भाजपा प्रवक्ताओं के लिए निर्मित आचार संहिता में धर्म पर टिप्पणी करना प्रतिबंधित कर दिया गया है। कई लोगों के भाषणों को “हेट-स्पीच” के रूप में चिन्हित किया गया है। अब भाजपा को धर्मनिरपेक्षता का हिज़ाब ओढ़कर ही आगे बढ़ना होगा। यह उस राजनीतिक दल की आचार संहिता है जिसकी केंद्र में सत्ता है। क्या यह आचार संहिता अन्य लोगों के लिए भी बाध्यकारी नहीं होनी चाहिए! और फिर यह जागरण आज अनायास क्यों? एक-दो प्रवक्ताओं को छोड़ दें तो टीवी डिबेट्स में उमड़ी रहने वाली भीड़ में हेट-स्पीच के अतिरिक्त और होता ही क्या है!
भारत के
लोगों को नहीं मालूम कि दुर्गा, सरस्वती, शिव, पार्वती और गणेश आदि आराध्य देवी-देवताओं पर अश्लील
टिप्पणियों की सालों से चली आ रही बौछारों, पंद्रह मिनट में हिन्दुओं
को काट डालने, हिन्दुओं को भारत से कहीं और चले जाने,
और भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने की सार्वजनिक घोषणाओं जैसी भयभीत करने
वाली अनेक धमकियों को ईशनिंदा और हेट-स्पीच से मुक्त क्यों रखा गया है?
ईशनिंदा
के बिना ईशनिंदा के आरोप का सामना करने वाली नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल का भाजपा से
निष्कासन भारतीय आदर्शों, सनातन सभ्यता, आर्य संस्कृति, मानवीय
मूल्यों, सत्य और नैतिकता का निष्कासन है। उनका निष्कासन उस
भीरुता का परिणाम है जो कभी सत्य का सामना नहीं कर पाती। उनका निष्कासन अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता को बंदी बनाना है। उनका निष्कासन भाजपा के लिए आत्मघाती निर्णय
है।
भारत
में नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के निष्कासन के बाद अब उन्हें दंडित किए जाने की भी
माँग होने लगी है, जबकि उनके समर्थन में कई मुस्लिम विद्वानों, सनातनी मुसलमानों
और विश्व के कई देशों ने खड़े होना प्रारम्भ कर दिया है। नूपुर शर्मा का समर्थन
करना सत्य का समर्थन है, उनका समर्थन उस मूर्खतापूर्ण हठ का
विरोध करना है जो किसी न्याय या तर्क में विश्वास ही नहीं रखता। इस तरह के हठी
विश्वासों से दुनिया नहीं चलती, हाँ! संहार अवश्य होता है।
नूपुर शर्मा का समर्थन करना उन विदेशियों की विवशता भी है जो ऐसी घटनाओं से अपने
देश को बचाना चाहते हैं, अन्यथा इस तरह बे-बात के तूफान हर
देश में आने में देर नहीं लगेगी।
मुस्लिम
तुष्टिकरण के व्यामोह में मोदी ने भारत का कद अंगोला के सामने बहुत बौना कर दिया
है। अंगोला ने अपने देश की सम्प्रभुता और संस्कृति पर विदेशी संस्कृति के आक्रमण
से सुरक्षित रखने के लिए इस्लाम पर प्रतिबंध लगा दिया तो अंगोला समाप्त नहीं हो
गया। दूसरी ओर भारत प्रतिबंधों के भय से मुस्लिम देशों के आगे दंडवत हो गया।
पश्चिमी देशों ने रूस पर भी प्रतिबंध लगाए, बहुत जोर-शोर से लगाए,
रूस तो समाप्त नहीं हुआ, हमने रूस से क्या
सीखा?
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