जो लोग सोचते हैं कि “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी” वे बहुत बड़े भ्रम में हैं। हड़प्पा और माया सभ्यता जैसी कई सभ्यताएँ समाप्त हो गयीं या कर दी गयीं। देववाणी संस्कृत दैनिक व्यवहार से समाप्त हो गयी। सरस्वती नदी और दुनिया के चौथे सबसे बड़े सागर अराल जैसे कई जलस्रोत समाप्त हो गये। जैवविविधता को प्रतिवर्ष कुछ प्राणियों और वनस्पतियों के लुप्त हो जाने का सामना करना पड़ता है। सर्वाइवल के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जो आर्यों की संतति में अब कहीं दिखाई नहीं देता।
मोहनदास
करमचंद के भक्त नरेंद्र दामोदर दास मोदी मुस्लिम तुष्टिकरण का कोई अवसर हाथ से
जाने नहीं देते। हिन्दुत्व की रक्षा के नाम पर वोट लेकर प्रधानमंत्री बने मोदी आज
हिन्दुओं की रक्षा करने के स्थान पर मोहनदास की तरह सनातनियों के लिए काँटे बोने
में लगे हुए हैं। उनकी नीतियाँ मुसलमानों के अन्याय को प्रोत्साहित करती हैं जिससे
सनातनियों का अस्तित्व ही संकट में आ गया है। केंद्र सरकार ने एक बार फिर मुस्लिम
तुष्टिकरण करते हुये अल्पसंख्यकों के हितों के लिए बजट में वृद्धि की है जिसमें
उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, छात्रवृत्ति, आवास
आदि कल्याणकारी योजनाएँ सम्मिलित हैं।
हम टीवी
पर मुस्लिम स्कॉलर्स को भारतीय संस्कृति का अपमान करते हुये, मुस्लिम
इंजीनियर्स और डॉक्टर्स को राष्ट्रविरोधी हिंसक गतिविधियों में और दंगाई मुसलमान
को हिन्दुओं के विरुद्ध विभिन्न गतिविधियों में लिप्त देख रहे हैं। मोदी को लगता
है कि ऐसी कौम के हित के लिए वह सब कुछ किया जाना चाहिए जिसे सनातनियों के लिए करने
की उनके अंदर राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़ता का अभाव है।
इस्लामिक
मुल्क बनाने के लिए अलगाववादी और साम्राज्यवादी मुसलमानों के पास समयबद्ध आक्रामक योजनाएँ
है, निश्चित लक्ष्य है, उनकी कार्ययोजना तैयार है और
उसके क्रियान्वयन के चरण निरंतर आगे बढ़ते ही जा रहे हैं। हम बहुत कुछ खो चुके हैं,
बहुत कुछ खोते जा रहे हैं।
मोदी ने
शाहीन बाग के सामने घुटने टेक दिए, कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा करने
में असफल रहे, राष्ट्रीय नागरिकता पंजी की अब कोई बात भी
नहीं करता, एक देश एक कानून के विरोध का सामना करने से पहले
ही हार मान ली। पालघर के संतों की निर्मम हत्या और नूपुर शर्मा की हत्या के फ़तवे
पर मोदी जी मौन ही रहते हैं। मोहनदास करमचंद की तरह ही मोदी ने भी अपनी गतिविधियों
और नीतियों से सनातनियों को संदेश दे दिया है कि उन्हें अपनी सुरक्षा स्वयं करनी
होगी, भारत का सत्ता तंत्र उनके साथ नहीं है।
किंतु
कोई सनातनी कैसे करेगा अपनी सुरक्षा, जब हिंसा हो रही हो तब कैसे
बचाएँगे वे अपने आप को? इस्लामिक काल में जब हमारी हस्ती बच
सकी तब कुछ राज्यों की सत्तायें हमारे साथ थीं, हमारे पास
महाराणा प्रताप और गुरु गोविंद सिंह जैसे कई जुझारू लोग थे जिन्होंने सनातनियों की
रक्षा के लिए संघर्ष किया, आज तो सनातनियों की रक्षा के लिए
कानून भी नहीं है, मोदी, शाह और
मोहनभागवत की तो बात ही छोड़िए, आज तो हमारे पास हमारे
शंकराचार्य भी नहीं हैं। मुलायमवंश और सोनियावंश तो पहले से ही सनातन विरोधी रहे
हैं। भारत के सनातनियों को अपनी रक्षा का विकल्प खोजना ही होगा अन्यथा एक जनवरी
2050 की सुबह मुसलमानों की योजना को सफल होता हुआ देखने के लिए तैयार रहना होगा।
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