हैरान क्यों तुम मिल के मुझसे
हर बार कुछ
ना कुछ पूछते हो
जितना पढ़ना
हो तुम भी पढ़ लो
किताब मेरी
खुली हुयी है॥
आरोप है
मुझपे ये सबका
कि बकबक
मैं ही करता बहुत हूँ
मैं उनके
हिस्से का बोलता हूँ
ज़ुबान जिनकी
सिली हुयी है॥
अभी-अभी
तो शुरू सफर है
अभी तो मंजिल
दूर बहुत है
उतर गये
वे सभी मुसाफिर
जिन्हें
इजाजत मिली हुयी है॥
ये बात जिसकी
समझ में आये
जो भी चढ़ा
है उतर के आये
रहोगे उन
कंगूरों पे कब तक
नींव जिसकी
हिली हुयी है॥
सिला ली
तुमने जैसी झोली
मैं भी वैसी
सिला न पाया
सौगात में
बस बदनामियाँ हैं
सजा ये मुझको मिली हुयी है॥
माँगूँगा
जो ना दे सकोगे
ज़िरह भी
हमसे ना कर सकोगे
यहाँ रौशनी
ही रौशनी है
घर की खिड़की खुली हुयी है॥
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