चीन और अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों के देवों ने असुरों को वरदान में महाविध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्र दे दिये हैं। वे असुर तो थे ही अब दैत्य भी बन गये हैं। पात्रता का विचार किए बिना किसी को भी संहारक शक्तियाँ प्रदान करने वाले देवों का नाश हो!
हमने उन्हें
रोटी दी, उन्होंने उसका मूल्य हमें धमकी देकर चुका दिया। हमने उन्हें गुरुद्वारे में
इबादत का आमंत्रण दिया, उन्हें बिरियानी खिलायी, बदले में उन्होंने हमारे गुरुद्वारे को ही बम से उड़ा दिया।
हमें उनकी ज़िंदगी की बहुत परवाह है, वदले में हम सब मरने के लिए तैयार हैं।
मृत
लोगों का देश
मनुष्यों
की बायोलॉजिकल या सेलुलर डेथ से पूर्व भी कई प्रकार की मृत्यु होती है जिनके बारे
में प्रायः कोई चर्चा नहीं होती। कुछ लोग नैतिक और सामाजिक मृत्यु की बात करते हैं
जिसे कोई सुनना भी नहीं चाहता। आज उन मौतों की चर्चा आवश्यक हो गयी है जिनसे भारत
सहित दुनिया के कई देश प्रभावित हो चुके हैं।
छोटे-मोटे
अपराध करने वाला व्यक्ति विपन्न और अल्पशिक्षित हो सकता है किंतु बहुत गम्भीर और
बड़े-बड़े अपराध करने वाले लोगों को प्रायः उच्चशिक्षित और सम्पन्न पाया गया है। मनुष्यता
की स्थापना में बड़ी-बड़ी शैक्षणिक उपाधियों और बड़े-बड़े पदों की भूमिका हो सकती है, किंतु
है नहीं, क्योंकि वे जीवन भर मनुष्य नहीं हो पाते।
किसी देश
की आम जनता जब बहुत बड़े-बड़े लोगों को वैचारिक और सांस्कृतिक दृष्टि से मृत पाती है
तो शनैः शनैः वह देश भी मृत होने लगता है। दुनिया के कई देश मृत लोगों के देश बन
चुके हैं, जिनमें भारत सबसे आगे है।
भारत एक
ऐसा देश बन चुका है जो भारत में भारत को खोज रहा है, …जो हर रोगी को स्टीरॉयड्स
खिलाने के हठ पर अड़ा है, …जो हर पर्वत को नदी और हर नदी को पर्वत
बना देने की कार्ययोजनाओं में व्यस्त है, …जो विकास के लिए देश
के प्रत्येक नागरिक को कलेक्टर बना देना चाहता है, …जो गंगा को
जमुना और जमुना को गंगा बना देना चाहता है, …जो गुलाब को बेसरम
का फूल और बेसरम के फूल को गुलाब का फूल बना देने के शोधकार्यों में लगा हुआ है।
खारे और मीठे जल वाले सागरों को एक में
नहीं मिलाया जा सकता। कुछ असभ्य, अतार्किक, अवैज्ञानिक, असामाजिक और हठी लोगों ने हठ करके केले के
पास ही बबूल को भी रोप दिया है। तनिक सी हवा के चलते ही बबूल के काँटे केले के पत्तों
को तार-तार कर देते हैं। हठीले लोगों ने भारत के विकास के लिए हिरणों के जंगल में ही
भूखे शेरों को भी छोड़ दिया है, वे इसे शेरों का मौलिक अधिकार
कहते हैं।
भारत में
चारो ओर बबूल के जंगल बड़ी तीव्रता से बढ़ते जा रहे हैं और केले के पत्तों ने तार-तार
होकर भी मौन रहना सीख लिया है।
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