रविवार, 19 सितंबर 2021

सँभल जाइये

 रचते-रचते ही रंग ये निखर पायेगा

कभी तो जरा सा सबर कीजिये ।

वक़्त करवट बदलने को तैयार फिर

आप भी थोड़ा सा अब सँभल जाइये ।  

आ गये हम फिर से अपने शहर

आप भी थोड़ा सा अब ठहर जाइये ।

हाँ सजाया सँवारा है हमने इसे

पृष्ठ इतिहास के भी पलट लीजिये ।

था छुआ मैंने तुमको गज़ल जानकर

यूँ फुफकार ना, मान भी लीजिये ।

पूजते हम वतन को माँ मानकर

आँच आने न देंगे ये सुन लीजिये ।

हाँ ये भारत, सुनो तुम, मेरे बाप का है

मेरे बाप के बाप के बाप के भी बाप का है 

लूटने अब न देंगे सँभल जाइये ।

हो कौन तुम और आये कहाँ से  

पूछ पुरुखों से अपने समझ लीजिये ।

जिनके आदर्श कासिम, बख़्तयार औ बाबर

वे भी कातिल लुटेरे हैं लिख लीजिये ।

है वीरों की आदर्शों की ये धरती

गुरु गोविंद, बंदा, तात्या औ मंगल

रानी झाँसी ओ नीरा को गुन लीजिये ।

4 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.