गुरुवार, 2 सितंबर 2021

सरकारी विद्यालय में धार्मिक घृणा का बीजारोपण


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उपवास रहने और भगवान में आस्था रखने को दण्डनीय अपराध मानते हुये सरकारी विद्यालय के शिक्षक ने विद्यार्थियों को पीटा 

भारतीय विद्यालयों में हिंदुओं के विरुद्ध धार्मिक घृणा फैलाने के लिये एन.सी.ई.आर.टी. के माध्यम से शिक्षाविदों द्वारा वर्षों से षड्यंत्र किये जाते रहे हैं । इस षड्यंत्र के सुदृढ़ धागे पूरे देश में फैले हुये हैं । ईसाई मिशनरी स्कूलों की छोड़िये, सरकारी विद्यालयों में भी यह सब धड़ल्ले से होता रहा है, अभी भी हो रहा है । हिंदू अन्य धर्मावलम्बियों को उनके धर्म के विरुद्ध कभी कोई आपत्तिजनक शिक्षा नहीं देता किंतु ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा ही नहीं बल्कि वामपंथी हिंदुओं और दिग्भ्रमित वनवासियों द्वारा भी सनातनधर्म के विरुद्ध घृणा का बीजारोपण विद्यालयों में आज भी किया जा रहा है जबकि जे.एन.यू. वालों को लगता है कि भारत में उन्हें आज़ादी नहीं मिल सकी है जिसे वे छीन कर ले लेंगे ।  

बस्तर सम्भाग के कोण्डागाँव जिले में गिरोला विकासखण्ड के बुंदापारा ग्राम स्थित शासकीय उच्चतर प्राथमिकशाला के शिक्षक श्रीचरण मरकाम ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने और उपवास करने पर छात्रों को पीट दिया । गुरु जी सनातनधर्म के सिद्धांतों, मान्यताओं और परम्पराओं के विरोधी हैं इसलिए छात्रों को भी अपने जैसा ही बना देना चाहते हैं जिसके लिए वे बालमन में धार्मिक-घृणा का बीजारोपण करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते । विद्यालय के छात्रों के अनुसार गुरु जी ने ज्ञान प्रदान करते हुये अपने छात्रों को बताया कि “हिंदुओं की गायत्री काल्पनिक है, सरस्वती अशिक्षित है वह किसी को क्या ज्ञान देगी । मैं तुम्हारे भगवान को खूँदूँगा (कुचल दूँगा) । तुम लोग भी भगवान को मत मानो । श्रीकृष्ण की सात गर्ल-फ़्रेण्ड थी, वे लड़कियों को स्नान करते समय देखते थे और उनके कपड़े छुपाते थे...”।

भारत का कदाचित ही कोई ऐसा प्रांत होगा जहाँ के अधिकांश ईसाई मिशनरी स्कूलों और कुछ सरकारी विद्यालयों में इस तरह की घटनायें न होती हों, स्थानीय स्तर पर बच्चों के अभिभावक बच्चों के भविष्य को संकट में नहीं डालना चाहते और चुप रहते हैं । कुछ विद्यालयों में तो हिंदी बोलने पर भी बच्चों को प्रताड़ित करने की घटनायें प्रकाश में आती रही हैं । प्रांतीय मातृभाषाओं, सनातन सांस्कृतिक और धार्मिक परम्पराओं के प्रति विद्वेष का यह षड्यंत्र स्वतंत्र भारत में आज भी रचा जा रहा है । उस पर तुर्रा यह कि हमें असहिष्णु बताते हुये हमारे विरुद्ध असहिष्णुता का आरोप भी लगाया जाता रहा है । इतना ही नहीं, अपनी भाषाओं, धार्मिकपरम्पराओं और अध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा के लिये यदि हम भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की बात भी करते हैं तो भारत से लेकर योरोप और अमेरिका तक के वामपंथी विश्वविद्यालयों में तूफ़ान आ जाता है । हम भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का स्वप्न भी नहीं देख सकते, अपनी सुरक्षा का कोई उपाय भी नहीं कर सकते, न हिंदी बोल सकते हैं और न सनातनधर्म का अनुशीलन कर सकते हैं । क्या ये स्थितियाँ हमारे मौलिक अधिकारों और स्वाभिमान के विरुद्ध नहीं हैं? क्या ये स्थितियाँ हमें हमारी स्वतंत्रता की लेश भी अनुभूति करा सकने में समर्थ हैं?

हमारे देश में एक सुदृढ़ लॉबी है जो वनवासियों को हिंदू नहीं मानती; वनवासियों को भड़काया जा रहा है कि वे ही इस देश के मूलनिवासी हैं जबकि हिंदू लोग बाहर से आये हुये आक्रमणकारी हैं । मूलनिवासी एवं बाहरी आक्रमणकारी के कुतर्कों के साथ वनवासी ही नहीं, बौद्ध, सिख एवं जैन आदि परम्पराओं को भी हिंदूधर्म से पृथक करने के षड्यंत्र को समझना होगा । हम कबीलों में बँटे हुये अफगानी नहीं हैं, हमारी गौरवमयी सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत रही है, जब तक हम इस विरासत को सहेजे रहेंगे तब तक भारत अखण्ड, समृद्ध और शांत बना रहेगा ।  

हम शिक्षक को गुरु और आचार्य भी मानते हैं, आचार्य बह है जिसका आचरण अनुकरणीय हो । इस घटना से स्पष्ट है कि शासकीय विद्यालय के शिक्षक श्रीचरण मरकाम की शिक्षाओं और उनके आचरण का अनुकरण किया जाय तो भारत की नयी पीढ़ी घृणा के विष से भर उठेगी । अपने विषाक्त आचरण से शिक्षक की मर्यादाओं को तार-तार कर देने वाला कोई व्यक्ति क्या शिक्षक के पवित्र दायित्वों का निर्वहन कर सकने योग्य है ? जिलाधीश ने ग्रामीणों की लिखित शिकायत, जिसमें वीडियो और ऑडियो प्रमाण भी संलग्न किये गये हैं, पर शिक्षक को निलम्बित कर दिया है किंतु क्या यह पर्याप्त है? ज्ञान के मंदिर में घृणा की खेती करने वाले व्यक्ति को शिक्षक के गरिमामय पद बने रहने का क्या औचित्य है?

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.