धर्मांतरण और घरवापसी की घटनाओं ने प्रमाणित किया है कि हिन्दू जब मूर्ख, चिंतनशून्य और पाखण्डी हो जाता है तब वह इस्लाम की ओर देखने लगता है और जब कोई मुसलमान तर्क, चिंतन, मंथन और सत्य की खोज में आगे बढ़ना प्रारम्भ करता है तब वह सनातन की ओर देखना प्रारम्भ कर देता है।
भारत और
दुनिया भर में हो रही हिंसक घटनाएँ यह प्रमाणित करती हैं कि सेक्युलरिज़्म उन सभी
देशों के लिए घातक सिद्ध हुआ है जिनमें बाहर से आने वाले अन्य धर्म के लोगों ने
शरण ली है।
भारत में हिन्दुत्व और सनातन की बात क्यों नहीं होना चाहिए? विश्व की जिस सबसे प्राचीन जीवनपद्धति, संस्कृति और सभ्यता को निरंतर परिमार्जन और विमर्शों के लिए मुक्त रखा गया है, जहाँ स्थिरता नहीं गति है, जहाँ बहिष्कार नहीं समावेश है उसका अपना कोई घोषित देश क्यों नहीं होना चाहिए? जिन्होंने भारत को हमसे छीन लिया है हमें उनसे अपना देश वापस क्यों नहीं लेना चाहिए? भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार उन लोगों का क्यों होना चाहिए जो भारतीय संस्कृति को अपनी संस्कृति नहीं मानते और अरबी संस्कृति को भारत पर थोपना चाहते हैं? भारत के बारम्बार विखण्डन और विघटन के कारणों पर प्रहार क्यों नहीं होना चाहिए? भारत में शरीयत और इस्लाम के वर्चस्व की बात क्यों होना चाहिए? भारत को भारत के तरीके से नहीं अरबी तरीके से चलाने का हठ क्यों होना चाहिए? भारत में रामराज्य क्यों नहीं और निजाम की हुकूमत क्यों होनी चाहिए?
भारत की
आत्मा को पुनर्जीवित करने के मार्ग में जो भी बाधाएँ हैं उन्हें पहचानकर समाप्त
करना होगा। संविधान यदि आड़े आता है तो उसे बदल दिया जाना चाहिए, संविधान
भारत के लिए है, भारत संविधान के लिए नहीं है। भारत का
संविधान सनातन भारतीयों के हित के लिए होना चाहिए न कि विदेशी आक्रमणकारियों और
उनके समर्थकों के हित के लिए? जो संविधान, जो कानून भारत के सनातनियों के हितों की रक्षा कर सकने मे असमर्थ हैं उन्हें
सबके कल्याण के लिए अनुकूल क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए?
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