गुरुवार, 16 जून 2022

क्या हम हारते जा रहे हैं

           अँधेरों की विजय यात्रा अनवरत है जिसे रोक पाने में हम असमर्थ होते जा रहे हैं।

जब हम अपनी बोलियों और समझ में उलटी गंगा बहाना प्रारम्भ कर देते हैं तो आक्रमण को अपराध बिल्कुल नहीं माना जाता जबकि प्रत्याक्रमण को बहुत गम्भीर अपराध माना जाने लगता है। जिन चार शब्दों विवादास्पद बयानऔर बेतुकी बातके माध्यम से हम सब पूरी बाजी उलट देते हैं वे इतने बड़े षड्यंत्र के निर्णायक उपकरण हैं जो निरपराधी को अपराधी और अपराधी को अपराधमुक्त कर देते हैं। सोशल मीडिया इन शब्दों के प्रति या तो गम्भीर नहीं है या फिर वह भी इस षड्यंत्र में सम्मिलित है।

सनातनी आराध्यों को लेकर वर्षों से सोशल मीडिया पर अश्लील और अपमानजनक बातें बोली और लिखी जाती रही हैं। इसे कभी किसी ने अपराध नहीं माना किंतु जब इनका विरोध प्रारम्भ हुआ तो इसे विवादास्पद बयानऔर बेतुकी बातकहकर वातावरण को विषाक्त बनाना प्रारम्भ कर दिया गया। शासन-प्रशासन द्वारा भी वास्तविक अपराधी पर तो कोई कार्यवाही नहीं की जाती किंतु निरपराधी पर तुरंत कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जाती है। इसका सबसे प्रमाण तो हम सोशल मीडिया और टीवी पर दिन भर देखते-सुनते हैं। शिव, गणेश, दुर्गा, ब्रह्मा, सरस्वती, गाय, पंचगव्य, वेद, पुराण आदि भारतीय ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति से जुड़े सभी प्रतीकों पर प्रतिदिन न जाने कितनी बार आक्रमण किये जाते हैं, इन आक्रमणों पर शासन-प्रशासन क्या कार्यवाही करता है? यदि कार्यवाही हुयी होती तो टीवी डिबेट्स में दिखायी देने वाले लोगों की भीड़ अब तक जेल में होती। यह भीड़ जेल में नहीं है किंतु नूपुर शर्मा का सर तन से जुदा करने के लिए उन्हें भीड़ के हवाले कर दिए जाने के लिए दुनिया भर में हंगामें हो रहे हैं। यह न्याय और नैतिक मूल्यों के साथ सामूहिक बलात्कार है जिसके लिए हम सत्ता को निर्दोष नहीं मान सकते।  

एशियायी ही नहीं बल्कि सभ्य और विकसित माने जाने वाले अमेरिकी और योरोपीय देशों में भी नूपुर शर्मा को लेकर जो अन्यायपूर्ण समझ बनी है वह प्रदर्शित करती है कि धरती की एक बहुत बड़ी भीड़ को तर्क, नैतिकता और न्याय से कोई मतलब नहीं।

भारत के तार्किक मुसलमानों ने जिस निर्भयता और सत्य के साथ अन्याय और अत्याचारों का विरोध करना प्रारम्भ किया है, सनातनियों में उसका लगभग अभाव देखा जा रहा है। मुसलमानों का सनातन के प्रति तर्कपूर्ण आकर्षण एक दार्शनिक और तात्विक क्रांति है जिसके लिए उन्हें प्रकृति की सभी सात्विक ऊर्जाओं का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है। दुनिया भर के तार्किकों की तरह हम भी यह समझ पाने में असमर्थ रहे हैं कि तमसोमा ज्योतिर्गमय को अपने जीवन का आदर्श मानने वाले सनातनी बंधु प्रकाश की ओर गमन क्यों नहीं करना चाहते, वे अँधकार में ही क्यों डूबे रहना चाहते हैं?   

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