शुक्रवार, 10 जून 2022

अपमान किसका

        ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं जिसे कोई सम्मानित या अपमानित कर सके, ईश्वर तो मान-अपमान जैसे सभी विकारों से परे है। राम-कृष्ण-परशुराम... आदि और हमारे पूर्वज जो परलोक सिधार गए वे भी राग-द्वेष और मानापमान से परे हो गये। माँ दुर्गा, देवी सरस्वती, गौरी, गणेश, शिव, मनुस्मृति, वेद, पुराण, गौ, गंगा आदि को गालियाँ देकर, उनके बारे में अश्लील टिप्पणियाँ करके तुम किसे अपमानित करते हो!

जब तुम सत्य से दूर और तर्कशून्य होते हो तो उन्हें अपमानित करते हो जो हमारे चिंतन में हैं, जो हमारे आदर्श हैं, जो हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं, जो हमारी प्रेरणा के स्रोत हैं और जो हमारे नित्य समीप हैं। राम-कृष्ण-दुर्गा... आदि को माध्यम बनाकर तुम हमारी आस्था पर आघात करते हो, हमारे चिंतन को निकृष्ट और अपने चिंतन को उत्कृष्ट सिद्ध करने का प्रयास करते हो। सभ्यताओं का आपस में टकराव नहीं होता, असभ्यता का सभ्यता से टकराव होता है। अपसंस्कृति का संस्कृति से टकराव होता है। दुर्जन का सज्जन से टकराव होता है।

हम आहत होते हैं जब तुम विज्ञान को हटाकर अविज्ञान को प्रतिष्ठित करने का हठ करते हो। हम आहत होते हैं जब तुम प्रकृति पर विकृति को थोपने का हठ करते हो। हम आहत होते हैं जब तुम उत्कृष्ट को निकृष्ट और निकृष्ट को उत्कृष्ट ठहराने का हठ करते हो। हम आहत होते हैं जब तुम अपने विचार हम पर थोप कर हमारी संस्कृति और सभ्यता पर आक्रमण करते हो। हम आहत होते हैं तुम्हारी उस स्वेच्छाचारिता से जो समूची धरती को कृष्ण विवर में ले जाने के हठ पर अड़ी हुयी है। हम आहत होते हैं उन अँधेरों से जो प्रकाश की किरणों को निगल जाने के लिए हर पल तैयार रहती हैं। हमारा विरोध तुम्हारी स्वेच्छाचारिता से उत्पन्न होने वाली उन स्थितियों से है जो हमारे जीवन को निकृष्ट बनाने के लिए सदा उद्यत रहती है। हमारा संघर्ष अपनी संस्कृति को बचाने का संघर्ष है, और हम यह संघर्ष करते रहेंगे।

 धर्मयुद्ध

धर्म तो प्रकृति का विज्ञान है। धर्म के प्रतिकूल आचरण करना अधर्म है जो विकृतियों का कारण होता है। इसीलिए महर्षि चरक अधर्म की गणना रोगों के इटियोलॉजिकल फ़ैक्टर्स में करते हैं। All the pathological conditions are initiated only in the absence of धर्म. All the conditions unfavorable to our body and mind lie under अधर्म. The same conditions are applied with all the activities of life, society, politics, industries and even cosmos too.

शरीर में उत्पन्न होने वाले फ़्री रेडिकल्स को निष्क्रिय करने के लिए एण्टी-ऑक्सीडेण्ट्स को सतत संघर्ष करते रहना होता है। यह धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध है। इस संघर्ष में न्यूनता व्याधि को जन्म देती है और संघर्ष का अभाव मृत्यु को आमंत्रित करता है। इसलिए धर्म और अधर्म के बीच सतत युद्ध अनिवार्य है। हम इससे न तो पीछे हट सकते हैं और न बच सकते हैं।

हमें अपने भौतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए धर्मयुद्ध करना ही होगा। हम अस्तित्व की बात करते हैं, वर्चस्व की नहीं। जबकि तुमने अपने अस्तित्व को वर्चस्व से जोड़ दिया है।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.