्यवहार को व्यवस्थित तरीके से करने के लिये
एक आचारसंहिता का निर्माण कर दिया गया ।
अल्लाह
के निर्देश पर ख़लीफ़ा की हुकूमत क़ायम करने वालों ने सिंजर जिले से जिन हजारों
लड़कियों को उठाया उनमें यज़ीदियों और ईसाइयों के अतिरिक्त शिया-मुस्लिम भी हैं जो
इस्लाम के अनुसार ग़ैर-मुस्लिम होने के कारण काफ़िर हैं ।
हमने
धार्मिक चेतना के बारे में सुना है किंतु धार्मिक जड़ता और उन्माद के दुष्परिणामों
को भोगा है । ये कैसे धार्मिक निर्देश हैं जिन्होंने अन्य धर्मावलम्बियों के जीवन
को नर्क बना दिया है! यह कितनी आश्चर्यजनक बात है कि जहाँ योरोप, अमेरिका,
आस्ट्रेलिया, भारत और बांग्लादेश आदि देशों की
मुस्लिम लड़कियाँ स्वेच्छा से आइसिस के गहरे कुएँ में कूदने के लिये अपना सर्वस्व
छोड़ रही हैं वहीं सीरिया और ईराक की ग़ैरमुस्लिम लड़कियों को आइसिस के लड़ाके बलात
उठाकर ले जाते हैं । शुरुआत अलग-अलग तरीके से होती है लेकिन दोनों ही स्थितियों
में लड़कियों के भाग्य में केवल यौनदासी बनना ही लिखा होता है, फिर चाहे वह लंदन और केरल से गयी हुयी मुस्लिम लड़की हो या सिंजर से उठायी
गयी कोई काफिर लड़की ।
पिछले
चौदह सौ सालों में काफ़िर लड़कियाँ, जिनमें वे मुस्लिम लड़कियाँ भी
सम्मिलित हैं जिन्हें आइसिस के लोग मुस्लिम नहीं मानते, यह
सीखती रही हैं कि दुनिया के एक धर्मशास्त्र में उनके लिये जलालत और नर्क के
अतिरिक्त और कोई स्थान नहीं है । इस बात को काफ़िर पुरुष अभी तक नहीं समझ सके हैं,
समझ सके होते तो अपने-अपने धार्मिकविभाग के ईश्वरों से इतना तो
अवश्य पूछते कि उन्होंने काफ़िर जाति बनायी ही क्यों, हर किसी
को मुसलमान ही क्यों नहीं बनाया ? अपने दादा की उम्र के
बूढ़ों से रोज नोची-खसोटी जाने वाली बारह साल की यज़ीदी बच्ची की ख़ता क्या है,
इस प्रश्न का उत्तर दुनिया भर के सभ्य समाज को देना ही होगा ।
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