लिखी नहीं जाती मुझसे
सायास कोई कविता
वह तो झरती है जल की तरह
किसी पर्वत शिखर से,
उसके झरने का कारण है
जल का शिखर पर होना
कविता के झरने का कारण है
कविता का अनुभूतियों और संवेदनाओं के शिखर पर होना।
लेखनी अपने आप थिरकने लगती है
कविता जब झरती है।
पीड़ा, शोषण, निर्धनता, स्त्री,
अल्पसंख्यक और दलित ही क्यों बनें
कविता के केंद्र!
बाँध लिया था शिव ने भी
अपनी जटाओं में गंगा को
अंततः मुक्त करना ही पड़ा न!
कविता को क्यों बनाएँ बंदिनी
क्यों हो कुंठा ही कविता का विषय!
रहने दो मुक्त
कविता को सभी सीमाओं से।
मर जाएगी कविता
जिस दिन बन जायेगी वह अस्त्र
हमारी क्षुद्रता का।
कविता के व्यापक संसार में
हिम है, तरल है, उष्ण वाष्प है
हरी घास है, सूखे वृक्ष हैं
सुवासित कुसुम हैं, तीक्ष्ण कंटक हैं
लास्य है, ताण्डव है
प्रेम है, घृणा है
सुख है, दुःख है
जन्म है , मृत्यु है…
बहुत व्यापक है कविता का संसार
और उसके विषय,
समाहित हैं जिसमें
दृष्टव्य और अदृष्टव्य भी।
मैं बाँध नहीं पाया
कविता को कभी
कविता मुझे बाँध लेती है।
सायास कोई कविता
वह तो झरती है जल की तरह
किसी पर्वत शिखर से,
जल का शिखर पर होना
कविता के झरने का कारण है
कविता का अनुभूतियों और संवेदनाओं के शिखर पर होना।
लेखनी अपने आप थिरकने लगती है
कविता जब झरती है।
पीड़ा, शोषण, निर्धनता, स्त्री,
कविता के केंद्र!
बाँध लिया था शिव ने भी
अपनी जटाओं में गंगा को
अंततः मुक्त करना ही पड़ा न!
कविता को क्यों बनाएँ बंदिनी
क्यों हो कुंठा ही कविता का विषय!
रहने दो मुक्त
कविता को सभी सीमाओं से।
मर जाएगी कविता
जिस दिन बन जायेगी वह अस्त्र
हमारी क्षुद्रता का।
कविता के व्यापक संसार में
हिम है, तरल है, उष्ण वाष्प है
और उसके विषय,
दृष्टव्य और अदृष्टव्य भी।
मैं बाँध नहीं पाया
कविता को कभी
कविता मुझे बाँध लेती है।
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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.