वे कहते हैं कि उन्होंने देश को आज़ादी दिलायी थी और अब वे उसमें आग लगा देंगे। उनका ख़्याल है कि उनका मालिक आज भी भारत का बादशाह है जिसकी पूजा हर किसी को करनी ही चाहिए भले ही वह कितना भी अराजक, अमर्यादित, निरंकुश, स्वार्थी और लुटेरा क्यों न हो।
यह वो मध्ययुगीन मानसिकता है जो हिंसा के
माध्यम से दुनिया पर हुकूमत करना अपना अधिकार समझती है। यह जिंघेस ख़ान, तैमूर लंग, और बाबर की परम्परा है जो अपने अलावा
किसी और को बर्दाश्त नहीं करती। यह औरंगजेबी परम्परा है जो अपने ही सगे भाइयों की
हत्या करके बादशाहत छीन लेती है। इस परम्परा को जनता से कोई अभिप्राय नहीं होता,
हुकूमत उनके लिए सर्वोपरि होती है। यह वो मानसिकता है जो यह मानती
है कि वे सर्वोपरि हैं, सभी कानूनों, नैतिकताओं
और सीमाओं से ऊपर इसीलिए उनके आपराधिक कृत्यों का भी विरोध करना अक्षम्य अपराध है।
यह वो परम्परा है जो अपने कबीले के सरदार की
ख़ुशी के लिए पूरी बस्ती में आग लगा देती है और बस्ती को लूटकर जश्न मनाती है। भारत
का टूटा-फूटा लोकतंत्र यह नहीं समझ पाता कि कबीले के सरदार के प्रति इतना घातक और
विनाशकारी समर्पण उपजता कहाँ से और कैसे है?
भारत का लोकतंत्र इतना अवश्य समझ चुका है कि
भारत में अराजकता, दासता और निरंकुश भेड़िया तंत्र को स्थापित करने के लिए भरपूर उर्वरता की
कमी नहीं है।
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