माथे पर काली बिंदी और कांधे पर काला उत्तरीय देखते ही आजमगढ़ वाले क्रांतिकारी बाबा की स्मृति में रामलीला में देखी रावण की वेशभूषा का दृश्य जीवंत हो आता है। अहमदाबाद वाली भावना बेन बताती हैं, काला रंग तो राक्षसों और इस्लामिक स्टेट वाले जिहादियों का प्रिय रंग है। राम कथा में शक्ति, हिंसा और शोक के रंग का क्या औचित्य!
राम कथा
में अकर्मण्यता और नपुंसकता का रस घोलने के लिए संगीतकार गीत गाते हैं, वाद्ययंत्र
बजाते हैं। उसकी कथामंडली के संगीतकारों में प्रसिद्ध फ़िल्मी कलाकार होते हैं,
कथा राम की होती है, बात गली-गली में मस्ज़िद
की होती है और गीत होता है – “अली मौला... अली मौला...”
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की कथा सुनाते-सुनाते एक दिन कथावाचक के ज्ञानचक्षु उन्मीलित हुए, और वे इस्लाम से इतने प्रभावित हुए कि अपनी कथामण्डली के मुस्लिम तबलावादक को अपनी बेटी का हाथ सौंप कर धन्य हो गए।
आपको याद है न! वह गुजराती, “ईश्वर अल्ला तेरो नाम” गाया करता था। एक दिन उसने सूफ़ियाना गाना गाते-गाते भारत का एक बड़ा हिस्सा अल्लाह के बंदों को दे दिया। अल्लाह के बंदे आबाद हो गए और ईश्वर के बंदे उसी दिन से भाड़ में तिल-तिल कर जलने लगे।
आजमगढ़ि क्रांतिकारी के ये शब्द ट्रिलियन डॉलर कीमत के हैं –“कोई
अध्यात्मिक काफ़िर जब प्रसिद्ध हो जाता है तो उसके भीतर से सेक्युलरिज़्म प्रकट होता
है और तब उसका आराध्य अली मौला हो जाता है”।
भिगो भिगो कर दिया है । सटीक 👌👌👌 इतनी खरी बात लिखने के लिए बजी हिम्मत होनी चाहिए । गुजरात वाले ने तो असल गीत ही बदल दिया ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! यह साहस आप जैसे सुधी पाठकों से मिलता है जो हमारी द सो काल्ड "बकवास" पर चिंतन-मनन करते हैं।
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